भारतीय लोकतंत्र विश्व के सबसे बड़े और स्थायी लोकतंत्रों में से एक है। यहाँ हर संवैधानिक पद का चुनाव एक गहन प्रक्रिया से गुजरकर होता है, जो न केवल संविधान की मजबूती को दर्शाता है बल्कि भारतीय जनता की आकांक्षाओं को भी प्रतिबिंबित करता है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे पद भारतीय गणराज्य के स्तंभ माने जाते हैं। उपराष्ट्रपति का पद विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है और राज्यसभा के सभापति के रूप में यह विधायी प्रक्रिया में भी केंद्रीय भूमिका निभाता है।
12 सितम्बर 2025 को भारत ने अपने राजनीतिक इतिहास का एक और महत्वपूर्ण अध्याय लिखा, जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन ने 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस अवसर पर कई वरिष्ठ गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे, और इसके साथ ही राधाकृष्णन देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हुए।
सी. पी. राधाकृष्णन – भारत के उपराष्ट्रपति
पूरा नाम: चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन
जन्म: 4 मई 1957, तिरुपुर, मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु), भारत
आयु: 68 वर्ष (2025 तक)
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म: हिन्दू
शिक्षा: वी. ओ. चिदंबरम कॉलेज (स्नातक, 1978)
राजनीतिक दल: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
परिचय
सी. पी. राधाकृष्णन एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख चेहरों में से एक हैं। 12 सितम्बर 2025 को उन्होंने भारत के उपराष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की। इससे पहले वे महाराष्ट्र के 24वें राज्यपाल (2024–2025) रहे। दक्षिण भारत से आने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में उनकी विशेष पहचान है।
राजनीतिक जीवन और योगदान
- लोकसभा सांसद
- सी. पी. राधाकृष्णन दो बार कोयम्बटूर से लोकसभा के लिए चुने गए (1998–2004)।
- वे अपने संसदीय कार्यों और जनता से मजबूत जुड़ाव के लिए जाने जाते रहे हैं।
- भाजपा संगठन में भूमिका
- तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में संगठन को मजबूत किया।
- बाद में भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बने।
- पार्टी नेतृत्व ने उन्हें केरल भाजपा प्रभारी की जिम्मेदारी भी दी।
- राज्यपाल पद
- 2024 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 2025 तक इस पद पर रहे।
- अन्य दायित्व
- 2016 से 2019 तक वे अखिल भारतीय कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष रहे, जो लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम मंत्रालय (MSME) के अंतर्गत कार्य करता है।
उपराष्ट्रपति पद
- कार्यालय ग्रहण: 12 सितम्बर 2025
- राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू
- पूर्ववर्ती: जगदीप धनखड़
भारत के उपराष्ट्रपति बनने के साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में एक नई ऊँचाई हासिल की।
व्यक्तिगत जीवन
- सी. पी. राधाकृष्णन का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ और प्रारंभिक जीवन तमिलनाडु में बीता।
- उन्होंने उच्च शिक्षा वी. ओ. चिदंबरम कॉलेज से पूरी की।
- वे अपने सरल स्वभाव, संगठनात्मक क्षमता और दक्षिण भारत में भाजपा के विस्तार में योगदान के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।
सी. पी. राधाकृष्णन ने भाजपा संगठन और संसदीय राजनीति दोनों में अहम भूमिका निभाई है। लोकसभा सांसद से लेकर प्रदेश अध्यक्ष, राज्यपाल और अब उपराष्ट्रपति तक की उनकी यात्रा भारतीय राजनीति में उनकी निरंतर सक्रियता और नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है।
सी. पी. राधाकृष्णन – राजनीतिक करियर और पद
वर्ष / अवधि | पद / दायित्व | विवरण / प्रमुख तथ्य |
---|---|---|
1998–2004 | सांसद, लोकसभा | कोयम्बटूर से दो बार चुने गए। पूर्वाधिकारी – एम. रामनाथन, उत्तराधिकारी – के. सुब्बारायण |
2000 के दशक | प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा तमिलनाडु | राज्य संगठन को मजबूत किया और भाजपा का जनाधार बढ़ाया। |
2016–2019 | अध्यक्ष, अखिल भारतीय कॉयर बोर्ड (MSME मंत्रालय) | लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम मंत्रालय के अंतर्गत कार्य किया। |
2020 के दशक | राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, भाजपा | पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका। |
