भारत ने हाल ही में दूसरा राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस बड़े उत्साह और गर्व के साथ मनाया। यह दिवस केवल चंद्रयान-3 की सफलता का उत्सव नहीं था, बल्कि इसने भारत की बढ़ती अंतरिक्षीय क्षमताओं और महत्वाकांक्षाओं को भी रेखांकित किया। आज भारत गगनयान जैसे मानव-सहित मिशनों और अन्य गहन अंतरिक्ष अभियानों की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इस प्रगति के बावजूद एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत के पास अभी तक कोई समग्र राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून (National Space Law) नहीं है।
विश्व की प्रमुख अंतरिक्ष शक्तियों जैसे अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ के देशों ने अपनी घरेलू आवश्यकताओं के अनुसार अंतरिक्ष कानून बनाए हैं। वहीं भारत, जो विश्व के सबसे उभरते हुए अंतरिक्ष बाजारों में से एक है, अभी तक व्यापक और समेकित कानूनी ढांचे से वंचित है। इस कारण न केवल निजी क्षेत्र की भागीदारी, बल्कि विदेशी निवेश और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी सीमित दायरे में है।
इस लेख में हम विस्तार से चर्चा करेंगे कि राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून क्या है, इसकी वैश्विक पृष्ठभूमि क्या रही है, भारत की वर्तमान स्थिति क्या है, और आने वाले समय में भारत के लिए इसकी आवश्यकता क्यों अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून क्या है?
राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून किसी देश का घरेलू कानूनी ढांचा होता है, जिसके अंतर्गत उसकी समस्त अंतरिक्ष गतिविधियों को विनियमित किया जाता है।
- यह कानून सुनिश्चित करता है कि देश अपनी अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियों (विशेषकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाई गई संधियों) का पालन करे।
- यह सरकारी संस्थाओं, निजी क्षेत्र और निवेशकों के लिए लाइसेंसिंग, दायित्व, बीमा, सुरक्षा और वाणिज्यिक अधिकारों से जुड़ी स्पष्टता प्रदान करता है।
- इस प्रकार यह कानून अंतरिक्ष उद्योग की दिशा और गति तय करने वाला प्रमुख साधन बन जाता है।
वैश्विक अंतरिक्ष कानून : एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1. आउटर स्पेस ट्रिटी (Outer Space Treaty – OST), 1967
1967 की यह संधि आधुनिक अंतरिक्ष कानून की बुनियाद मानी जाती है। इसके प्रमुख प्रावधान थे –
- अंतरिक्ष सभी मानव जाति का साझा क्षेत्र है।
- कोई भी देश किसी आकाशीय पिंड (जैसे चंद्रमा या ग्रह) पर अपना अधिकार स्थापित नहीं कर सकता।
- प्रत्येक देश अपने क्षेत्राधिकार में होने वाली सभी अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होगा, चाहे वे सरकारी हों या निजी कंपनियों द्वारा।
- अंतरिक्ष का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होना चाहिए।
यह संधि आज भी अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए आधारभूत ढांचा मानी जाती है।
2. सहायक संधियाँ (Companion Agreements)
(क) लायबिलिटी कन्वेंशन, 1972
- यदि किसी अंतरिक्ष वस्तु (जैसे उपग्रह, रॉकेट या अंतरिक्ष मलबा) से किसी अन्य देश को नुकसान होता है, तो उसका राज्य जिम्मेदार होगा।
- इससे अंतरिक्ष गतिविधियों में सुरक्षा और दायित्व सुनिश्चित हुआ।
(ख) रजिस्ट्रेशन कन्वेंशन, 1976
- प्रत्येक देश को अपनी सभी अंतरिक्ष वस्तुओं का पंजीकरण करना आवश्यक है।
- इससे अंतरिक्ष गतिविधियों में पारदर्शिता आई।
(ग) मून एग्रीमेंट, 1979
- इसमें कहा गया कि चंद्रमा और अन्य खगोलीय संसाधन समस्त मानव जाति की साझा धरोहर हैं।
- हालांकि, बहुत कम देशों ने इसे स्वीकार किया।
- भारत भी इस समझौते का पक्षधर नहीं है।
भारत का वर्तमान कानूनी और नीतिगत ढांचा
भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों को स्वीकार किया है। परंतु अभी तक उसके पास एक व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून नहीं है।
1. भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023
- इसमें सरकार और निजी क्षेत्र की भूमिकाओं का निर्धारण किया गया।
- नीति का उद्देश्य था कि निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाई जाए और ISRO केवल अनुसंधान और नवाचार पर केंद्रित रहे।
2. IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre)
- यह संस्था निजी कंपनियों की गतिविधियों के लिए अनुमोदन और नियमन का कार्य करती है।
- IN-SPACe ने भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को वाणिज्यिक अवसरों के लिए खोलने का रास्ता तैयार किया है।
3. भारतीय अंतरिक्ष उद्योग मानक
- तकनीकी सुरक्षा और संचालन के लिए विस्तृत मानक और दिशानिर्देश बनाए गए हैं।
4. मानक, दिशानिर्देश और प्रक्रियाएँ 2023
- यह निजी कंपनियों के लिए अनुमोदन प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।
- इसका उद्देश्य निवेशकों को भरोसा दिलाना है कि भारत में निजी अंतरिक्ष उद्यम सुरक्षित और विनियमित हैं।
राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता क्यों?
