मुस्लिम लीग | 1906 ई.-1947 ई.

मुस्लिम लीग का मूल नाम ‘अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’ था। यह एक राजनीतिक समूह था, जिसने ब्रिटिश भारत के विभाजन (1947 ई.) से निर्मित एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के लिए आन्दोलन चलाया। मुस्लिम नेताओं, विशेषकर मुहम्मद अली जिन्ना ने इस बात का भय जताया कि स्वतंत्र होने पर भारत में सिर्फ़ हिन्दुओं का ही वर्चस्व रहेगा। इसीलिए उन्होंने मुस्लिमों के लिए अलग से एक राष्ट्र की मांग को बार-बार दुहराया।

मुस्लिम लीग का इतिहास

ढाका नामक स्थान पर सन 1906 ई में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना की गई। महमडिं शैक्षणिक सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन के समाप्त होने पर उपमहाद्वीप के विभिन्न राज्यों से आए मुस्लिम ईतिदीन ने ढाका नवाब सलीम उल्लाह खान के निमंत्रण पर एक विशेष सम्मेलन किया गया।इस सम्मलेन में फैसला किया गया कि मुसलमानों की राजनीतिक मार्गदर्शन के लिए एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया जाए। हालाँकि सर सैय्यद ने मुसलमानों को राजनीति से दूर रहने का सुझाव दिया था।

मुस्लिम लीग | 1906 ई.-1947 ई.

परन्तु 20वीं सदी के आरंभ से ही कुछ ऐसी घटनाये घटित होने लगी कि मुसलमान एक राजनीतिक मंच बनाने की जरूरत महसूस करने लगे। और ढाका बैठक की अध्यक्षता नवाब प्रतिष्ठा आलमल ने की। इस बैठक में नवाब मोहसिन आलमल, मोलानामहमद अली जौहर, मौलाना जफर अली खान, हकीम अजमल खां और नवाब सलीम अल्लाह खान समेत कई महत्त्वपूर्ण मुस्लिम आबरीन मौजूद थे। मुस्लिम लीग का पहला प्रेसिडेंट सर आग़ा खान को चुना गया। इसका केंद्रीय कार्यालय अलीगढ़ में स्थापित हुआ। और सभी राज्यों में इसकी शाखाएं बनाई गईं। ब्रिटेन में मुस्लिम लीग की लंदन शाखा का अध्यक्ष सैयद अमीर अली को बनाया गया।

बंगाल का विभाजन और मुस्लिम लीग

मुस्लिम लीग | 1906 ई.-1947 ई.

बंगाल के विभाजन ने सांप्रदायिक विभाजन को भी जन्म दे दिया| 30 दिसंबर,1906 को ढाका के नवाब आगा खां और नवाब मोहसिन-उल-मुल्क  के नेतृत्व में भारतीय मुस्लिमों के अधिकारों की रक्षा के लिए मुस्लिम लीग का गठन किया गया| प्रारंभ में इसे ब्रिटिशों द्वारा काफी सहयोग मिला लेकिन जब इसने स्व-शासन के विचार को अपना लिया,तो ब्रिटिशों से मिलने वाला सहयोग समाप्त हो गया|

1908 में लीग के अमृतसर अधिवेशन में सर सैय्यद अली इमाम की अध्यक्षता में मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की गयी जिसे ब्रिटिशों ने 1909 के मॉर्ले-मिन्टो सुधारों द्वारा पूरा कर दिया|मौलाना मुहम्मद अली ने अपने लीग विरोधी विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए  अंग्रेजी जर्नल ‘कामरेड’  और उर्दू पत्र ‘हमदर्द’  को प्रारंभ किया| उन्होंने ‘अल-हिलाल’ की भी शुरुआत की जोकि उनके राष्ट्रवादी विचारों का मुखपत्र था|

