जून 2025 में पाकिस्तान की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की विभिन्न प्रभावशाली समितियों में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति ने वैश्विक स्तर पर एक नई बहस को जन्म दिया है। विशेष रूप से आतंकवाद विरोधी समिति (Counter-Terrorism Committee) में पाकिस्तान की भागीदारी ने भारत समेत कई देशों को चिंता में डाल दिया है। यह स्थिति केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील मानी जा रही है।
पाकिस्तान का अतीत आतंकवाद से जुड़े विवादास्पद संबंधों और वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (FATF) की ग्रे लिस्ट में वर्षों तक बने रहने के कारण पहले से ही संदेह के घेरे में रहा है। ऐसे में जब वह संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद विरोधी मंचों पर नेतृत्वकारी भूमिका निभाने लगे, तो यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद-निरोधी प्रयासों की निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाता है।
इस लेख में हम पाकिस्तान की नियुक्ति की पृष्ठभूमि, इसके संभावित प्रभाव, भारत की चिंताओं और व्यापक अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में इसके दूरगामी परिणामों का विश्लेषण करेंगे।
FATF की पृष्ठभूमि और पाकिस्तान की छवि
FATF (Financial Action Task Force) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग के वित्तपोषण पर निगरानी रखती है। पाकिस्तान को 2018 से 2022 तक FATF की ग्रे लिस्ट में रखा गया था। इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान उन देशों की श्रेणी में था जो आतंकी वित्तपोषण रोकने में विफल रहे थे और उन्हें निगरानी में रखा गया था।
FATF की ग्रे लिस्ट में रहना क्यों गंभीर मामला है?
- वैश्विक स्तर पर आर्थिक छवि को नुकसान: FATF की ग्रे लिस्ट में आने से किसी भी देश की निवेश-योग्यता पर सीधा असर पड़ता है। विदेशी निवेशक उस देश को उच्च जोखिम वाला मानते हैं।
- वित्तीय संस्थानों पर प्रभाव: IMF, World Bank जैसे संस्थानों के साथ लेन-देन कठिन हो जाता है। पाकिस्तान को भी कर्ज और सहायता प्राप्त करने में अड़चनें आई थीं।
- भरोसे की कमी: FATF की ग्रे लिस्ट में शामिल होना यह दर्शाता है कि संबंधित देश आतंकी संगठनों को फंडिंग रोकने में गंभीर नहीं है।
पाकिस्तान के संदिग्ध आतंकी संबंध
FATF के अलावा भी पाकिस्तान पर लंबे समय से लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM), और तालिबान जैसे संगठनों को पनाह देने के गंभीर आरोप हैं।
- लश्कर-ए-तैयबा: यह वही संगठन है जो 26/11 मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार था। इसका प्रमुख हाफिज सईद पाकिस्तान में खुलेआम सार्वजनिक रैलियों को संबोधित करता रहा है।
- जैश-ए-मोहम्मद: इस संगठन ने 2019 में पुलवामा आतंकी हमला किया था जिसमें भारत के 40 से अधिक सीआरपीएफ जवान शहीद हुए।
- तालिबान के साथ संबंध: अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता वापसी में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की भूमिका को लेकर भी गंभीर आरोप लगे हैं।
UNSC में पाकिस्तान की नियुक्ति: एक रणनीतिक उलटफेर
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद वैश्विक शांति और सुरक्षा के सबसे महत्वपूर्ण मामलों पर निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। इसमें विभिन्न समितियाँ होती हैं, जिनमें से कुछ सबसे प्रभावशाली हैं:
- Counter-Terrorism Committee (CTC)
- Sanctions Committees
- Peacekeeping Operations Oversight
इन समितियों में पाकिस्तान की भागीदारी और नेतृत्वकारी भूमिका को देखते हुए भारत समेत कई देशों की चिंता बढ़ गई है।
UNSC में प्रभावशाली समितियों में पाकिस्तान की नियुक्ति के निहितार्थ
- नीति निर्धारण में भागीदारी: अब पाकिस्तान उन बैठकों और फैसलों का हिस्सा है जहाँ आतंकवाद की परिभाषा, उससे निपटने की रणनीतियाँ और आतंकी संगठनों की सूची जैसे निर्णय लिए जाते हैं।
- साक्ष्यों की समीक्षा और प्रस्तुति: पाकिस्तान अब उन रिपोर्टों की समीक्षा कर सकता है जिनमें उसका या उसके सहयोगियों का नाम हो।