2020 के दशक | प्रभारी, भाजपा केरल | भाजपा आलाकमान द्वारा नियुक्त। |
2024–2025 | राज्यपाल, महाराष्ट्र (24वें) | राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त, राज्यपाल के रूप में कार्य। |
12 सितम्बर 2025 – वर्तमान | उपराष्ट्रपति, भारत | राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अधीन शपथ ग्रहण। पूर्वाधिकारी – जगदीप धनखड़। |
सी. पी. राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति पद पर चयन
सी. पी. राधाकृष्णन लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े रहे हैं। वे संगठनात्मक क्षमता, वैचारिक प्रतिबद्धता और प्रशासनिक समझ के लिए पहचाने जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, राधाकृष्णन का यह चयन न केवल एनडीए की मजबूती का प्रतीक है बल्कि दक्षिण भारत में भाजपा के बढ़ते प्रभाव का भी संकेत है।
चुनाव परिणाम और राजनीतिक समीकरण
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में सी. पी. राधाकृष्णन ने एनडीए उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। उनका मुकाबला विपक्षी INDIA गठबंधन के प्रत्याशी और पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी से था।
- राधाकृष्णन को 452 वोट प्राप्त हुए।
- बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले।
एनडीए के पास आधिकारिक रूप से 427 सांसदों का समर्थन था। किंतु चुनाव परिणाम आने पर स्पष्ट हुआ कि उन्हें 14 अतिरिक्त वोट मिले। इनमें से 11 वोट वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) के सांसदों के थे, जिन्होंने एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया। इससे विपक्षी खेमे में क्रॉस-वोटिंग की अटकलें तेज हो गईं।
यह जीत केवल एक चुनावी सफलता नहीं थी, बल्कि राजनीतिक समीकरणों और गठबंधनों में बदलाव का भी संकेतक बनी।
शपथ ग्रहण समारोह
स्थान: राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली
तिथि: 12 सितम्बर 2025
शपथ दिलाने वालीं: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
समारोह में कई प्रमुख हस्तियां उपस्थित रहीं, जिनमें शामिल थे:
- पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (पद छोड़ने के बाद पहली सार्वजनिक उपस्थिति)
- पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद
- लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला
- महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव
- आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू
समारोह ने न केवल संवैधानिक परंपराओं को सजीव किया बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच लोकतांत्रिक गरिमा को भी प्रदर्शित किया।
राजनीतिक महत्व और प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राधाकृष्णन को बधाई देते हुए कहा कि वे भारत के संवैधानिक मूल्यों को और सुदृढ़ करेंगे। इस चुनावी विजय ने एनडीए की शीर्ष संवैधानिक पदों पर पकड़ को और मज़बूत किया।
कई विश्लेषकों ने इसे “कोयंबटूर के वाजपेयी क्षण” कहा। दरअसल, राधाकृष्णन तमिलनाडु के कोयंबटूर से आते हैं और उन्हें हमेशा पार्टी की विचारधारा और सुशासन के प्रति निष्ठा रखने वाला नेता माना जाता है।
सी. पी. राधाकृष्णन: राजनीतिक यात्रा और योगदान
सी. पी. राधाकृष्णन ने अपनी राजनीतिक यात्रा भाजपा से शुरू की और वर्षों तक संगठन में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए अपनी पहचान बनाई। वे जनता के बीच सरल, सुलभ और साफ-सुथरी छवि वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं।
- कई वर्षों तक वे दक्षिण भारत में भाजपा का चेहरा बने रहे।
- उन्हें “कोयंबटूर का वाजपेयी” कहना उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक सौम्यता को दर्शाता है।
- उनकी जीत ने दक्षिण भारतीय राजनीति में भाजपा के लिए नए अवसरों का द्वार खोला है।
भारत के उपराष्ट्रपति पद की संवैधानिक स्थिति
1. स्थापना (अनुच्छेद 63)
भारतीय संविधान के अनुसार उपराष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति के बाद देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है।
2. राज्यसभा में भूमिका (अनुच्छेद 64)
उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। वे सदन की कार्यवाही को निष्पक्षता से संचालित करते हैं।
3. कार्यवाहक राष्ट्रपति (अनुच्छेद 65)
- राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफ़ा या अस्थायी अनुपस्थिति की स्थिति में उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं।