1. कानूनी स्पष्टता और स्थिरता
- एक समग्र कानून से सरकार, निजी क्षेत्र और विदेशी निवेशकों को कानूनी सुरक्षा और स्पष्टता मिलती है।
- इससे ब्यूरोक्रेटिक बाधाएँ कम होती हैं और संचालन सरल बनता है।
- दुर्घटनाओं, अंतरिक्ष मलबे और दायित्व से संबंधित नियम स्पष्ट हो जाते हैं।
2. अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियों का अनुपालन
- भारत Outer Space Treaty का हस्ताक्षरकर्ता है।
- इसलिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भारत की सभी अंतरिक्ष गतिविधियाँ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों।
3. निजी क्षेत्र और निवेश को बढ़ावा
- स्पष्ट नियम निजी कंपनियों को निवेश और नवाचार के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
- इससे स्टार्टअप्स भारत छोड़कर विदेशों में काम करने के बजाय यहीं विकसित हो सकेंगे।
- विदेशी निवेशक भी तभी भरोसा करेंगे जब उनके अधिकार, दायित्व और लाइसेंसिंग प्रक्रिया पारदर्शी होंगी।
4. उच्च मूल्य वाले संसाधनों की सुरक्षा
- आने वाले समय में चंद्रमा और क्षुद्रग्रहों से संसाधन लाने की होड़ बढ़ेगी।
- ऐसे में बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और संसाधन प्रबंधन के स्पष्ट प्रावधान आवश्यक हैं।
5. नवाचार और प्रतिभा संरक्षण
- यदि भारत में उचित कानूनी ढांचा होगा तो वैज्ञानिक, शोधकर्ता और स्टार्टअप्स अपनी प्रतिभा देश में ही लगाएंगे।
- इससे भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बना रहेगा।
भारत के लिए संभावित लाभ
यदि भारत एक समग्र राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून लागू करता है, तो इसके कई बहुआयामी लाभ होंगे –
- आर्थिक लाभ
- वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग 2030 तक ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत अपने हिस्से को बढ़ाकर निर्यात और निवेश से बड़ी आय अर्जित कर सकेगा।
- रोज़गार सृजन
- अंतरिक्ष क्षेत्र में हजारों स्टार्टअप्स और MSMEs को अवसर मिलेगा।
- इससे इंजीनियरिंग, डेटा विश्लेषण, एआई और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में लाखों रोजगार उत्पन्न होंगे।
- वैज्ञानिक प्रगति
- गगनयान, मंगल मिशन और गहन अंतरिक्ष अभियानों के लिए निजी–सार्वजनिक सहयोग आसान होगा।
- कूटनीतिक शक्ति
- भारत वैश्विक अंतरिक्ष शासन (Global Space Governance) में सशक्त आवाज़ बन सकेगा।
अन्य देशों से भारत क्या सीख सकता है?
- अमेरिका : 2015 में “U.S. Commercial Space Launch Competitiveness Act” लाया गया, जिसमें निजी कंपनियों को अंतरिक्ष संसाधन निकालने का अधिकार दिया गया।
- लक्समबर्ग : 2017 में स्पेस रिसोर्सेज लॉ लाया, जिसने उसे स्पेस माइनिंग का हब बना दिया।
- चीन : राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रम पर सरकारी नियंत्रण बनाए रखते हुए निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया।
भारत इन मॉडलों से सीख लेकर अपना संतुलित ढांचा तैयार कर सकता है।
चुनौतियाँ
- अंतरिक्ष मलबे का प्रबंधन।
- साइबर सुरक्षा और उपग्रह डेटा की गोपनीयता।
- लाइसेंसिंग और दायित्व से जुड़े जटिल प्रश्न।
- अंतर्राष्ट्रीय संधियों के बीच राष्ट्रीय हित और वैश्विक प्रतिबद्धताओं का संतुलन।
निष्कर्ष
भारत की अंतरिक्ष यात्रा अब केवल वैज्ञानिक अनुसंधान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक शक्ति का साधन बन चुकी है। ऐसे में राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता अनिवार्य हो जाती है।
यह कानून न केवल निजी और वाणिज्यिक गतिविधियों को विनियमित और प्रोत्साहित करेगा, बल्कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक जिम्मेदार और अग्रणी अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित करेगा।
“यदि भारत समय रहते समग्र राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून लागू कर देता है, तो वह न केवल चंद्रमा और मंगल जैसे खगोलीय पिंडों पर अपनी सशक्त उपस्थिति स्थापित करेगा, बल्कि आने वाले दशकों में वैश्विक अंतरिक्ष शासन और नीति-निर्माण में अग्रणी नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकेगा।”
इन्हें भी देखें –
- आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का संशोधित आदेश: नागरिक सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station – BAS)
- केरल भारत का पहला पूर्णतः डिजिटल साक्षर राज्य बना
- इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA): भारत को “सोलर की सिलिकॉन वैली” बनाने की दिशा में वैश्विक पहल
- स्यूडोमोनास एरुगिनोसा : संक्रमण क्षमता, हालिया अनुसंधान और चिकित्सीय दृष्टिकोण