वर्ष 2025 का नोबेल पुरस्कार फिजियोलॉजी या मेडिसिन (Nobel Prize in Physiology or Medicine 2025) चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। इस प्रतिष्ठित सम्मान से तीन प्रमुख वैज्ञानिक — मैरी ई. ब्रुनकोव (Mary E. Brunkow), फ्रेड राम्सडेल (Fred Ramsdell) और शिमोन सकागुची (Shimon Sakaguchi) — को सम्मानित किया गया है। इन वैज्ञानिकों ने मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के सबसे जटिल और रहस्यमयी पहलुओं में से एक — “परिधीय प्रतिरक्षा सहिष्णुता (Peripheral Immune Tolerance)” — के रहस्यों को उजागर किया है।
उनकी खोजों ने यह स्पष्ट किया कि कैसे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) — जो सामान्यतः संक्रमणों और रोगजनक सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा करती है — कभी-कभी स्वयं के स्वस्थ ऊतकों पर आक्रमण करने से बची रहती है। यह शोध न केवल ऑटोइम्यून रोगों (Autoimmune Diseases) की गहराई को समझने में महत्वपूर्ण है, बल्कि कैंसर उपचार, अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplantation) और इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy) जैसे क्षेत्रों में भी नए मार्ग प्रशस्त करता है।
इस लेख में हम विस्तारपूर्वक जानेंगे —
- Peripheral Immune Tolerance की मूल अवधारणा,
- इन वैज्ञानिकों की खोजों और उनके ऐतिहासिक योगदान को,
- उनकी शोध का चिकित्सा जगत पर प्रभाव,
- और भविष्य में इस खोज से खुलने वाली वैज्ञानिक संभावनाओं को।
यह नोबेल पुरस्कार न केवल आधुनिक प्रतिरक्षाविज्ञान (Immunology) के नए युग की शुरुआत है, बल्कि मानव शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली के रहस्यों को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
प्रतिरक्षा प्रणाली और आत्म-हमले का ख़तरा
मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) हमें बाहरी जीवाणु, वायरस और अन्य संक्रमणों से बचाती है। यह “स्वयं” और “पराया” के बीच पहचान करने की क्षमता रखती है। परंतु इस काम में एक महान जटिल संतुलन है:
- अगर प्रतिरक्षा प्रणाली संवेदनशीलियों (sensitivities) में चूक कर ले — यानी कुछ T-cells (टी-कोशिकाएँ) जो अपने ही ऊतकों की सतह पर मौजूद अणुओं (antigens) को पहचानकर हमला कर दें — तो ऑटोइम्यून रोग (Autoimmune Diseases) का खतरा बढ़ जाता है।
- उदाहरण के लिए, टाइप-1 डायबिटीज़, मल्टीपल स्क्लेरोसिस (MS), रूमैटोइड अर्थराइटिस और अन्य बीमारियाँ प्रतिरक्षा प्रणाली की इस “स्वयं पर हमला” की त्रुटि की वजह से होती हैं।
- इसलिए, प्रतिरक्षा प्रणाली को न केवल आक्रामक बनना चाहिए, बल्कि नियंत्रित होना भी चाहिए — किसी भी संक्रमण को नष्ट करने के बाद उसे शांत हो जाना चाहिए।
प्रारंभ में यह माना जाता था कि अधिकांश टॉलेरेंस (Tolerance — सहिष्णुता) नियंत्रित होती है थाइमस (Thymus) नामक अंग में, जहाँ आत्म-आक्रमक T-कोशिकाएँ पहले ही नष्ट कर दी जाती हैं — इसे Central Tolerance कहा जाता है। लेकिन बाद की खोजों ने यह दिखाया कि केवल थाइमस स्तर पर नियंत्रण पर्याप्त नहीं है।
यहां से शुरू होती है Peripheral Immune Tolerance की भूमिका — शरीर के उन हिस्सों में जहाँ T-cells पहले से बाहर आ चुके हों, लेकिन उन्हें नियंत्रित करना आवश्यक हो जाए।
Peripheral Immune Tolerance — अवधारणा और महत्व
