भारत-रूस संबंध: 23वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के संदर्भ में रणनीतिक साझेदारी का व्यापक विश्लेषण

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 04–05 दिसंबर 2025 को भारत यात्रा और 23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भागीदारी ने दोनों देशों के बीच दशकों पुराने रणनीतिक संबंधों को एक नई गति प्रदान की है। यह यात्रा न केवल दो राष्ट्राध्यक्षों के बीच उच्च-स्तरीय कूटनीतिक वार्ता का अवसर है, बल्कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत और रूस की प्राथमिकताओं, चुनौतियों और रणनीतिक हितों को पुनर्परिभाषित करने का भी महत्वपूर्ण क्षण है।

भारत और रूस के संबंध केवल दो देशों के बीच राजनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और बहुपक्षीय मंचों पर व्यापक सहयोग का एक गहरा इतिहास रखते हैं। शीत युद्ध काल से वर्तमान तक यह संबंध स्थिरता, विश्वास, पारस्परिक सहयोग और वैश्विक संतुलन की समझ पर आधारित रहा है।

इस लेख में भारत-रूस संबंधों के विभिन्न आयामों—राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा, सांस्कृतिक साझेदारी और बहुपक्षीय सहयोग—का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।

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भारत-रूस संबंध: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और रणनीतिक आधार

भारत और रूस (पूर्व सोवियत संघ) के बीच संबंधों की जड़ें 1950 के दशक में उस दौर से मिलती हैं जब भारत ने शीत युद्ध के समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि भारत किसी भी ध्रुव का हिस्सा नहीं बना, लेकिन सोवियत संघ के साथ संबंध निरंतर मजबूत रहे।

भारत-रूस संबंधों की प्रमुख ऐतिहासिक विशेषताएँ:

  • 1971 की भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि दोनों देशों के संबंधों में निर्णायक मोड़ साबित हुई।
  • रूस ने भारत के औद्योगिक विकास, खासकर इस्पात कारखानों, भारी मशीनरी और ऊर्जा क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • रक्षा और सामरिक सहयोग की मजबूत नींव इसी काल में पड़ी।
  • सोवियत संघ के विघटन के बाद भी रूस के साथ संबंधों में निरंतरता बनी रही।

आज भारत-रूस संबंधों को “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” का दर्जा प्राप्त है, जो भारत की विदेश नीति में अनूठा स्थान रखती है।

राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा और 23वें शिखर सम्मेलन का महत्व

राष्ट्रपति पुतिन की 2025 की यह यात्रा कई दृष्टियों से खास है—

  • यह शिखर सम्मेलन दोनों देशों के सर्वोच्च स्तरीय संस्थागत तंत्र का आधार है।
  • यह वार्षिक आयोजन सहयोग की समीक्षा और नई समझौतों पर चर्चा का प्रमुख मंच है।
  • रूस वर्तमान विश्व व्यवस्था में पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहा है, जबकि भारत बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के पक्ष में है—ऐसे समय में यह बैठक दोनों देशों के रणनीतिक समीकरणों को और मजबूती देती है।

यह सम्मेलन राजनीतिक, रक्षा, आर्थिक और तकनीकी-सहयोग के क्षेत्रों में नए आयाम जोड़ने का अवसर प्रदान करता है।

राजनीतिक संबंध: बहुस्तरीय और गहराते हुए

भारत और रूस के राजनीतिक संबंध व्यापक और बहुआयामी हैं।

(क) शीर्ष-स्तरीय संवाद

दोनों देशों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन सर्वोच्च राजनीतिक तंत्र है, जिसमें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति स्तर पर निर्णय लिए जाते हैं। इससे नीतिगत निरंतरता और रणनीतिक विश्वास को मजबूती मिलती है।

(ख) 2+2 मंत्री स्तरीय वार्ता

विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच 2+2 संवाद भारत द्वारा केवल कुछ देशों के साथ संचालित होता है, जिसमें रूस भी शामिल है।
यह वार्ता:

  • रक्षा सहयोग
  • रणनीतिक समीकरण
  • क्षेत्रीय सुरक्षा
  • कूटनीतिक समन्वय
    जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहती है।

