भारतीय संसद, जो राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा से मिलकर बनती है, भारतीय लोकतंत्र की धुरी है। यह संविधान के अनुच्छेद 79 के तहत स्थापित है। लोकसभा और राज्यसभा, जनता और राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए, कानून निर्माण, बजट स्वीकृति और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते हैं। लोकसभा अस्थायी सदन है जिसका कार्यकाल 5 वर्ष होता है, जबकि राज्यसभा स्थायी सदन है जिसमें सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं।
संसद की कार्यवाही प्रश्नकाल, शून्य काल और विभिन्न संसदीय समितियों द्वारा संचालित होती है। विधेयक पारित करने की प्रक्रिया, विशेषाधिकार, और सदस्यों की योग्यता संसद की कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। संसद की संयुक्त बैठकें, धन विधेयक और साधारण विधेयक की प्रक्रियाएं, और राष्ट्रपति की अनुमति, संसद की कार्यवाही को सुसंगत और प्रभावी बनाते हैं। इस प्रकार, भारतीय संसद देश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने में अहम भूमिका निभाती है।
संघ की विधायिका को संसद कहा जाता है। भारत की संसद भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण संस्थान है, जो संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा से मिलकर बनती है। संसद का गठन 1952 में हुआ था, और इसकी पहली बैठक 13 मई 1952 को हुई थी। भारतीय संसद का मुख्य उद्देश्य विधायी, कार्यकारी और न्यायिक कार्यों का निष्पादन करना है। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है।
लोकसभा और राज्यसभा
लोकसभा (लोगों का सदन)
लोकसभा को प्रथम या निम्न सदन के रूप में जाना जाता है। इसे ‘हाउस ऑफ पीपल’ भी कहा जाता है। इसका गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ था। लोकसभा अस्थायी सदन है और इसके सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। लेकिन इससे पहले भी इसका विघटन राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सिफारिश पर किया जा सकता है। अनुच्छेद 352 के तहत घोषित राष्ट्रीय आपातकाल के समय लोकसभा का कार्यकाल एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है, तथा आपातकाल में न रहने पर यह अवधि 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती।
लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 है, जिसमें 530 सदस्य राज्यों से, 20 संघ शासित प्रदेशों से और 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय से होते हैं। वर्तमान में लोकसभा में 545 सदस्य हैं, जिसमें 530 राज्यों से, 13 संघ शासित प्रदेशों से और 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय से हैं। उत्तर प्रदेश से अधिकतम 80 सदस्य होते हैं जबकि राजस्थान से 25 सदस्य होते हैं।
लोकसभा में सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिए। लोकसभा के सदस्य का चुनाव वयस्क मताधिकार (18 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों) के आधार पर राज्य की जनता द्वारा किया जाता है।
राज्यसभा (राज्यों की परिषद)
राज्यसभा को द्वितीय या उच्च सदन के रूप में जाना जाता है। इसे ‘काउंसिल ऑफ स्टेट्स’ भी कहा जाता है। इसका गठन 3 अप्रैल 1952 को हुआ था। राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है। प्रत्येक दो वर्ष बाद 1/3 सदस्य बदल दिए जाते हैं।
राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 है, जिसमें 238 सदस्य निर्वाचित होते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित होते हैं। वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं, जिसमें 233 निर्वाचित और 12 नामित सदस्य होते हैं। उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में अधिकतम 31 सदस्य होते हैं जबकि राजस्थान से 10 सदस्य होते हैं।
राज्यसभा में सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए। राज्यसभा का सभापतित्व भारत का उपराष्ट्रपति करता है तथा राज्यसभा अपना एक उपसभापति भी निर्वाचित करती है।
संसद के सदस्यों की योग्यता और विशेषाधिकार
लोकसभा के लिए 25 वर्ष और राज्यसभा के लिए 30 वर्ष से कम उम्र नहीं होनी चाहिए। किसी संसद सदस्य की योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित विवाद का अंतिम निर्णय चुनाव आयोग के परामर्श से राष्ट्रपति करता है। एक समय में एक व्यक्ति केवल एक ही सदन का सदस्य रह सकता है।
यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि से अधिक समय के लिए सदन के सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है। संसद सदस्यों को दिए गए विशेषाधिकारों के अंतर्गत किसी भी संसद सदस्य को अधिवेशन के समय या समिति, जिसकी वह सदस्य है, की बैठक के समय अथवा अधिवेशन या बैठक के पूर्व या पश्चात् 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से उन्मुक्ति प्रदान की गई है, यदि वह फौजदारी मामला न हो।
संसद की कार्यवाही