Peripheral Immune Tolerance (परिधीय प्रतिरक्षा सहिष्णुता) उन नियंत्रण तंत्रों को संदर्भित करता है जो शरीर के बाहरी (peripheral) हिस्सों में सक्रिय होती हैं, ताकि वे T-cells जो थाइमस से निकल चुके हैं लेकिन अभी भी स्वयं-आक्रामक हो सकते हैं, उन्हें नियंत्रित करें।
इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि ऐसे T-cells जिन्हें थाइमस में नष्ट नहीं किया गया, या जो अति सक्रिय हो गए हों, वे हमारे शरीर की सामान्य ऊतकों को न नुकसान पहुंचाएँ। इसमें शामिल तंत्र निम्नलिखित हो सकते हैं:
- Regulatory T cells (Tregs) — ये विशेष प्रकार की T-कोशिकाएँ अन्य T-cells की गतिविधि को रोकती हैं।
- क्लोनल डिलीशन (Clonal Deletion) — कुछ स्वयं-आक्रामक T-cells को दूर करना।
- अनर्जीिएंग या अक्रियता (Anergy / Inactivation) — उन्हें निष्क्रिय करना।
- प्रतिस्पर्धात्मक जाम (Competition) — अन्य सुरक्षित T-cells द्वारा उनके लिए महत्वपूर्ण संसाधन (growth factors, cytokines) बांटना।
इन तंत्रों के माध्यम से प्रतिरक्षा प्रणाली “ब्रेक” (ब्रेक लगाने वाले तंत्र) प्राप्त करती है — ताकि वह अंधाधुंध आक्रमण न कर दे।
महत्व: यदि peripheral tolerance काम न करे, तो कोई भी व्यक्ति (जिसमें कई स्वयं-प्रतिक्रियाशील T-cells अवशेष हों) समय के साथ ऑटोइम्यून रोग विकसित कर सकता है। अतः यह सिस्टम स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए अनिवार्य है।
ब्रुनकोव, राम्सडेल और सकागुची की खोजें
2025 के नोबेल पुरस्कार विजेताओं — Brunkow, Ramsdell और Sakaguchi — ने इस क्षेत्र में निम्नलिखित महत्वपूर्ण खोजें कीं:
Shimon Sakaguchi का आरंभिक योगदान
- सन 1995 में, सिद्धांत और प्रयोग दोनों में, Sakaguchi ने यह प्रस्तावित किया कि प्रतिरक्षा नियंत्रण केवल थाइमस तक नहीं सीमित है, बल्कि शरीर के बाकी हिस्सों (periphery) में भी नियंत्रण तंत्र मौजूद हैं।
- उन्होंने एक विशेष श्रेणी की T-कोशिकाओं (जो बाद में Regulatory T cells कहलायीं) की पहचान की, जो अन्य T-कोशिकाओं को दबाने की क्षमता रखती थीं — इस प्रकार यह प्रतिरक्षा प्रणाली को “स्वयं पर आक्रमण” से बचाती थीं।
- इस खोज ने यह स्थापित किया कि प्रतिरक्षा नियंत्रण केवल “नकारात्मक चयन (negative selection)” या “केंद्रीय टॉलेरेंस” पर निर्भर नहीं है।
Brunkow और Ramsdell का FOXP3 जीन की खोज
- वर्ष 2001 में, Brunkow और Ramsdell ने एक म्यूस (mouse) मॉडल में पाया कि एक जीन म्यूटेशन (mutation) से ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया अत्यधिक होती है। उन्होंने इस जीन को FOXP3 नाम दिया।
- उन्होंने आगे यह दिखाया कि इस जीन की हानि (loss-of-function mutation) से Regulatory T cells का निर्माण और कार्य बाधित हो जाता है, जिससे स्वयं-आक्रामक T cells नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं।
- रोचक बात यह है कि उन्होंने यह दिखाया कि मनुष्यों में भी FOXP3 जीन के दोष से गंभीर ऑटोइम्यून सिंड्रोम (जैसे IPEX सिंड्रोम) हो सकते हैं।
संयोजन और एकीकरण: Sakaguchi का FOXP3 से जोड़ना
- Brunkow और Ramsdell की FOXP3-खोज के दो साल बाद, Sakaguchi ने यह सिद्ध किया कि FOXP3 जीन वास्तव में उन Regulatory T cells का मुख्य नियंत्रक (master regulator) है।
- इस तरह, Sakaguchi ने अपना आरंभिक मॉडल FOXP3-आधारित नियंत्रण प्रणाली से जोड़ दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि Regulatory T cells किस प्रकार उत्पन्न होती हैं और कैसे कार्य करती हैं।