मुस्लिम लीग की स्थापना

1 अक्टूबर, 1906 ई. को एच.एच. आगा ख़ाँ के नेतृत्व में मुस्लिमों का एक दल वायसराय लॉर्ड मिण्टो से शिमला में मिला। अलीगढ़ कॉलेज के प्रिंसपल आर्चबोल्ड इस प्रतिनिधिमण्डल के जनक थे। इस प्रतिनिधिमण्डल ने वायसराय से अनुरोध किया कि प्रान्तीय, केन्द्रीय व स्थानीय निर्वाचन हेतु मुस्लिमों के लिए पृथक् साम्प्रादायिक निर्वाचन की व्यवस्था की जाय।

इस शिष्टमण्डल को भेजने के पीछे अंग्रेज़ उच्च अधिकारियों का हाथ था। मिण्टो ने इनकी मांगो का पूर्ण समर्थन किया। जिसके फलस्वरूप मुस्लिम नेताओं ने ढाका के नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में 30 दिसम्बर, 1906 ई. को ढाका में ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना की।

सलीमुल्ला ख़ाँ ‘मुस्लिम लीग’ के संस्थापक व अध्यक्ष थे, जबकि प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता मुश्ताक हुसैन ने की। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था- ‘भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति भक्ति उत्पत्र करना व भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारो की रक्षा करना।

‘ ‘मुस्लिम लीग’ ने अपने अमृतसर के अधिवेशन में मुस्लिमों के पृथक् निर्वाचक मण्डल की मांग की, जो 1909 ई. में मार्ले-मिण्टो सुधारों के द्वारा प्रदान कर दिया गया। मुस्लिम लीग ने 1916 ई. के ‘लखनऊ समझौते’ के आधार पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन करने के अतिरिक्त कभी भी भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों की मांग नहीं की।

मुस्लिम लीग को प्रारंभ में ‘अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’ नाम से जाना जाता था। अपने निर्माण के समय अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (ऑल इंडिया मुस्लिम लीग) ब्रिटिश भारत में एक राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरी थी और उपमहाद्वीप में मुस्लिम राज्य की स्थापना में सबसे कारफरमा शक्ति थी।

भारतीय विभाजन के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग अपना नाम भारत में बदल कर एक नया नाम इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग के रूप में स्थापित हुई। और इस नए नाम इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ इस पार्टी ने दूसरी पार्टियों के साथ शामिल हो कर सरकार बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पाकिस्तान के गठन हो जाने के बाद मुस्लिम लीग अनेक मौकों पर सरकार में शामिल रही है। भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना के बाद, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग को औपचारिक रूप से भारत में भंग कर दिया गया और बचे हुए मुस्लिम लीग को एक छोटी पार्टी में तब्दील कर दिया गया, वह भी केवल केरल और भारत में।

जबकि बांग्लादेश में, 1976 में मुस्लिम लीग को पुनर्जीवित किया गया था, लेकिन इसे आकार में अत्यंत छोटा कर दिया गया, जिससे यह राजनीतिक क्षेत्र में महत्वहीन हो गया। पुनः भारत में, इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग नामक एक अलग स्वतंत्र इकाई का गठन किया गया, जो आज भी भारतीय संसद में मौजूद है। और पाकिस्तान में यह पाकिस्तान मुस्लिम लीग नाम से स्थापित हुई परन्तु पाकिस्तान में यह अंततः कई राजनीतिक दलों में विभाजित हो गई, और ये दल अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के उत्तराधिकारी बन गए।

पाकिस्तान के लिए संघर्ष

मुस्लिम लीग | 1906 ई.-1947 ई.

