ब्रिक्स (BRICS) (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) एक उभरता हुआ वैश्विक शक्ति समूह है, जिसका उद्देश्य विकासशील देशों की आवाज़ को सशक्त बनाना, वैश्विक बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देना और पश्चिमी-वर्चस्व वाली संस्थाओं का संतुलित विकल्प प्रस्तुत करना है। इस लेख में BRICS की उत्पत्ति से लेकर उसके वर्तमान विस्तार तक की विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसमें अब कुल 10 पूर्ण सदस्य और 8 साझेदार देश शामिल हैं। BRICS की आर्थिक संरचना, जैसे New Development Bank और Contingent Reserve Arrangement, न केवल वित्तीय स्थिरता को बढ़ाते हैं बल्कि डॉलर पर वैश्विक निर्भरता को भी चुनौती देते हैं।
BRICS की डीडॉलराइजेशन रणनीति, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी, और सदस्य देशों द्वारा स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने की दिशा में उठाए गए कदमों का विश्लेषण इस लेख में किया गया है। साथ ही, कज़ान (रूस) में आयोजित 2024 के 16वें BRICS शिखर सम्मेलन की थीम, निष्कर्ष और भविष्य की दिशा पर भी प्रकाश डाला गया है। भारत की भूमिका, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति, और BRICS द्वारा Global South को सशक्त बनाने के प्रयासों को भी विश्लेषणात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है। यह लेख BRICS को समझने के लिए एक व्यापक संदर्भ प्रदान करता है।
ब्रिक्स (BRICS) की अवधारणा और विकास | ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ब्रिक्स (BRICS), एक बहुपक्षीय वैश्विक शक्ति समूह है, जिसकी नींव 2001 में पड़ी जब गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने पहली बार “BRIC” शब्द का प्रयोग किया। इसमें ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन को भविष्य की उभरती आर्थिक शक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन को वैश्विक आर्थिक विकास की नई धुरी बताया। इन चारों देशों में व्यापक जनसंख्या, तीव्र आर्थिक विकास और वैश्विक व्यापार में बढ़ती भागीदारी देखी जा रही थी। 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के साथ यह समूह “BRICS” बन गया, जिसने इसे पाँच महाद्वीपों—लैटिन अमेरिका, यूरेशिया, अफ्रीका और एशिया—का प्रतिनिधित्व प्रदान किया।
आज BRICS वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक प्रभावशाली मंच बन चुका है, जो पश्चिमी वर्चस्व के विकल्प के रूप में देखा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों की आवाज़ को मज़बूती देना, वैश्विक संसाधनों तक न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करना और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को प्रोत्साहित करना है।
BRICS का विस्तार: बढ़ती वैश्विक पहुँच
BRICS अब केवल पाँच देशों तक सीमित नहीं रहा है। समय के साथ यह समूह अपने विस्तार की दिशा में आगे बढ़ा और 2024 तक इसमें कुल 10 पूर्ण सदस्य देश शामिल हो चुके हैं। ब्रिक्स (BRICS) में शामिल 10 पूर्ण सदस्य देशों के नाम हैं— ब्राजील , रूस , भारत , चीन , दक्षिण अफ्रीका , मिस्र , इथियोपिया , इंडोनेशिया , ईरान और संयुक्त अरब अमीरात। इसके अतिरिक्त, 8 साझेदार देश (Partner Countries) भी BRICS के साथ विभिन्न स्तरों पर सहयोग कर रहे हैं।
BRICS आज वैश्विक GDP का लगभग 41% और दुनिया की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है। यह आंकड़ा न केवल इसकी आर्थिक शक्ति को दर्शाता है बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव और समावेशी दृष्टिकोण को भी रेखांकित करता है। ब्रिक्स (BRICS) का यह विस्तार केवल संख्या नहीं, बल्कि वैश्विक दक्षिण की विविधता और उसकी आवाज़ को एकजुट करने का प्रयास है।
ब्रिक्स (BRICS) की संरचना और प्रमुख संस्थान
a) New Development Bank (NDB)
2014 में स्थापित यह बैंक विकासशील देशों को ऋण, अनुदान और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। यह विश्व बैंक के समांतर एक वित्तीय संस्थान के रूप में काम करता है।
b) Contingent Reserve Arrangement (CRA)