(ग) अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC)

भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग दो भागों में कार्य करता है:

  • IRIGC-TEC (आर्थिक और व्यापार)
  • IRIGC-MTC (सैन्य-तकनीकी सहयोग)

अगस्त 2025 में विदेश मंत्री की रूस यात्रा के दौरान 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य पुनः दोहराया गया।

आर्थिक और व्यापारिक संबंध: नई संभावनाएँ और चुनौतियाँ

भारत और रूस का आर्थिक संबंध पारंपरिक रूप से ऊर्जा, रक्षा और औद्योगिक सहयोग पर आधारित रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में व्यापार में असंतुलन एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।

वर्तमान व्यापार परिदृश्य (2024–25)

  • कुल व्यापार: 68.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर
  • भारत का निर्यात: 4.9 बिलियन डॉलर
  • रूस से आयात: 63.8 बिलियन डॉलर

चूंकि भारत बड़े पैमाने पर रूसी तेल का आयात कर रहा है, इसलिए व्यापार असंतुलन स्वाभाविक है।

व्यापार बढ़ाने की प्रमुख रणनीतियाँ:

  • टैरिफ एवं गैर-टैरिफ बाधाओं को खत्म करना
  • शिपिंग और लॉजिस्टिक्स में सुधार
  • आसान भुगतान प्रणाली (भारत-रूस भुगतान तंत्र)
  • उत्तरी समुद्री मार्ग (Arctic Route) पर सहयोग

निवेश लक्ष्य:

  • 2025 तक द्विपक्षीय निवेश: 50 बिलियन डॉलर
  • 2030 तक सालाना व्यापार: 100 बिलियन डॉलर

रक्षा सहयोग: भारत-रूस साझेदारी की रीढ़

भारत-रूस रक्षा संबंध दशकों से भारत की सुरक्षा संरचना के मूल आधार रहे हैं।

मुख्य विशेषताएँ:

  • 2021–2031 का सैन्य-तकनीकी सहयोग समझौता
  • क्रेता-विक्रेता के पार जाकर संयुक्त अनुसंधान, विकास और सह-उत्पादन

महत्वपूर्ण रक्षा परियोजनाएँ:

  • ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल (भारत-रूस संयुक्त उपक्रम)
  • सुखोई SU-30MKI लड़ाकू विमान
  • टी-90 भीष्म टैंक
  • एस-400 वायु रक्षा प्रणाली
  • आईएनएस विक्रमादित्य – रूस से खरीदा गया एयरक्राफ्ट कैरियर
  • AK-203 असॉल्ट राइफल्स का भारत में उत्पादन

2025 के प्रमुख सैन्य अभ्यास:

  • इंद्र-2025 (नौसेना अभ्यास)
  • जैपड-2025 (थल एवं वायु सेना अभ्यास)

इन अभ्यासों से दोनों सेनाओं के बीच इंटरऑपरेबिलिटी और रणनीतिक समन्वय बढ़ता है।

संसदीय एवं प्रशासनिक सहयोग

भारत और रूस के बीच संसदीय सहयोग भी मजबूत होता जा रहा है।

  • लोकसभा और रूसी स्टेट ड्यूमा के बीच अंतर-संसदीय आयोग सक्रिय है।
  • 2025 में अनेक भारतीय सांसदों ने रूस का दौरा किया और आतंकवाद-रोधी सहयोग, सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों और नीतिगत समन्वय पर चर्चा की।

यह सहयोग लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, विधायी कार्यों और नीतिगत समन्वय को गहरा करता है।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष सहयोग

भारत-रूस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में लंबे समय से साझेदार रहे हैं।

मुख्य सहयोग क्षेत्र:

  • अंतरिक्ष तकनीक
  • नैनो टेक्नोलॉजी
  • सामग्री विज्ञान
  • परमाणु ऊर्जा
  • एआई और साइबर सुरक्षा

महत्वपूर्ण परियोजनाएँ:

