हिंदी साहित्य का इतिहास विभिन्न कालखंडों में विभाजित है। इनमें रीतिकाल एक अत्यंत महत्वपूर्ण काल है, जिसे काव्यशास्त्र, श्रृंगार रस और नायिकाभेद का युग कहा जाता है। इस काल का समय लगभग 1650 ईस्वी से 1850 ईस्वी तक माना जाता है। रीतिकाल का साहित्य हिंदी काव्य परंपरा में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है क्योंकि इसमें एक ओर अलंकारों और रसों का सूक्ष्म विवेचन हुआ है तो दूसरी ओर श्रृंगार के विविध रूपों का कलात्मक चित्रण भी हुआ।
रीतिकाल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस युग में कविता को नियमबद्धता और रीति (काव्यशास्त्र) से जोड़ा गया। इसलिए इस काल को “रीतिकाल” कहा गया। इस काल में बड़ी संख्या में कवियों ने काव्य की रचना की और उनकी कृतियाँ आज भी हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। इस काल को हिंदी साहित्य का श्रृंगार काल भी कहा जाता है क्योंकि इसमें अधिकांश कवियों ने श्रृंगार रस, विशेषकर नायिका-भेद और अलंकारों का अत्यंत सजीव चित्रण किया।
रीतिकाल किसे कहते हैं?
रीतिकाल हिंदी साहित्य का वह दौर है जिसमें काव्य की परंपरा अपनी चरम सीमा पर पहुँची। यह काल लगभग 1650 ई. से 1850 ई. तक माना जाता है। इस युग में कवियों ने शृंगार, अलंकार, रस तथा नायिका-भेद पर विशेष रूप से काव्य-रचना की। रीतिकाल की रचनाएँ केवल हिंदी साहित्य के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए अनमोल निधि हैं। इस काल के कवि और उनकी कृतियाँ साहित्यिक अध्ययन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
रीतिकाल का साहित्यिक स्वरूप
रीतिकाल का साहित्य मूलतः चार प्रमुख प्रवृत्तियों में विभाजित है:
- श्रृंगार काव्य प्रवृत्ति – जिसमें नायक-नायिका, प्रेम, मिलन और वियोग का अत्यंत सुंदर चित्रण मिलता है।
- अलंकारिक प्रवृत्ति – इस प्रवृत्ति में कवियों ने अलंकार, छंद और काव्यशास्त्रीय नियमों पर विशेष ध्यान दिया।
- नैतिक-नीतिपरक प्रवृत्ति – कुछ कवियों ने नीति, धर्म और जीवन-मूल्यों पर आधारित काव्य भी लिखा।
- वीरगाथा और प्रबंध प्रवृत्ति – इतिहास, शौर्य और राजाओं के गुणगान पर आधारित प्रबंधात्मक काव्य भी रचे गए।
इन प्रवृत्तियों में श्रृंगार और अलंकार की प्रधानता रही। कवियों ने विशेष रूप से राधा-कृष्ण की लीलाओं, नायिका-भेद और प्रेम की सूक्ष्म अनुभूतियों को काव्य में उकेरा।
रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ
- श्रृंगार रस का आधिक्य – अधिकांश कवियों ने श्रृंगार रस, नायिका भेद, सौंदर्य और प्रेम का चित्रण किया।
- अलंकारों का प्रयोग – उपमा, रूपक, श्लेष, यमक आदि अलंकारों का अत्यधिक प्रयोग हुआ।
- रीति और लक्षण ग्रंथ – इस युग में काव्य शास्त्र को नियमबद्ध करने वाले लक्षणग्रंथों की रचना हुई।
- आश्रयदाता राजदरबार – अधिकतर कवि किसी न किसी राजा या सामंत के दरबार से जुड़े रहे।
- तीन प्रवृत्तियाँ – रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त कवियों की परंपरा दिखाई देती है।
रीतिकाल के प्रमुख कवि
