भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्ध सदियों से प्रकृति की सफाई अभियान का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। ये पक्षी मृत पशुओं के शव खाकर न केवल पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखते हैं, बल्कि संक्रामक रोगों के फैलाव को भी रोकते हैं। किंतु बीते तीन दशकों में गिद्धों की आबादी में भयावह गिरावट दर्ज की गई है। एक समय सड़कों, गाँवों और जंगलों में बड़ी संख्या में दिखने वाले गिद्ध आज विलुप्ति के कगार पर पहुँच गए हैं। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए असम स्थित एक फाउंडेशन ने गौहाटी विश्वविद्यालय के सहयोग से भारत का पहला गिद्ध संरक्षण पोर्टल शुरू किया है। यह पहल देशभर के शोधकर्ताओं, संरक्षणवादियों और समुदायों को जोड़कर गिद्धों के संरक्षण की दिशा में संगठित प्रयासों को गति प्रदान करेगी।
भारत में गिद्धों का महत्व
गिद्धों को अक्सर केवल “मृत पशु खाने वाले” के रूप में देखा जाता है, लेकिन उनका महत्व इससे कहीं अधिक है।
- प्राकृतिक सफाईकर्मी – गिद्ध पशुओं के शव तुरंत खा जाते हैं, जिससे वातावरण में दुर्गंध और संक्रमण नहीं फैलता।
- रोग नियंत्रण – यदि मृत पशुओं को लंबे समय तक खुले में छोड़ दिया जाए तो उनमें एंथ्रेक्स, रैबीज़, ब्रूसेलोसिस और अन्य रोगाणु पनप सकते हैं। गिद्ध इस खतरे को खत्म करते हैं।
- इकोलॉजिकल बैलेंस – ये खाद्य श्रृंखला का आवश्यक हिस्सा हैं और परोक्ष रूप से अन्य जीव-जंतुओं व मनुष्यों के स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व – भारत की कुछ आदिवासी और पारसी परंपराओं में गिद्धों को पवित्र माना जाता है और उनकी उपस्थिति विशेष धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी है।
भारत में पाई जाने वाली गिद्ध प्रजातियाँ
भारत गिद्धों की विविधता का महत्वपूर्ण केंद्र है। यहाँ कुल 9 प्रजातियाँ पाई जाती हैं:
- ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड वल्चर (Oriental White-backed Vulture)
- लॉन्ग-बिल्ड वल्चर (Long-billed Vulture)
- स्लेंडर-बिल्ड वल्चर (Slender-billed Vulture)
- हिमालयन वल्चर (Himalayan Vulture)
- रेड-हेडेड वल्चर (Red-headed Vulture)
- इजिप्शियन वल्चर (Egyptian Vulture)
- बियर्डेड वल्चर (Bearded Vulture)
- सिनेरेअस वल्चर (Cinereous Vulture)
- यूरेशियन ग्रिफॉन वल्चर (Eurasian Griffon Vulture)
इनमें से अधिकांश प्रजातियाँ क्रिटिकली एंडेंजर्ड (Critically Endangered) या एंडेंजर्ड (Endangered) की श्रेणी में आती हैं।
भारत में गिद्धों की आबादी में गिरावट
1980–1990 के दशक में भारत में गिद्धों की संख्या करोड़ों में थी। लेकिन 2000 के बाद से उनकी संख्या में 90% से भी अधिक गिरावट दर्ज की गई। इसका सबसे बड़ा कारण रहा डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) नामक दर्द निवारक दवा, जिसे पशुओं के इलाज में प्रयोग किया जाता था। जब गिद्ध इन पशुओं के शव खाते, तो यह रसायन उनके शरीर में जाकर गुर्दे को क्षति पहुँचाता और उनकी मौत हो जाती।
अन्य प्रमुख कारण:
- आवास का नुकसान (जंगलों की कटाई, शहरीकरण)
- भोजन की कमी (गाय-बैल के शवों का व्यवस्थित निपटान)
- विद्युत तारों से टकराव और करंट लगना
- शिकार और विषाक्तता
गिद्ध संरक्षण परियोजना (Vulture Conservation Project)
परिचय
असम स्थित एक फाउंडेशन ने गौहाटी विश्वविद्यालय के साथ मिलकर हाल ही में भारत का पहला गिद्ध संरक्षण पोर्टल लॉन्च किया है। यह एक ऐतिहासिक कदम है क्योंकि इससे देशभर में बिखरे हुए संरक्षण प्रयासों को एक ही मंच पर लाया जा सकेगा।
उद्देश्य
- आबादी की निगरानी – गिद्ध प्रजातियों की स्थिति और वितरण का देशव्यापी ट्रैक रखना।
- डेटा संग्रह – गिद्धों की दृष्टिगोचर (Sightings), प्रजनन डेटा, मृत्यु के कारण और आवास की जानकारी रिकॉर्ड करना।