- इस प्रकार, उनकी संयुक्त खोजों ने प्रतिरक्षा प्रणाली को समझने की एक संपूर्ण और एकीकृत दृष्टि दी — कैसे शरीर स्वयं-आक्रमण से बचता है।
उनकी खोजों का वैज्ञानिक एवं चिकित्सीय महत्व
इन खोजों का महत्व केवल बुनियादी विज्ञान (basic science) तक सीमित नहीं है — उन्होंने चिकित्सा अनुसंधान और उपचार पथ को पूरी तरह नए दिशाओं में मोड़ने की क्षमता दी है। नीचे प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:
प्रतिरक्षा संतुलन की समझ में वृद्धि
- उन्होंने यह स्पष्ट किया कि प्रतिरक्षा प्रणाली में न केवल आक्रामक “हथियार” (immune effector mechanisms) हैं, बल्कि इन्हें नियंत्रित करने वाले “ब्रेक” तंत्र भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।
- Regulatory T cells (Tregs) को प्रतिरक्षा प्रणाली के “सुरक्षा रक्षक” (immune security guards) के रूप में देखा जाने लगा है।
- FOXP3 जीन की भूमिका को जानने से यह स्पष्ट हुआ कि किस प्रकार से एकल जीन (single gene) में बदलाव से प्रतिरक्षा संतुलन बिखर सकता है।
चिकित्सा अनुप्रयोगों के द्वार खुलना
इन खोजों ने कई उपचारों और अनुप्रयोगों की संभावनाओं को जन्म दिया:
ऑटोइम्यून रोगों में सुधार
- چونकि ऑटोइम्यून रोगों में प्रतिरक्षा प्रणाली स्वयं पर हमला करती है, ऐसे मामलों में अधिक Tregs की संख्या बढ़ाना (या उनकी कार्यक्षमता सुधारना) एक संभावित रणनीति बन सकती है।
- प्रारंभिक अध्ययन और प्रायोगिक चिकित्साएँ (pilot trials) IL-2 (Interleukin-2) जैसे मध्यस्थों का उपयोग कर Tregs को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं।
- यह दृष्टिकोण उन रोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ वर्तमान उपचार रोग को दबाते हैं (immune suppression) लेकिन विशिष्टity नहीं रखते — जैसे कि सिस्टमिक ल्यूपस (SLE), रूमैटोइड अर्थराइटिस, 1 प्रकार का डायबिटीज़, इत्यादि।
कैंसर प्रतिरक्षा चिकित्सा (Cancer Immunotherapy)
- एक रोचक तथ्य यह है कि कैंसर ट्यूमर स्वयं — अपने बचाव के लिए — Regulatory T cells को आकर्षित कर सकते हैं, ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली उन्हें न नष्ट करे।
- अतः, कैंसर चिकित्सा में एक रणनीति यह हो सकती है कि ट्यूमर स्थलों में मौजूद Tregs को निष्क्रिय किया जाए या उन्हें हटाया जाए, ताकि एंटी-ट्यूमर प्रतिक्रिया बेहतर हो सके।
- इस प्रकार, Brunkow–Ramsdell–Sakaguchi की खोजों ने इम्यूनो-ऑनकॉलजी (immuno-oncology) के क्षेत्र को एक नई दिशा दी है।
प्रत्यारोपण (Transplantation) और अंग अस्वीकृति कम करना
- अंग प्रत्यारोपण (organ transplant) में, शरीर द्वारा प्रत्यारोपित अंग को अस्वीकार करना (rejection) एक बड़ी समस्या होती है। यह अस्वीकृति प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा की जाती है।
- यदि Tregs को सक्रिय किया जाए या उनका निर्माण बढ़ाया जाए, तो प्रत्यारोपण अंग को स्वीकृति मिल सकती है, और रोगी को कम इम्यूनो-सुप्रेशन दवाएँ लेने की ज़रूरत होगी।
- वर्तमान में कुछ प्रारंभिक अनुसन्धान इसका परीक्षण कर रहे हैं कि IL-2 को ट्रांसप्लांट रोगियों में देने से Tregs को बढ़ाया जा सके और प्रत्यारोपण अस्वीकृति को रोका जा सके।
पारिस्थितिकी और शोध दिशा में बदलाव
- बूंटकीय रूप से, इन खोजों ने प्रतिरक्षा-शोध (immunology research) की दिशा बदल दी है। शोधकर्ताओं ने पहले कभी न सोचे गए प्रश्नों को उठाया: उदाहरण के लिए, प्रतिरक्षा नियंत्रण के न्यूक्लियस (central) और पेरिफेरल (peripheral) मॉडल के बीच संबंध।