- प्रभाव का दुरुपयोग: यह आशंका है कि पाकिस्तान इस मंच का उपयोग अपने ऊपर लगे आरोपों को निष्क्रिय करने या भारत पर आरोप लगाने के लिए कर सकता है।
भारत की चिंताएं: कूटनीतिक, रणनीतिक और वैचारिक
1. कूटनीतिक झटका
भारत ने वर्षों तक वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद के केंद्र के रूप में प्रस्तुत किया है। FATF, G20, UNGA जैसे मंचों पर भारत की कूटनीतिक जीत यह रही कि पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया गया।
अब जब पाकिस्तान खुद संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद विरोधी मंच का हिस्सा बन गया है, तो भारत की यह कूटनीतिक मुहिम कमजोर पड़ सकती है।
2. आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक नीति पर प्रभाव
पाकिस्तान अपने प्रभाव का प्रयोग करके आतंकवाद की परिभाषा को कमजोर करने या ‘state-sponsored terrorism’ की धारणा को धुंधला करने का प्रयास कर सकता है। यह वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ प्रयासों के लिए खतरनाक हो सकता है।
3. भारत विरोधी प्रचार की संभावना
- बलूचिस्तान मुद्दा: पाकिस्तान यह प्रयास कर सकता है कि बलूचिस्तान में भारत की कथित संलिप्तता पर संयुक्त राष्ट्र की निगरानी हो। इससे भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धक्का लग सकता है।
- कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण: UNSC की समितियों का उपयोग भारत के आंतरिक मामलों को वैश्विक मंचों पर लाने के लिए किया जा सकता है।
4. पाकिस्तान-चीन गठजोड़
संयुक्त राष्ट्र में चीन का प्रभाव पहले से ही स्थापित है। पाकिस्तान की नियुक्ति को चीन की रणनीतिक मदद का परिणाम माना जा सकता है। चीन, पाकिस्तान को UNSC में सशक्त बना कर भारत की क्षेत्रीय स्थिति को चुनौती दे सकता है।
वैश्विक संदर्भ और भारत की रणनीति
1. वैश्विक दोहरा मापदंड
यह स्थिति एक बड़े दोहरे मापदंड को उजागर करती है। जहाँ एक ओर अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं मंचों पर पाकिस्तान जैसे देश को जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जिसकी आतंकवाद से करीबी जुड़ाव की जानकारी सार्वजनिक है।
2. भारत की संभावित रणनीति
- वैश्विक सहयोग को मजबूत करना: भारत को अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों के साथ अपने कूटनीतिक और सुरक्षा संबंध और मजबूत करने होंगे।
- प्रचार रणनीति: भारत को चाहिए कि वह साक्ष्यों के साथ पाकिस्तान के आतंकी संबंधों को विभिन्न मंचों पर उजागर करता रहे। सोशल मीडिया और थिंक टैंक्स का इस्तेमाल इस दिशा में सहायक हो सकता है।
- FATF और अन्य निगरानी संस्थानों के साथ सहयोग: भारत को चाहिए कि वह FATF, INTERPOL और Europol जैसी संस्थाओं में सक्रियता बनाए रखे ताकि पाकिस्तान की गतिविधियों पर निगरानी बनी रहे।
पाकिस्तान की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समितियों में नियुक्ति, केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए एक रणनीतिक चिंता का विषय है। इसका प्रभाव न केवल भारत पर बल्कि समूचे विश्व के आतंकवाद-निरोधी तंत्र की निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर पड़ सकता है।
यह स्थिति इस बात की गवाही देती है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर केवल सच्चाई और प्रमाण ही नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक समीकरण और गठजोड़ भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भारत के लिए यह समय है कि वह अपनी कूटनीतिक रणनीतियों की पुनर्समीक्षा करे, वैश्विक सहयोग को मजबूत बनाए और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को और अधिक प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करे।
आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई केवल सीमाओं की सुरक्षा नहीं, बल्कि वैश्विक नैतिकता और राजनीतिक ईमानदारी की भी परीक्षा है – और इस लड़ाई में भारत को सक्रिय भूमिका निभाते रहना होगा।
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