यह आपात स्थिति में मुद्रा विनिमय और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए स्थापित आरक्षित कोष है। इसका उद्देश्य IMF पर निर्भरता को कम करना है।
c) BRICS Business Council और Academic Forum
ये संस्थाएँ व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देती हैं।
ब्रिक्स (BRICS) का मुख्य उद्देश्य: सहयोग और समृद्धि
BRICS का मूल मंत्र सहयोग, समृद्धि और समावेशन है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना।
- New Development Bank (NDB) और Contingent Reserve Arrangement (CRA) जैसे संस्थानों के माध्यम से आर्थिक स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- IMF और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं में विकासशील देशों की भागीदारी और प्रभाव को बढ़ाना।
- जलवायु परिवर्तन, वैश्विक सुरक्षा और बहुध्रुवीय व्यवस्था पर मिलकर काम करना।
- Global South की एकता और आवाज़ को मज़बूत करना।
प्रमुख उपलब्धियाँ: BRICS की शक्ति और प्रभाव
a) वैश्विक GDP में महत्वपूर्ण योगदान
चीन, अकेले 2024 में वैश्विक GDP (PPP) का 19% हिस्सा प्रदान करता है। भारत, ब्राज़ील और रूस भी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
b) ऊर्जा सहयोग और नवीकरणीय निवेश
BRICS देश ऊर्जा सहयोग में आगे हैं। विशेष रूप से भारत और चीन सौर, पवन और जल विद्युत में बड़ी मात्रा में निवेश कर रहे हैं।
c) डिजिटल और AI में सहयोग
2023-24 में सदस्य देशों ने डिजिटल व्यापार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर संयुक्त कार्ययोजना बनाना शुरू किया।
d) शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास
BRICS देशों ने कोविड-19 के बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य, वैक्सीन विकास और वितरण के क्षेत्र में मिलकर काम किया।
प्रमुख संस्थान: NDB और CRA की भूमिका
BRICS के सबसे महत्वपूर्ण संस्थागत स्तंभों में New Development Bank (NDB) और Contingent Reserve Arrangement (CRA) शामिल हैं। ये दोनों संस्थाएं पारंपरिक पश्चिमी नेतृत्व वाली वित्तीय संस्थाओं का विकल्प बनकर उभरी हैं:
- NDB का मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करना और बुनियादी ढांचे तथा सतत विकास परियोजनाओं में निवेश को बढ़ाना है।
- CRA वैश्विक वित्तीय अस्थिरता की स्थिति में सदस्य देशों को मुद्रा संकट से उबारने के लिए एक सुरक्षात्मक तंत्र प्रदान करता है।
डीडॉलराइजेशन की दिशा में पहल
BRICS देशों ने हाल के वर्षों में अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। 2023 के शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार और बैंकिंग सहयोग को बढ़ावा देने की अपील की थी।
इसके बाद, जून 2024 में आयोजित BRICS विदेश मंत्रियों की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि सदस्य देश अपने आपसी व्यापार और वित्तीय लेनदेन में स्थानीय मुद्राओं का अधिक उपयोग करेंगे, जिससे डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती दी जा सके। इस रणनीति को डीडॉलराइजेशन (De-dollarization) कहा जाता है, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली में संतुलन स्थापित करने की एक कोशिश है।
डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी और अमेरिकी प्रतिक्रिया
BRICS की इस बढ़ती ताकत और डीडॉलराइजेशन की दिशा में हो रहे प्रयासों ने अमेरिका को भी सतर्क कर दिया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने BRICS को “मृत” (dead) करार देते हुए यह चेतावनी दी कि:
“यदि BRICS देश कोई संयुक्त मुद्रा (common currency) लाने या डॉलर की वैश्विक भूमिका को कमजोर करने की कोशिश करते हैं, तो अमेरिका BRICS देशों से होने वाले सभी आयात पर 100% टैरिफ लगाएगा।”
यह चेतावनी न केवल अमेरिकी आर्थिक रणनीति को दर्शाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि BRICS की नीतियों का वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन पर प्रभाव पड़ रहा है।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2024: कज़ान, रूस