- अतिरिक्त रूप से, अब 200 से अधिक क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं, जो Regulatory T cells को निर्देशित करने या प्रभावित करने वाले उपचारों (immunomodulatory therapies) का परीक्षण कर रहे हैं।
- इन शोधों ने जैवचिकित्सा (biomedical) उद्योग को नए बायोथेरेप्यूटिक्स, सेल-आधारित थेरेपी, जीन-आधारित हस्तक्षेप आदि दिशा में प्रेरित किया है।
चिकित्सा क्षेत्र पर प्रत्यक्ष एवं संभावित प्रभाव
नीचे विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में उन प्रभावों की चर्चा है जो Brunkow, Ramsdell और Sakaguchi की खोजों से जुड़े हैं:
ऑटोइम्यून रोग (Autoimmune Diseases)
- अभी तक अधिकांश ऑटोइम्यून रोगों का उपचार रोग-उन्मूलन (disease suppression) या लक्षणों का नियंत्रण करना है — जैसे कि स्टेरॉयड, इम्यूनो-सप्रेसेंट्स। लेकिन ये उपचार अक्सर व्यापक प्रतिरक्षा दमन (broad immunosuppression) करते हैं, जिससे रोगी अन्य संक्रमणों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- Regulatory T cells आधारित उपचार (Treg-based therapy) या Treg को बढ़ावा देने वाली दवाएँ (Treg-enhancing drugs) विकसित हो रही हैं, जो लक्षित और नियंत्रित प्रतिरक्षा प्रतिकार्य (immune response) को बनाए रख सकती हैं।
- उदाहरण स्वरूप, IL-2 की निम्न-खुराक (low-dose IL-2) उपयोग करके Tregs को सक्रिय करने की रणनीति वर्तमान में परीक्षणों में है।
- यदि यह सफल हो पाए, तो यह एक क्रांतिकारी बदलाव होगा — रोग को जड़ से नियंत्रित करना, न कि केवल लक्षणों को दबाना।
कैंसर चिकित्सा (Cancer Therapy / Immunotherapy)
- कैंसर कोशिकाएँ अक्सर प्रतिरक्षा प्रणाली से छिपने के लिए Tregs की सहायता लेती हैं। यदि हम ट्यूमर माइक्रो-एनवायरनमेंट में Tregs को नियंत्रित कर सकें, तो प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर कोशिकाओं को अधिक प्रभावी ढंग से पहचान और नष्ट कर सकती है।
- इस दृष्टिकोण से, Treg-रोधी (anti-Treg) रणनीतियाँ उभर रही हैं, जो ट्यूमर-नाशक प्रतिरक्षा (anti-tumour immunity) को बढ़ा सकती हैं।
- इस दिशा में कई प्रयोग और क्लिनिकल अध्ययन चल रहे हैं — यह देखना बाकी है कि कौन सी रणनीति सुरक्षित, प्रभावी और लक्षित हो सकती है।
अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplantation)
- प्रत्यारोपित अंगों को ज़्यादातर मामलों में अस्वीकृति (rejection) से बचाने के लिए रोगियों को आजीवन इम्यूनो-सप्रेसेंट्स दिये जाते हैं, जिनके दुष्प्रभाव (side effects) होते हैं — संक्रमण, कैंसर जोखिम इत्यादि।
- यदि हम प्रत्यारोपण के समय Tregs का चयन करें या उन्हें सक्रिय करें, तो हम अस्वीकृति को कम कर सकते हैं, और रोगियों को कम इम्यूनो-सप्रेसेंट दवाओं की ज़रूरत होगी।
- इस रणनीति के प्रारंभिक परीक्षण हो रहे हैं, और यदि सफल हो, तो यह प्रत्यारोपण की सफलता दर और रोगी जीवन-गुणवत्ता (quality of life) को बेहतर कर सकती है।
अन्य संभावनाएँ
- एलर्जी और प्रतिरक्षा असुवेदनशीलता (Immune Tolerance in Allergy / Sensitization): संभव है कि Tregs को नियंत्रित कर हम एलर्जी प्रतिक्रियाओं को भी कम कर सकें।
- सूजन (Inflammation) और इन्फ्लेमेटरी रोग (Inflammatory Diseases): क्रोनिक सूजन में प्रतिरक्षा प्रणाली अधिक सक्रिय होती है; Tregs को बढ़ाना इस प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकता है।