- अनुसंधान और संरक्षण – वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देना और संरक्षण नीतियों को मजबूत करना।
- सामुदायिक जागरूकता – गिद्ध संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना और ज़हरीले पदार्थों के उपयोग को कम करना।
महत्व
- एक राष्ट्रीय नेटवर्क तैयार होगा जिसमें शोधकर्ता, पक्षी प्रेमी और समुदाय जुड़े रहेंगे।
- डेटा-आधारित नीति निर्माण संभव होगा।
- गिद्ध संरक्षण में जनभागीदारी बढ़ेगी।
भारत में गिद्ध संरक्षण के प्रयास
भारत सरकार और विभिन्न एनजीओ ने पिछले दो दशकों में कई कदम उठाए हैं:
- डाइक्लोफेनाक पर प्रतिबंध (2006) – इस दवा को पशुओं के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया।
- वाइल्डलाइफ़ संरक्षण अधिनियम – गिद्धों को Schedule I श्रेणी में रखा गया है।
- गिद्ध प्रजनन केंद्र – असम, पिन्ज़ौर (हरियाणा), पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में स्थापित किए गए।
- राष्ट्रीय गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन कार्यक्रम – 2001 में शुरू किया गया, जिसमें गिद्धों को कैद में रखकर सुरक्षित प्रजनन कराया जाता है।
- सामुदायिक भागीदारी योजनाएँ – ग्रामीणों और चरवाहों को जागरूक किया गया कि वे पशुओं का शव खुले में छोड़ें और विषैले रसायन का प्रयोग न करें।
भारत में पाई जाने वाली गिद्ध प्रजातियाँ और उनकी संरक्षण स्थिति
क्रम | प्रजाति (Species) | हिंदी नाम | IUCN स्थिति | प्रमुख क्षेत्र |
---|---|---|---|---|
1 | Oriental White-backed Vulture | सफेद-पीठ वाला गिद्ध | Critically Endangered | उत्तर भारत, मध्य भारत |
2 | Long-billed Vulture | लंबी चोंच वाला गिद्ध | Critically Endangered | राजस्थान, गुजरात, मध्य भारत |
3 | Slender-billed Vulture | पतली चोंच वाला गिद्ध | Critically Endangered | उत्तर-पूर्व भारत, असम, बंगाल |
4 | Himalayan Vulture | हिमालयी गिद्ध | Near Threatened | हिमालय क्षेत्र |
5 | Red-headed Vulture | लाल-सिर वाला गिद्ध | Critically Endangered | पूरे भारत में विरल रूप से |
6 | Egyptian Vulture | मिस्री गिद्ध | Endangered | उत्तर-पश्चिम और दक्षिण भारत |
7 | Bearded Vulture | दाढ़ी वाला गिद्ध | Near Threatened | हिमालय और पर्वतीय क्षेत्र |
8 | Cinereous Vulture | धूसर गिद्ध | Near Threatened | लद्दाख, हिमालय क्षेत्र |
9 | Eurasian Griffon Vulture | यूरेशियन ग्रिफॉन गिद्ध | Least Concern | उत्तर-पश्चिम भारत |
IUCN स्थिति का मतलब है – किसी भी जीव प्रजाति की संरक्षण स्थिति (Conservation Status), जिसे IUCN (International Union for Conservation of Nature) तय करती है।
IUCN एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो दुनिया भर की पशु-पक्षी और पौधों की प्रजातियों की स्थिति का आकलन करता है और अपनी “Red List of Threatened Species” में उन्हें दर्ज करता है।
IUCN श्रेणियाँ (Categories)
IUCN अलग-अलग स्तर पर प्रजातियों को वर्गीकृत करता है:
- Extinct (EX) – विलुप्त (अब दुनिया में कहीं भी मौजूद नहीं)
- Extinct in the Wild (EW) – जंगलों में विलुप्त (केवल कैद या कृत्रिम परिस्थितियों में जीवित)
- Critically Endangered (CR) – अत्यंत संकटग्रस्त (विलुप्ति का सबसे अधिक खतरा)
- Endangered (EN) – संकटग्रस्त (विलुप्ति का ऊँचा खतरा)
- Vulnerable (VU) – असुरक्षित (विलुप्ति का खतरा मध्यम स्तर पर)
- Near Threatened (NT) – लगभग संकटग्रस्त (अभी सुरक्षित, लेकिन भविष्य में खतरा हो सकता है)
- Least Concern (LC) – कम चिंता वाली प्रजाति (संख्या स्थिर या पर्याप्त है)
- Data Deficient (DD) – पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं
- Not Evaluated (NE) – अभी तक मूल्यांकन नहीं हुआ
👉 उदाहरण:
