पृथ्वी का वायुमंडल कई परतों से मिलकर बना है, जिनमें से प्रत्येक परत जीवन की निरंतरता के लिए किसी न किसी रूप में अनिवार्य है। इन्हीं परतों में से एक है ओज़ोन परत, जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (Ultraviolet-B) किरणों से पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब वैज्ञानिकों ने पहली बार अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन परत में असामान्य कमी दर्ज की, तब यह खोज केवल एक वैज्ञानिक तथ्य नहीं रही, बल्कि पूरी मानव सभ्यता के लिए एक गंभीर चेतावनी बन गई।
2025 में यह खबर आई कि अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र 1 दिसंबर 2025 को बंद हो गया और यह लगातार दूसरा वर्ष था जब इस छिद्र का आकार अपेक्षाकृत छोटा रहा। यह घटनाक्रम केवल एक पर्यावरणीय समाचार नहीं है, बल्कि यह वैश्विक सहयोग, वैज्ञानिक चेतना और नीति-निर्माण की सफलता का प्रतीक भी है। इस लेख में हम ओज़ोन छिद्र के संकुचन, उसके कारणों, इसके पीछे के वैज्ञानिक तथ्यों, वैश्विक प्रयासों, वर्ष-दर-वर्ष होने वाले बदलावों, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा भविष्य में ओज़ोन परत की पूर्ण रिकवरी की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
ओज़ोन परत: संरचना और महत्व
ओज़ोन परत मुख्यतः पृथ्वी की स्ट्रेटोस्फियर परत में स्थित होती है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 15 से 35 किलोमीटर की ऊँचाई पर फैली होती है। ओज़ोन (O₃) ऑक्सीजन का ही एक रूप है, जिसमें तीन ऑक्सीजन परमाणु होते हैं। यह परत सूर्य से आने वाली खतरनाक UV-B किरणों को अवशोषित कर लेती है, जो अन्यथा जीवों के डीएनए को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
यदि ओज़ोन परत न हो या अत्यधिक कमजोर हो जाए, तो पृथ्वी पर जीवन लगभग असंभव हो जाएगा। त्वचा कैंसर, मोतीबिंदु, प्रतिरक्षा तंत्र की क्षति, फसलों की उत्पादकता में गिरावट और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश – ये सभी ओज़ोन परत के क्षरण के संभावित दुष्परिणाम हैं। इसीलिए ओज़ोन परत को अक्सर पृथ्वी की “सुरक्षात्मक ढाल” कहा जाता है।
ओज़ोन छिद्र की खोज: एक वैश्विक चिंता की शुरुआत
1980 के दशक में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन की मात्रा में तेज़ गिरावट दर्ज की। यह गिरावट इतनी गंभीर थी कि इसे प्रतीकात्मक रूप से “ओज़ोन छिद्र” कहा जाने लगा। वास्तव में यह कोई भौतिक छेद नहीं था, बल्कि ओज़ोन की अत्यधिक कमी वाला क्षेत्र था।
जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि इस क्षरण के पीछे प्राकृतिक कारणों से अधिक मानव-निर्मित रसायन जिम्मेदार हैं। विशेष रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) और हैलोन्स (Halons) जैसे रसायन, जो रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, एयरोसोल स्प्रे और अग्निशमन उपकरणों में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते थे, ओज़ोन परत के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हुए।
ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थ (ODS): अदृश्य लेकिन घातक
CFCs और अन्य ODS की सबसे खतरनाक विशेषता यह थी कि वे रासायनिक रूप से बहुत स्थिर होते हैं। पृथ्वी की निचली वायुमंडलीय परतों में ये आसानी से टूटते नहीं हैं और धीरे-धीरे ऊपर स्ट्रेटोस्फियर तक पहुँच जाते हैं। वहाँ सूर्य की तीव्र पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से ये टूटते हैं और क्लोरीन तथा ब्रोमीन जैसे तत्व मुक्त करते हैं।
एक अकेला क्लोरीन परमाणु हजारों ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर सकता है। इस श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया ने अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन परत को अत्यंत कमजोर कर दिया। चूँकि वहाँ का वातावरण अत्यधिक ठंडा होता है, इसलिए यह क्षेत्र ओज़ोन क्षरण के लिए विशेष रूप से संवेदनशील बन गया।
मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल: पर्यावरणीय कूटनीति की ऐतिहासिक सफलता
ओज़ोन संकट की गंभीरता को समझते हुए 1987 में मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए किया गया था। इसे आज पर्यावरण विज्ञान के इतिहास का सबसे सफल वैश्विक समझौता माना जाता है।
इस प्रोटोकॉल के परिणामस्वरूप:
- CFCs का वैश्विक उत्पादन 99% से अधिक घटा।
- विकसित और विकासशील देशों ने मिलकर वैकल्पिक तकनीकों को अपनाया।
- वायुमंडल में CFC-11 और CFC-12 जैसे प्रमुख रसायनों की सांद्रता 1990 के दशक के बाद से लगातार कम हो रही है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, क्लोरीन और ब्रोमीन जैसे ओज़ोन-क्षयकारी तत्वों की मात्रा अब हर दशक में घट रही है।
ओज़ोन छिद्र संकुचन: हालिया प्रगति और 2025 की स्थिति
पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिकों ने उपग्रहों और ग्राउंड-बेस्ड उपकरणों के माध्यम से ओज़ोन परत की निरंतर निगरानी की है। 2016 में NASA ने पहली बार आधिकारिक रूप से ओज़ोन परत में “healing trend” यानी सुधार की प्रवृत्ति की पुष्टि की।
इसके बाद 2019, 2022, 2024 और अब 2025 जैसे वर्षों में अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र का आकार अपेक्षाकृत छोटा पाया गया। 2025 में 1 दिसंबर को इसका बंद होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि ओज़ोन परत धीरे-धीरे अपनी प्राकृतिक स्थिति की ओर लौट रही है। लगातार दूसरा वर्ष ऐसा होना वैज्ञानिक समुदाय के लिए विशेष रूप से उत्साहजनक है।
साल-दर-साल ओज़ोन छिद्र का आकार क्यों बदलता है?
