ईरान का परमाणु कार्यक्रम दुनिया की सबसे जटिल और विवादास्पद कूटनीतिक पहेलियों में से एक है। इसका उद्देश्य शुरू में नागरिक उपयोग, जैसे ऊर्जा उत्पादन और वैज्ञानिक अनुसंधान था, परंतु समय के साथ यह कार्यक्रम सैन्य आशंकाओं का विषय बन गया। पश्चिमी देश, विशेष रूप से अमेरिका और इज़राइल, इसे परमाणु हथियार प्राप्त करने की दिशा में ईरान की कोशिश के रूप में देखते हैं, जबकि ईरान इसे एक संप्रभु अधिकार और शांतिपूर्ण उपयोग के लिए आवश्यक मानता है।
यह लेख ईरान के परमाणु कार्यक्रम के इतिहास, तकनीकी पहलुओं, वैश्विक विवाद, JCPOA समझौते और इसके राजनीतिक व भू-राजनीतिक प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण करता है।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम: आरंभिक चरण
1950–1979: अमेरिकी समर्थन और अंशदायी विकास
ईरान का परमाणु कार्यक्रम 1957 में अमेरिका के “Atoms for Peace” कार्यक्रम के अंतर्गत शुरू हुआ। उस समय ईरान में शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी का शासन था, जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के करीबी थे।
- 1967 में तेहरान रिसर्च रिएक्टर की स्थापना हुई, जो अमेरिका द्वारा दिया गया था।
- ईरान ने IAEA (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के साथ समझौता किया और NPT (Non-Proliferation Treaty) पर हस्ताक्षर किए।
- 1970 के दशक में ईरान ने 20 से अधिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की योजना बनाई।
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद बदलाव
1979 में अयातुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान और पश्चिमी देशों के रिश्ते खराब हो गए। अमेरिका ने परमाणु सहयोग बंद कर दिया और अधिकांश वैज्ञानिक योजनाएँ ठप पड़ गईं। परंतु ईरान ने स्वयं परमाणु तकनीक विकसित करने की दिशा में प्रयास जारी रखा।
ईरान की परमाणु क्षमता: तकनीकी और संस्थागत पहलू
मुख्य परमाणु प्रतिष्ठान
- नतांज़ (Natanz): यूरेनियम संवर्धन का प्रमुख केंद्र।
- फोर्डो (Fordow): भूमिगत सुविधा, जो बंकर-रोधी बमों से बचने हेतु बनाई गई है।
- अराक (Arak): भारी जल रिएक्टर, जो प्लूटोनियम उत्पादन में सक्षम है।
- बुशहर (Bushehr): रूस की सहायता से बना ईरान का पहला वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र।
संवर्धन स्तर
- ईरान ने 3.67% (सिविलियन उपयोग) से ऊपर जाकर 20% और फिर 60% तक यूरेनियम संवर्धन किया। 90% संवर्धन हथियार-ग्रेड होता है।
- यह संवर्धन स्तर चिंता का विषय बना क्योंकि इसमें हथियार बनाने की क्षमता छुपी हो सकती है।
संदेह और पश्चिमी प्रतिक्रिया
आरोप
- अमेरिका, इज़राइल और यूरोपीय देशों का आरोप रहा है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा है।
- 2002 में विपक्षी समूह MEK ने नतांज़ और अराक साइट्स का खुलासा किया।
- IAEA की रिपोर्टों में ईरान की पारदर्शिता को लेकर शंका जताई गई।
इज़राइल की चिंता
- इज़राइल के लिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम अस्तित्व का खतरा है।
- 1981 में इज़राइल ने इराक के ओसिराक रिएक्टर को नष्ट किया था, और कई बार ईरान की सुविधाओं पर साइबर और संभावित गुप्त हमले किए।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध और उनका प्रभाव
2006 के बाद संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए:
- तेल निर्यात पर प्रतिबंध।
- अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली (SWIFT) से निष्कासन।
- ईरानी कंपनियों और व्यक्तियों की संपत्ति जब्त।
- तकनीकी सहायता और वैज्ञानिक सहयोग पर रोक।
इन प्रतिबंधों ने ईरानी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया:
- मुद्रास्फीति और बेरोजगारी बढ़ी।
- रियाल (ईरानी मुद्रा) का अवमूल्यन हुआ।
- विदेशी निवेश घट गया।
परमाणु समझौता (JCPOA): आशा और विफलता
2015: ऐतिहासिक समझौता
Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA) 2015 में P5+1 (अमेरिका, यूके, रूस, चीन, फ्रांस + जर्मनी) और ईरान के बीच हुआ।
प्रमुख बिंदु:
- ईरान 3.67% से अधिक यूरेनियम संवर्धन नहीं करेगा।
- फोर्डो सुविधा सीमित उपयोग में लाई जाएगी।
- IAEA निरीक्षण को स्वीकार किया जाएगा।
- बदले में प्रतिबंध हटाए जाएंगे।
2018: ट्रंप प्रशासन की वापसी
- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने JCPOA से अमेरिका को एकतरफा हटा लिया।
- “सबसे अधिक दबाव की नीति” (Maximum Pressure) अपनाई गई।
- ईरान ने भी समझौते के तहत अपनी सीमाओं से बाहर जाकर संवर्धन शुरू किया।
वर्तमान स्थिति (2025)
- ईरान 60% से अधिक संवर्धन कर चुका है।
- JCPOA पुनर्जीवन की बातचीत वियना में रुकी पड़ी है।
- अमेरिका और इज़राइल ईरान पर हमले की संभावना की बात कर चुके हैं।
- ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएं और साइबर हमले तेज हुए हैं।
- IAEA की रिपोर्टें लगातार चिंता जता रही हैं।
रणनीतिक और राजनीतिक विश्लेषण
- ईरान परमाणु हथियार बनाना चाहता है या केवल धमकी के रूप में कार्यक्रम चलाना, यह स्पष्ट नहीं।
- इस कार्यक्रम ने ईरान को क्षेत्रीय ताकत के रूप में स्थापित कर दिया है।
- परमाणु शक्ति की संभावना ने इज़राइल, सऊदी अरब और अमेरिका के लिए सामरिक चुनौती खड़ी की है।
भविष्य की संभावनाएँ
- JCPOA की पुनर्स्थापना: अगर अमेरिका और ईरान सहमत होते हैं, तो समझौते की वापसी संभव है।
- सैन्य हस्तक्षेप: इज़राइल या अमेरिका द्वारा ईरानी सुविधाओं पर हमला संभावित है।
- क्षेत्रीय परमाणु होड़: सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश भी अपनी परमाणु क्षमता विकसित करने की ओर जा सकते हैं।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम मध्य-पूर्व और विश्व राजनीति का एक निर्णायक विषय बना हुआ है। यह न केवल परमाणु अप्रसार (Non-Proliferation) के वैश्विक प्रयासों को चुनौती देता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए भी संकट पैदा करता है।
जब तक पारदर्शिता, आपसी विश्वास और अंतरराष्ट्रीय संवाद की भावना नहीं बनती, तब तक यह मुद्दा यूं ही तनाव, प्रतिबंध और संघर्ष का कारण बना रहेगा।
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