BRICS का 16वां शिखर सम्मेलन वर्ष 2024 में रूस के कज़ान शहर में 22 से 24 अक्टूबर के बीच आयोजित किया गया। इस शिखर सम्मेलन में वैश्विक सहयोग, विकास और सामूहिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श हुआ। सदस्य देशों ने जलवायु परिवर्तन, वैश्विक महामारी, ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी समावेशन जैसे विषयों पर सामूहिक रणनीतियों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। BRICS का 16वां शिखर सम्मेलन वर्ष 2024 की थीम थी:
“न्यायसंगत वैश्विक विकास और सुरक्षा के लिए बहुपक्षवाद को सशक्त बनाना।”
BRICS का 16वां शिखर सम्मेलन वर्ष 2024 की मुख्य चर्चाएँ:
- जलवायु संकट और वैश्विक गर्मी से निपटने की रणनीति।
- संयुक्त मुद्रा की व्यवहार्यता पर चर्चा।
- आतंकवाद और साइबर सुरक्षा पर सहयोग।
- BRICS NDB का विस्तार और नई फंडिंग योजनाएँ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आगामी ब्रिक्स सम्मेलन 2025
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 6-7 जुलाई 2025 को ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित होने वाले BRICS शिखर सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है। यह सम्मेलन BRICS के भविष्य के एजेंडे को आकार देगा, विशेष रूप से भारत की भूमिका को सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा।
भारत ने BRICS में लगातार नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है और तकनीकी, ऊर्जा, डिजिटल व्यापार और वैश्विक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में समूह के भीतर सहयोग को बढ़ावा दिया है।
ब्रिक्स (BRICS) में भारत की भूमिका और भविष्य की रणनीति
भारत BRICS के शुरुआती संस्थापक सदस्यों में से है और लगातार समूह के भीतर सक्रिय भूमिका निभा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति रही है कि भारत को Global South के लिए एक विश्वसनीय नेतृत्वकर्ता बनना चाहिए।
भारत की प्राथमिकताएँ:
- तकनीक और डिजिटल इनोवेशन में सहयोग।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संयुक्त नीति।
- स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता।
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ समन्वित प्रयास।
2025 में ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में BRICS सम्मेलन आयोजित होना है, जिसमें नरेंद्र मोदी के भाग लेने की प्रबल संभावना है।
ब्रिक्स (BRICS) | भविष्य की दिशा: संभावनाएँ और चुनौतियाँ
संभावनाएँ:
- BRICS एक ऐसी आवाज़ है जो विकासशील देशों के हक़ में बोलती है।
- इसके पास संसाधन, जनसंख्या और रणनीतिक दृष्टि है।
- यह पश्चिमी एकाधिकार को चुनौती देकर वैश्विक लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ सकता है।
चुनौतियाँ:
- सदस्य देशों के आपसी मतभेद (भारत-चीन तनाव)।
- संयुक्त मुद्रा का व्यावहारिक कार्यान्वयन।
- अमेरिका और यूरोपीय यूनियन का दबाव।
ब्रिक्स (BRICS)—एक नव विश्व व्यवस्था की ओर
BRICS आज केवल एक आर्थिक या राजनीतिक मंच नहीं है, बल्कि यह विकासशील देशों की आकांक्षाओं का प्रतीक बन चुका है। यह समूह बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था, समावेशी विकास और न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके संस्थागत ढांचे, विस्तारवादी दृष्टिकोण और रणनीतिक सहयोग इसे आने वाले वर्षों में और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं।
हालाँकि अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियों की चिंताओं के चलते BRICS को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, फिर भी इसके उद्देश्यों और प्रयासों में सामूहिकता और दीर्घकालिक दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
भारत, एक प्रमुख सदस्य के रूप में, BRICS के इस विकासशील सफर में न केवल भागीदार है, बल्कि वह इसकी दिशा और दृष्टि को भी आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत सहित सभी सदस्य देशों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने अंतरविरोधों को भुलाकर विकासशील दुनिया के लिए एक संयुक्त भविष्य का निर्माण करें।
Polity – KnowledgeSthali
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