- इस अवधि में उन्हें राष्ट्रपति के सभी अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।
4. निर्वाचन प्रक्रिया (अनुच्छेद 66)
- उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा व राज्यसभा) के सदस्य करते हैं।
- इसमें राज्य विधानसभाओं की कोई भूमिका नहीं होती।
5. योग्यता
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- आयु कम से कम 35 वर्ष हो।
- राज्यसभा सदस्य चुने जाने की योग्यता हो।
- किसी लाभ के पद पर न हो।
6. कार्यकाल
- उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- कार्यकाल समाप्त होने पर भी वे तब तक पद पर बने रहते हैं जब तक नया उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता।
7. त्यागपत्र और हटाने की प्रक्रिया
- उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को संबोधित कर त्यागपत्र दे सकते हैं।
- राज्यसभा प्रस्ताव पास करके और लोकसभा की स्वीकृति से उन्हें हटाया जा सकता है।
8. निर्वाचन प्रक्रिया और मतदान प्रणाली
- चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होता है।
- इसमें एकल हस्तांतरणीय मत (STV) प्रणाली अपनाई जाती है।
- मतदान गुप्त मतपत्र से होता है।
9. विवादों का निवारण (अनुच्छेद 71)
- राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव से जुड़े विवादों का निवारण सर्वोच्च न्यायालय करता है।
- उसका निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: अब तक के उपराष्ट्रपति
भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे, जो बाद में राष्ट्रपति भी बने। इसके बाद से अब तक 14 उपराष्ट्रपति हो चुके हैं। सी. पी. राधाकृष्णन इस पद पर आसीन होने वाले 15वें नेता हैं।
पूर्व उपराष्ट्रपतियों में डॉ. जाकिर हुसैन, बी. डी. जत्ती, भैरो सिंह शेखावत, हामिद अंसारी, एम. वेंकैया नायडू और जगदीप धनखड़ जैसे नाम शामिल हैं। हर उपराष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में संविधान और लोकतंत्र की मजबूती में योगदान दिया।
भारत के उपराष्ट्रपतियों की सूची
क्रमांक | उपराष्ट्रपति | पदग्रहण तिथि | पदमुक्ति तिथि | उस समय के राष्ट्रपति |
---|---|---|---|---|
1 | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | 13 मई 1952 | 14 मई 1957 | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
2 | डॉ. जाकिर हुसैन | 13 मई 1962 | 12 मई 1967 | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
3 | वी. वी. गिरी | 13 मई 1967 | 3 मई 1969 | डॉ. जाकिर हुसैन |
4 | गोपाल स्वरूप पाठक | 31 अगस्त 1969 | 30 अगस्त 1974 | वी. वी. गिरी / फ़ख़रुद्दीन अली अहमद |
5 | बी. डी. जत्ती | 31 अगस्त 1974 | 30 अगस्त 1979 | फ़ख़रुद्दीन अली अहमद / नीलम संजीव रेड्डी |
6 | मोहम्मद हिदायतुल्ला | 31 अगस्त 1979 | 30 अगस्त 1984 | नीलम संजीव रेड्डी / ज्ञानी जैल सिंह |
7 | रामस्वामी वेंकटरमण | 31 अगस्त 1984 | 27 जुलाई 1987 | ज्ञानी जैल सिंह |
8 | डॉ. शंकर दयाल शर्मा | 3 सितम्बर 1987 | 24 जुलाई 1992 | रामस्वामी वेंकटरमण |
9 | के. आर. नारायणन | 21 अगस्त 1992 | 24 जुलाई 1997 | डॉ. शंकर दयाल शर्मा |
10 | कृष्णकांत | 21 अगस्त 1997 | 27 जुलाई 2002 | डॉ. के. आर. नारायणन / डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम |
11 | भैरोसिंह शेखावत | 19 अगस्त 2002 | 21 जुलाई 2007 | डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम |
12 | मोहम्मद हामिद अंसारी | 11 अगस्त 2007 | 19 जुलाई 2017 | प्रतिभा देवीसिंह पाटिल / प्रणब मुखर्जी / राम नाथ कोविंद |
13 | एम. वेंकैया नायडू | 11 अगस्त 2017 | 10 अगस्त 2022 | राम नाथ कोविंद |
14 | जगदीप धनखड़ | 11 अगस्त 2022 | 11 अगस्त 2025 | द्रौपदी मुर्मू |
15 | सी. पी. राधाकृष्णन | 12 सितम्बर 2025 | वर्तमान | द्रौपदी मुर्मू |
निष्कर्ष
सी. पी. राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति चुना जाना भारतीय राजनीति के लिए एक अहम पड़ाव है। यह न केवल एनडीए की राजनीतिक ताकत को दर्शाता है, बल्कि दक्षिण भारत में भाजपा के बढ़ते प्रभाव की पुष्टि भी करता है।
उनकी शपथ ने भारतीय लोकतंत्र की निरंतरता को और प्रबल किया। उपराष्ट्रपति पद केवल एक औपचारिक संवैधानिक भूमिका नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती का दर्पण है। आने वाले वर्षों में राधाकृष्णन किस प्रकार इस पद की गरिमा और दायित्वों का निर्वहन करते हैं, यह भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण होगा।
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