1908 में लीग के अमृतसर अधिवेशन में सर सैय्यद अली इमाम की अध्यक्षता में मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की गयी जिसे ब्रिटिशों ने 1909 के मॉर्ले-मिन्टो सुधारों द्वारा पूरा कर दिया|मौलाना मुहम्मद अली ने अपने लीग विरोधी विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए  अंग्रेजी जर्नल ‘कामरेड’  और उर्दू पत्र ‘हमदर्द’  को प्रारंभ किया| उन्होंने ‘अल-हिलाल’ की भी शुरुआत की जोकि उनके राष्ट्रवादी विचारों का मुखपत्र था|

पाकिस्तान के लिए संघर्ष 1940 ईस्वी को मुस्लिम लीग के लाहौरी अधिवेशन में अध्यक्षता करते हुए मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत में अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की माँग की। मुस्लिम लीग के 1940 ईस्वी के दिल्ली अधिवेशन में खालीकुजमान ने पाकिस्तान नाम से अलग राष्ट्र का प्रस्ताव रखा, जबकि “पाकिस्तान” शब्द के जन्मदाता ‘चौधरी रहमत अली थे।

मुस्लिम लीग को प्रोत्साहित करने वाले कारक

  • ब्रिटिश योजना– ब्रिटिश भारतीयों को साम्प्रदायिक आधार पर बाँटना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने भारतीय राजनीति में विभाजनकारी प्रवृत्ति का समावेश किया। इसका प्रमाण पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था करना और ब्राह्मणों व गैर-ब्राह्मणों के बीच जातिगत राजनीति का खेल खेलना था।
  • शिक्षा का अभाव-मुस्लिम पश्चिमी व तकनीकी शिक्षा से अछूते थे।
  • मुस्लिमों की संप्रभुता का पतन-1857 की क्रांति ने ब्रिटिशों को यह सोचने पर मजबूर किया कि मुस्लिम उनकी औपनिवेशिक नीतियों के लिए खतरा हो सकते है क्योकि मुग़ल सत्ता को हटाकर ही उन्होंने अपने शासन की नींव रखी थी।
  • धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति-अधिकतर इतिहासकारों और उग्र-राष्ट्रवादियों ने भारतीय सामाजिक संस्कृति के एक पक्ष को ही महिमामंडित किया। उन्होंने शिवाजी, राणा प्रताप आदि की तो प्रशंसा की लेकिन अकबर, शेरशाह सूरी, अलाउद्दीन खिलजी, टीपू सुल्तान आदि के बारे में मौन बने रहे।
  • भारत का आर्थिक पिछड़ापन– औद्योगीकीकरण के अभाव में बेरोजगारी ने भीषण रूप धारण कर लिया था और घरेलु उद्योगों के प्रति ब्रिटिशों का रवैया दयनीय था।

लीग के गठन के उद्देश्य

  • भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा को प्रोत्साहित करना।
  • भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारों की रक्षा करना और उनकी जरुरतों व उम्मीदों को सरकार के समक्ष प्रस्तुत करना।
  • मुस्लिमों में अन्य समुदायों के प्रति विरोध भाव को कम करना।

संगठन की अक्षमता

मुहम्मद अली जिन्ना तथा ‘मुस्लिम लीग‘ ने ब्रिटिश भारत को हिन्दू व मुस्लिम राष्ट्रों में विभाजित करने की माँग वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया और 1947 ई. में पाकिस्तान के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई। इसी साल इसका नाम बदलकर ‘ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ कर दिया गया, लेकिन पाकिस्तान में आधुनिक राजनीतिक दल के रूप में लीग उतने कारगर ढंग से काम नहीं कर सकी, जैसा यह ब्रिटिश भारत में जनआधारित दबाव गुट के रूप में काम करती थी और इस तरह से धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता व संगठन की क्षमता घटती चली गई। 

1954 ई. के चुनावों में ‘मुस्लिम लीग’ ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में सत्ता खो दी और इसके तुरन्त बाद ही पार्टी ने ‘पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान)’ में भी सत्ता खो दी। 1960 के दशक के अन्त में पार्टी विभिन्न गुटों में बँट गई और 1970 ई. के दशक तक यह पूरी तरह से ग़ायब हो चुकी थी।


इन्हें भी देखें –

1 thought on “मुस्लिम लीग | 1906 ई.-1947 ई.”

Leave a Comment

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.