- भारत के सफेद-पीठ वाले गिद्ध (Oriental White-backed Vulture) को IUCN ने Critically Endangered (CR) घोषित किया है, यानी यह प्रजाति विलुप्ति के बेहद करीब है।
- वहीं, यूरेशियन ग्रिफॉन गिद्ध को Least Concern (LC) माना गया है, क्योंकि इसकी आबादी अपेक्षाकृत स्थिर है।
समयरेखा (Timeline): भारत में गिद्ध संरक्षण की प्रमुख घटनाएँ (2000–2025)
- 2000 – गिद्धों की आबादी में तेजी से गिरावट पर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई।
- 2001 – “राष्ट्रीय गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन कार्यक्रम” (Vulture Conservation Breeding Program) शुरू हुआ।
- 2004 – भारत सरकार ने गिद्ध संरक्षण के लिए “Action Plan” का मसौदा तैयार किया।
- 2006 – पशुओं में डाइक्लोफेनाक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया।
- 2008 – असम, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में गिद्ध प्रजनन केंद्र स्थापित हुए।
- 2012 – विषमुक्त क्षेत्र (Vulture Safe Zones) की अवधारणा लागू हुई।
- 2014–2016 – IUCN ने भारतीय गिद्ध प्रजातियों को “Critically Endangered” श्रेणी में रखा।
- 2017 – भारत सरकार ने “National Action Plan for Vulture Conservation (2020–2025)” का मसौदा तैयार करना शुरू किया।
- 2020 – राष्ट्रीय गिद्ध संरक्षण कार्ययोजना (2020–2025) आधिकारिक रूप से लागू हुई।
- 2023 – गिद्ध संरक्षण हेतु कई राज्यों में “Vulture Safe Zones” का विस्तार हुआ।
- 2025 – असम में गौहाटी विश्वविद्यालय के सहयोग से भारत का पहला गिद्ध संरक्षण पोर्टल लॉन्च हुआ।
सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता
गिद्धों का संरक्षण केवल वैज्ञानिक या सरकारी योजनाओं पर निर्भर नहीं रह सकता। स्थानीय समुदायों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- गाँवों में शव निपटान स्थलों (Carcass Dumps) का प्रबंधन।
- स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता अभियान।
- पशुपालकों को डाइक्लोफेनाक जैसी दवाओं से बचने की जानकारी देना।
- धार्मिक-सांस्कृतिक संगठनों की भागीदारी (जैसे पारसी समुदाय के लिए गिद्ध का महत्व)।
वैश्विक संदर्भ
गिद्ध संकट केवल भारत तक सीमित नहीं है। अफ्रीका, यूरोप और एशिया के कई हिस्सों में गिद्धों की संख्या घट रही है।
- अफ्रीकी देशों में गिद्धों को पारंपरिक औषधियों और अवैध व्यापार के लिए मारा जा रहा है।
- यूरोप में भी गिद्धों को बिजली के तार और कीटनाशकों से खतरा है।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन जैसे IUCN और BirdLife International गिद्ध संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर काम कर रहे हैं।
भारत का यह नया पोर्टल अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दिशा में भी मददगार साबित हो सकता है।
चुनौतियाँ
- डाइक्लोफेनाक पर प्रतिबंध के बावजूद अन्य दवाओं का दुरुपयोग।
- ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी।
- गिद्धों के लिए सुरक्षित भोजन और आवास की कमी।
- सीमित संसाधन और धनराशि।
- जलवायु परिवर्तन का अप्रत्यक्ष प्रभाव।
निष्कर्ष
गिद्धों की संख्या में आई तेज गिरावट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दशकों में ये पक्षी केवल इतिहास और किताबों में ही मिलेंगे। असम में शुरू किया गया भारत का पहला गिद्ध संरक्षण पोर्टल इस दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है। यह न केवल शोधकर्ताओं और संरक्षणवादियों को एक मंच पर लाएगा, बल्कि आम नागरिकों को भी इस मुहिम का हिस्सा बनाएगा।
गिद्ध केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि प्रकृति की उस व्यवस्था के प्रहरी हैं जो हमें रोगों से सुरक्षित रखती है। इसलिए उनका संरक्षण करना केवल पर्यावरणीय दायित्व नहीं, बल्कि मानवीय और सामाजिक कर्तव्य भी है।