संसद की कार्यवाही प्रश्नकाल से शुरू होती है। सामान्यतः तीन प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं:
- अल्प-सूचना वाले प्रश्न: इन प्रश्नों का संबंध लोक महत्व के किसी तात्कालिक मामले से होता है। प्रश्न के मौखिक उत्तर के लिए सूचना पूरे दस दिन से कम अवधि में दी जा सकती है।
- तारांकित प्रश्न: ये प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर सदन में मौखिक रूप से दिया जाता है। इनमें पूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं।
- अतारांकित प्रश्न: ये प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर लिखित रूप में दिया जाता है। इसमें कोई पूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता।
शून्य काल: 1961 में तत्कालिक लोकसभा अध्यक्ष रवि राय द्वारा लागू किया गया।
आधे घंटे की चर्चा: जो प्रश्न प्रश्नकाल में नहीं पूछे जा सकते, उनके लिए संबंधित सदन का पीठासीन अधिकारी लोकसभा में सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को तथा राज्यसभा में कभी भी चर्चा करवा सकता है।
लोकसभा का पीठासीन अधिकारी लोकसभा अध्यक्ष होता है और राज्यसभा का पीठासीन अधिकारी उपराष्ट्रपति होता है।
संसद की समितियां
संसद के कार्यों को संचालित करने के लिए संसदीय समितियों की व्यवस्था की गई है। ये सामान्यतः दो भागों में विभाजित की जाती हैं:
- स्थायी समिति: ये समितियां स्थायी प्रकृति की होती हैं तथा इनका गठन प्रतिवर्ष या एक निश्चित समय के लिए होता है। इनके कार्य अनवरत रूप से चलते हैं।
- लोक लेखा समिति: सदस्य संख्या – 22 (15 लोकसभा से + 7 राज्यसभा से)। कोई भी मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है। इसका अध्यक्ष विपक्ष का कोई सदस्य होता है।
- प्राक्कलन समिति: सदस्य संख्या – 30 (केवल लोकसभा से)। अध्यक्ष का चुनाव सदस्यों में से किया जाता है।
- सार्वजनिक उपक्रम समिति: सदस्य संख्या – 22 (15 लोकसभा से + 7 राज्यसभा से)। अध्यक्ष का चुनाव सदस्यों में से किया जाता है।
- तदर्थ समिति: इन समितियों का गठन विशिष्ट उद्देश्यों के लिए किया जाता है तथा उन उद्देश्यों की पूर्ति के उपरांत ये समितियां समाप्त हो जाती हैं।
विधेयक और उनके पारित होने की प्रक्रिया
साधारण विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन में प्रारम्भ किए जा सकते हैं। धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रारम्भ किया जा सकता है। धन विधेयक में राज्यसभा कोई संशोधन नहीं कर सकती। धन विधेयक को राज्यसभा 14 दिन में अपनी सिफारिशों के साथ वापस कर देती है। साधारण विधेयक को दूसरा सदन 6 माह तक रोक सकता है। साधारण विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद हो जाने पर राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित करता है।
साधारण विधेयक पर दोनों सदनों में पृथक रूप से तीन वाचन होते हैं। तदुपरांत राष्ट्रपति के अनुमति हस्ताक्षर से अधिनियम बन जाता है।
संसद का संयुक्त अधिवेशन
संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के बीच मतभेद होने पर राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित कर सकता है। अभी तक तीन संयुक्त अधिवेशन हुए हैं:
- 1961 में दहेज निषेध अधिनियम पर।
- 1978 में बैकिंग संशोधन विधेयक पर।
- 2002 में पोटा आंतकवादी विध्वंसक निरोधक कानून पर।
संसद सदस्य के विशेषाधिकार
संसद सदस्य को कई विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जिसमें उन्हें अधिवेशन के समय या समिति की बैठक के समय, अधिवेशन या बैठक के पूर्व या पश्चात् 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से उन्मुक्ति प्रदान की गई है, अगर फौजदारी मामला न हो।
संसद के प्रमुख पदाधिकारी
लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
लोकसभा नव निर्वाचन के पश्चात् अपनी पहली बैठक में अपना अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष चुन लेती है। अध्यक्ष या उपाध्यक्ष संसद के जीवन काल तक अपने पद धारण करते हैं। अध्यक्ष दूसरी नव निर्वाचित लोक सभा की प्रथम बैठक के पूर्व तक अपने पद पर बना रहता है।
अध्यक्ष को निर्णायक मत देने का अधिकार है। कोई विधेयक धन विधेयक है इसका निश्चय लोकसभा अध्यक्ष करता है तथा उसका निश्चय अन्तिम होता है। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोक सभा अध्यक्ष करता है।
राज्यसभा के सभापति और उपसभापति
राज्यसभा का सभापतित्व भारत का उपराष्ट्रपति करता है तथा राज्यसभा अपना एक उपसभापति भी निर्वाचित करती है।
संसद के प्रमुख कार्य
- विधायी कार्य: संसद के मुख्य कार्यों में विधायी कार्य शामिल है। साधारण विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन में प्रारम्भ किए जा सकते हैं। धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रारम्भ किया जा सकता है। धन विधेयक में राज्यसभा कोई संशोधन नहीं कर सकती। धन विधेयक को राज्यसभा 14 दिन में अपनी सिफारिशों के साथ वापस कर देती है। साधारण विधेयक पर दोनों सदनों सदनों में मतभेद हो जाने पर राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित करता है।