- जेन थेरेपी (Gene Therapy) / सेल थेरेपी (Cell Therapy): FOXP3 जीन इंजेक्शन, एडिटिंग या Treg कोशिकाओं को इन्जेक्ट करना आदि दृष्टिकोण पूर्व में अकल्पनीय थे, लेकिन अब संभव हो सकते हैं।
चुनौतियाँ एवं भविष्य की दिशा
जहाँ ये खोजें अत्यंत प्रेरणादायी हैं, वहीं कुछ चुनौतियाँ और सावधानियाँ भी हैं:
विशिष्टता और लक्ष्य निर्धारण (Specificity and Targeting)
- Tregs को पूरे शरीर में बढ़ाना, यदि उद्देश्य विशेष अंग या रोग है, तो अनचाहे स्थानों पर प्रतिरक्षा दबाव (immunosuppression) उत्पन्न कर सकता है।
- इसलिए, लक्ष्य-निर्धारण (targeted delivery) आवश्यक है — सिर्फ रोग ऊतक या प्रत्यारोपण साइट पर प्रभाव लाना।
सुरक्षा (Safety)
- Tregs की अतिश्रृंखला गतिविधि (overactivity) कुछ मामलों में प्रतिरक्षा को अत्यधिक दबा सकती है — जिससे संक्रमण या कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है।
- रणनीति इस प्रकार होनी चाहिए कि संतुलन बनी रहे — न अधिप्रतिक्रिया, न दबाव।
कोशिका-आधारित और जीन-आधारित हस्तक्षेप की जटिलता
- Treg-आधारित सेल थेरेपी (जैसे मरीज की ही Tregs को निकाला, संसाधित किया और वापस दिया जाना) तकनीकी और लागत-प्रधान हो सकती है।
- जीन थेरेपी (Gene therapy) दृष्टिकोण में जीन डिलीवरी, स्थिरता, off-target प्रभाव आदि चुनौतियाँ होंगी।
नैदानिक अनुवाद (Translational Challenges)
- बुनियादी प्रयोगशाला (in vitro, माउस मॉडल) परिणाम क्लीनिकल (मानव) स्तर पर वैसा सफलता न दें।
- क्लिनिकल ट्रायल्स को सुरक्षा, प्रभावशीलता, दुष्प्रभाव — सभी मापदंडों को संतुलित करना होगा। पहले से ही 200+ मानव परीक्षण (clinical trials) चालू हैं।
दीर्घकालीन निगरानी और अनुकूलन
- यदि कोई Treg-आधारित उपचार सफल होता है, तो दीर्घकालीन स्तर पर रोगियों का निगरानी आवश्यक होगी कि कहीं प्रतिरक्षा प्रणाली विफल न हो जाए।
- उपचारों को समय-समय पर अनुकूलित करना पड़ सकता है, क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली में परिवर्तन (plasticity) हो सकती है।
निष्कर्ष
2025 का नोबेल पुरस्कार फिजियोलॉजी या मेडिसिन उन तीन वैज्ञानिकों—Brunkow, Ramsdell और Sakaguchi — को दिया गया है, जिन्होंने Peripheral Immune Tolerance की खोजों के माध्यम से प्रतिरक्षा विज्ञान में एक क्रांतिकारी भूगोल (paradigm) स्थापित किया।
उनकी खोजों ने यह स्पष्ट किया:
- प्रतिरक्षा प्रणाली में केवल आक्रमण-क्षमता नहीं, बल्कि नियंत्रण क्षमता भी अनिवार्य है।
- Regulatory T cells (Tregs) इस नियंत्रण तंत्र के महत्वपूर्ण घटक हैं।
- FOXP3 जीन इस नियंत्रण प्रणाली का “मास्टर स्विच” है।
- इन खोजों ने चिकित्सा अनुसंधान को ऑटोइम्यून रोग, कैंसर और प्रत्यारोपण चिकित्सा में नई दिशाएँ दी हैं।
- वर्तमान में अनेक क्लिनिकल परीक्षण और उपचार पायलेट चल रहे हैं, जो भविष्य में हमें प्रतिरक्षा-नियमित (immune-regulating) चिकित्सा देने की दिशा में ले जा सकते हैं।
भविष्य में यह संभव है कि हम न केवल रोगों को दमन करें, बल्कि प्रतिरक्षा संतुलन को सही कर उनमें पुनरुत्थान (remission) तक पहुंचें। यह खोज मानव स्वास्थ्य के लिए एक नया युग प्रारंभ करती है — एक युग जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली न केवल रक्षा करती है, बल्कि नियंत्रित, समायोजित और सहयोगी रूप से कार्य करती है।
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