  • गगनयान मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन में रूस का सहयोग
  • कुडनकुलम परमाणु विद्युत संयंत्र – रूस की तकनीकी सहायता से निर्मित
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संयुक्त कार्य-समूह की नियमित बैठकें

शिक्षा और मानव संसाधन विकास

भारत और रूस के बीच शिक्षा संबंध भी लगातार बढ़ रहे हैं।

मुख्य बिंदु:

  • शैक्षणिक आदान-प्रदान कार्यक्रम (EEP)
  • उच्च शिक्षा नेटवर्क (RIN)
  • SPARC और GIAN जैसे कार्यक्रम
  • लगभग 20,000 भारतीय छात्र रूस में विशेष रूप से मेडिकल और तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं
  • रूस की ITEC स्कॉलरशिप में भारत की सक्रिय भागीदारी

भारतीय छात्रों के लिए रूस उच्च गुणवत्ता वाली मेडिकल शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन चुका है।

सांस्कृतिक संबंध: एक सदियों पुराना जुड़ाव

भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव राजनीतिक संबंधों से कहीं अधिक पुराना और गहरा है।

मुख्य सांस्कृतिक आयाम:

  • मॉस्को में जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र (JNCC) द्वारा संचालित गतिविधियाँ
  • योग, भारतीय नृत्य (कथक, भरतनाट्यम), संगीत और आयुर्वेद रूसी समाज में अत्यंत लोकप्रिय
  • ICCR और रूसी संस्कृति मंत्रालय द्वारा संयुक्त सांस्कृतिक कार्यक्रम
  • भारत उत्सव, रूस उत्सव जैसे वार्षिक आयोजन

दोनों देशों के नागरिकों के बीच सद्भाव और सांस्कृतिक समानता यह दर्शाती है कि भारतीय कला और संस्कृति रूस में कितनी प्रभावशाली है।

बहुपक्षीय मंचों पर भारत-रूस सहयोग

भारत और रूस कई वैश्विक मंचों पर साझेदार हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • संयुक्त राष्ट्र
  • ब्रिक्स (BRICS)
  • शंघाई सहयोग संगठन (SCO)
  • जी-20
  • आर्कटिक परिषद

दोनों देश वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज को मजबूत करने के पक्षधर हैं और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को समर्थन देते हैं।

भविष्य की संभावनाएँ: बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत-रूस साझेदारी

वर्तमान वैश्विक राजनीति — विशेषकर रूस-यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंध, एशिया में प्रतिस्पर्धा और ऊर्जा सुरक्षा — भारत और रूस के संबंधों को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।

भविष्य के प्रमुख सहयोग क्षेत्र:

  • आर्कटिक क्षेत्र में ऊर्जा सहयोग
  • नई भुगतान प्रणालियाँ (रुपया–रूबल व्यापार)
  • रक्षा तकनीक और स्वदेशीकरण
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था
  • हरित ऊर्जा
  • मैरीटाइम कनेक्टिविटी

भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए रूस के साथ साझेदारी को और मजबूत बनाए रखने की दिशा में अग्रसर है।

निष्कर्ष

23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन ने दोनों देशों के बीच बहुआयामी सहयोग को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाने का अवसर प्रदान किया है। आज भारत और रूस केवल पारंपरिक रणनीतिक साझेदार नहीं बल्कि उभरते वैश्विक परिदृश्य में एक-दूसरे के महत्वपूर्ण सहयोगी हैं।

राजनीतिक संवाद, रक्षा सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा, संस्कृति और बहुपक्षीय मंचों पर समन्वय—ये सभी क्षेत्र भारत-रूस संबंधों की मजबूती को दर्शाते हैं।

आने वाला दशक भारत और रूस की साझेदारी के लिए निर्णायक हो सकता है, जहाँ दोनों राष्ट्र अपने सामरिक हितों, आर्थिक अवसरों और वैश्विक नेतृत्व की आकांक्षाओं के अनुरूप सहयोग के नए आयाम स्थापित करेंगे। यह संबंध भारत को न केवल वैश्विक मंच पर अपनी रणनीतिक भूमिका बढ़ाने में सहायक है, बल्कि तकनीकी, आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति के रूप में उभरने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।


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