- वित्तीय कार्य: संसद का एक प्रमुख कार्य वित्तीय मामलों का प्रबंधन है। अनुच्छेद 112 के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में दोनों सदनों के समक्ष एक वार्षिक वित्तीय विवरण रखवाता है, जिसे सामान्य शब्दों में बजट कहा जाता है। इसमें भारत सरकार की प्राप्तियों और व्ययों का विवरण होता है।
- नियंत्रण कार्य: संसद सरकार के कार्यों पर नियंत्रण रखती है। संसद में प्रश्नकाल के माध्यम से सांसद सरकारी नीतियों और कार्यों पर सवाल उठाते हैं और सरकार से जवाब मांगते हैं। इसके अलावा, संसद विभिन्न समितियों के माध्यम से सरकारी कार्यों की जांच और समीक्षा करती है।
- विमर्श कार्य: संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर विमर्श और चर्चा होती है। यह सरकार को विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत करने और सांसदों से प्रतिक्रिया प्राप्त करने का अवसर देता है।
संसद के विशेषाधिकार और शक्तियाँ
संसद को कई विशेषाधिकार और शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना अधिनियम नहीं बनता है, भले ही वह संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया हो। अनुच्छेद 111 के अनुसार जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष उनकी अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति -(अ) विधेयक पर अनुमति देता है, या (ब) वह अनुमति रोक लेता है, या (स) यदि वह धन विधेयक नहीं है तो अपने सुझाव के साथ या उसके बिना पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
अनुच्छेद – 112 के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में दोनों सदनों के समक्ष एक वार्षिक वित्तीय विवरण रखवाता है। जिसे सामान्य शब्दों में बजट कहा जाता है। इसमें भारत सरकार की प्राप्तियों और व्ययों का विवरण होता है।
लोक सभा से सम्बंधित प्रमुख तथ्य
- अनुच्छेद 81 के तहत गठित लोकसभा को प्रथम या निम्न सदन कहा जाता है।
- इसे हाउस ऑफ पिपल भी कहा जाता है।
- लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ था।
- यह एक अस्थायी सदन है और इसके सदस्य अधिकतम 552 (530+20+2) हो सकते हैं। वर्तमान में लोकसभा में 545 सदस्य (530 राज्यों से, 13 केन्द्रशासित प्रदेशों से और 2 एंग्लो-इंडियन) हैं।
- उत्तर प्रदेश से अधिकतम 80 सदस्य होते हैं और राजस्थान से 25।
- लोकसभा की गणपूर्ति 1/10 या 55 सदस्यों की होती है।
राज्यसभा से सम्बंधित प्रमुख तथ्य
- अनुच्छेद 80 के तहत गठित राज्यसभा को द्वितीय या उच्च सदन कहा जाता है।
- इसे काउंसिल ऑफ स्टेट्स भी कहा जाता है।
- राज्यसभा का गठन 3 अप्रैल 1952 को हुआ था।
- यह एक स्थायी सदन है और इसके सदस्य अधिकतम 250 (238 निर्वाचित + 12 मनोनीत) हो सकते हैं। वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य (233 निर्वाचित और 12 मनोनीत) हैं।
- उत्तर प्रदेश से अधिकतम 31 सदस्य होते हैं और राजस्थान से 10।
- राज्यसभा की गणपूर्ति 1/10 या 25 सदस्यों की होती है।
संसद की अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं
भारत की संचित निधि पर राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति व उपसभापति के वेतन भत्ते आदि तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन भारित होती है।
कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना अधिनियम नहीं बनता है, भले ही वह संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया हो। अनुच्छेद 111 के अनुसार जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति – (अ) विधेयक पर अनुमति देता है, या (ब) वह अनुमति रोक लेता है, या (स) यदि वह धन विधेयक नहीं है तो अपने सुझाव के साथ या उसके बिना पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
भारतीय संसद देश का सर्वोच्च विधायी निकाय है, जो लोकतंत्र की रक्षा और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद के कार्य और उसकी कार्यप्रणाली ने देश को स्थिरता और विकास की दिशा में आगे बढ़ने में मदद की है। संसद का प्रभावी संचालन और उसकी कार्यप्रणाली सुनिश्चित करती है कि देश के नागरिकों की आवाज़ सुनी जाए और उनके हितों की रक्षा की जाए।
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इन्हें भी देखें –
- निर्वाचन आयोग | संरचना, कार्य और महत्व
- भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन | संरचना, विकास और विशेषताएं
- भारत में पंचायती राज व्यवस्था प्रणाली | संरचना एवं विशेषताएं
- भारतीय संसद | लोक सभा और राज्य सभा | राज्यों में सीटें
- भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ | Schedules Of the Indian Constitution
- भारतीय संविधान के भाग और अनुच्छेद | Parts and Articles
- भारत का संविधान: स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का संरक्षण
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