हालाँकि दीर्घकालिक प्रवृत्ति सुधार की है, फिर भी हर वर्ष ओज़ोन छिद्र का आकार समान नहीं होता। इसके पीछे कई प्राकृतिक और भौतिक कारण होते हैं:
1. स्ट्रेटोस्फियर का तापमान
अंटार्कटिका के ऊपर का स्ट्रेटोस्फियर अत्यधिक ठंडा होता है। ठंडे तापमान पर Polar Stratospheric Clouds (PSC) बनती हैं, जिनकी सतह पर ऐसे रासायनिक अभिक्रियाएँ होती हैं जो ओज़ोन को तेजी से नष्ट करती हैं।
- ठंडे वर्षों में छिद्र बड़ा होता है।
- अपेक्षाकृत गर्म वर्षों में छिद्र छोटा रहता है।
2. पोलर वॉर्टेक्स की ताकत
Polar Vortex एक प्रकार की शक्तिशाली वायुमंडलीय परिघटना है, जो ठंडी हवा और रसायनों को अंटार्कटिका के ऊपर कैद कर लेती है। यदि यह वॉर्टेक्स मजबूत हो, तो ओज़ोन क्षरण अधिक होता है। कमजोर वॉर्टेक्स वाले वर्षों में ओज़ोन परत को अपेक्षाकृत राहत मिलती है।
3. ज्वालामुखी विस्फोटों का प्रभाव
2022 में टोंगा क्षेत्र में हुए Hunga Tonga ज्वालामुखी विस्फोट ने बड़ी मात्रा में जलवाष्प और एरोसोल कणों को स्ट्रेटोस्फियर में पहुँचा दिया। इससे अस्थायी रूप से ओज़ोन क्षरण की प्रक्रिया तेज़ हुई। ऐसे प्राकृतिक कारक कुछ वर्षों के लिए सुधार की गति को धीमा कर सकते हैं।
4. जलवायु परिवर्तन का जटिल संबंध
वैश्विक तापमान बढ़ने के बावजूद वैज्ञानिकों ने पाया है कि स्ट्रेटोस्फियर अपेक्षाकृत ठंडी हो रही है। यह स्थिति PSC के निर्माण को बढ़ावा दे सकती है, जिससे ओज़ोन पुनर्प्राप्ति की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण बन सकती है। इसलिए जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन परत का संबंध अत्यंत जटिल और बहुआयामी है।
ओज़ोन परत की पूर्ण रिकवरी: समय-सीमा और अनुमान
WMO और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा जारी Scientific Assessment of Ozone Depletion (2022–23) रिपोर्ट के अनुसार:
- अंटार्कटिका में ओज़ोन परत की पूर्ण रिकवरी: लगभग 2066 तक
- आर्कटिक क्षेत्र में रिकवरी: लगभग 2045 तक
- शेष विश्व में ओज़ोन स्तर का सामान्य होना: लगभग 2040 तक
ये अनुमान इस धारणा पर आधारित हैं कि मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन होता रहेगा और कोई नया ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थ बड़े पैमाने पर वातावरण में नहीं छोड़ा जाएगा।
ओज़ोन परत का सुधार क्यों है मानवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण?
ओज़ोन परत की रिकवरी केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ हैं:
1. मानव स्वास्थ्य की रक्षा
ओज़ोन परत के मजबूत होने से:
- त्वचा कैंसर के मामलों में कमी आएगी।
- मोतीबिंदु और आँखों से जुड़ी बीमारियों का जोखिम घटेगा।
- मानव प्रतिरक्षा तंत्र पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव कम होगा।
2. कृषि और खाद्य सुरक्षा
UV-B किरणें फसलों की वृद्धि को प्रभावित करती हैं। ओज़ोन परत के संरक्षण से कृषि उत्पादकता बनी रहेगी और खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी।
3. समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा
समुद्री प्लवक (Phytoplankton) समुद्री खाद्य श्रृंखला की नींव होते हैं। UV-B से इनकी रक्षा होने पर पूरे समुद्री तंत्र की स्थिरता बनी रहती है।
4. जलवायु तंत्र की स्थिरता
ओज़ोन परत पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका सुधार वैश्विक जलवायु तंत्र को स्थिर बनाए रखने में सहायक होगा।
निष्कर्ष: आशा, विज्ञान और वैश्विक सहयोग की जीत
अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र का 2025 में बंद होना केवल एक वैज्ञानिक घटना नहीं, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि जब मानवता चेत जाती है और विज्ञान के मार्गदर्शन में वैश्विक सहयोग करती है, तो सबसे गंभीर पर्यावरणीय संकटों का समाधान भी संभव है।
मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल ने यह दिखाया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लिए गए ठोस निर्णय और उनका ईमानदार क्रियान्वयन पृथ्वी के भविष्य को सुरक्षित बना सकते हैं। हालाँकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं – विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में – फिर भी ओज़ोन परत की रिकवरी हमें यह आशा देती है कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयास व्यर्थ नहीं जाते।
अंततः, ओज़ोन छिद्र का संकुचन हमें यह सिखाता है कि पृथ्वी की रक्षा केवल वैज्ञानिकों या सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह पूरी मानव सभ्यता का साझा दायित्व है।
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