रीतिकाल में अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं से इस युग को गौरवपूर्ण बनाया। इस काल के प्रमुख कवियों में चिंतामणि, मतिराम, राजा जसवंत सिंह, भिखारी दास, याकूब खाँ, रसिक सुमति, दूलह, देव, कुलपति मिश्र, सुखदेव मिश्र, रसलीन, दलपति राय, माखन, बिहारी, रसनिधि, घनानन्द, आलम, ठाकुर, बोधा, द्विजदेव, लाल कवि, पद्माकर भट्ट, सूदन, खुमान, जोधराज, भूषण, वृन्द, राम सहाय दास, दीन दयाल गिरि, गिरिधर कविराय और गुरु गोविंद सिंह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
रीतिकाल के कवियों की विशेषताएँ
रीतिकाल के कवि दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं—
- एक ओर वे काव्यशास्त्रज्ञ और अलंकारविद् हैं, जिन्होंने छंद और रस की परिभाषाएँ दीं।
- दूसरी ओर वे श्रृंगार और सौंदर्य के चितेरे हैं, जिन्होंने प्रेम और जीवन की कोमल अनुभूतियों को अभिव्यक्त किया।
नीचे प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं का क्रमबद्ध विवेचन प्रस्तुत है।
रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ
रीतिकाल के कवियों ने न केवल शृंगार और अलंकार पर आधारित काव्य-रचनाएँ कीं, बल्कि वीर रस और प्रबंध काव्य की भी समृद्ध परंपरा स्थापित की। नीचे सारणी में कवियों और उनकी प्रमुख कृतियों का विवरण दिया गया है:
क्रम | कवि (रचनाकार) | प्रमुख रचनाएँ |
---|---|---|
1. | चिंतामणि | कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, शृंगार मंजरी, छंद विचार |
2. | मतिराम | रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी |
3. | राजा जसवंत सिंह | भाषा भूषण |
4. | भिखारी दास | काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय |
5. | याकूब खाँ | रस भूषण |
6. | रसिक सुमति | अलंकार चन्द्रोदय |
7. | दूलह | कवि कुल कण्ठाभरण |
8. | देव | शब्द रसायन, काव्य रसायन, भाव विलास, भवानी विलास, सुजान विनोद, सुख सागर तरंग |
9. | कुलपति मिश्र | रस रहस्य |
10. | सुखदेव मिश्र | रसार्णव |
11. | रसलीन | रस प्रबोध |
12. | दलपति राय | अलंकार लाकर |
13. | माखन | छंद विलास |
14. | बिहारी | बिहारी सतसई |
15. | रसनिधि | रतनहजारा |
16. | घनानन्द | सुजान हित प्रबंध, वियोग बेलि, इश्कलता, प्रीति पावस, पदावली |
17. | आलम | आलम केलि |
18. | ठाकुर | ठाकुर ठसक |
19. | बोधा | विरह वारीश, इश्कनामा |
20. | द्विजदेव | श्रृंगार बत्तीसी, श्रृंगार चालीसी, श्रृंगार लतिका |
21. | लाल कवि | छत्र प्रकाश (प्रबंध) |
22. | पद्माकर भट्ट | हिम्मत बहादुर विरुदावली (प्रबंध) |
23. | सूदन | सुजान चरित (प्रबंध) |
24. | खुमान | लक्ष्मण शतक |
25. | जोधराज | हमीर रासो |
26. | भूषण | शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक |
27. | वृन्द | वृन्द सतसई |
28. | राम सहाय दास | राम सतसई |
29. | दीन दयाल गिरि | अन्योक्ति कल्पद्रुम |
30. | गिरिधर कविराय | स्फुट छन्द |
31. | गुरु गोविंद सिंह | सुनीति प्रकाश, सर्वसोलह प्रकाश, चण्डी चरित्र |
रीतिकाल के कवियों का वर्गीकरण
रीतिकालीन कवियों को तीन मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है –
- रीतिबद्ध कवि – जिन्होंने लक्षण ग्रंथों में रीति का प्रत्यक्ष निर्वाह किया। (जैसे – केशवदास, चिंतामणि, मतिराम, सेनापति, देव आदि)
- रीतिसिद्ध कवि – जिन्होंने रीति को मानते हुए भी अपनी रचनाओं में भाव और कल्पना का सुंदर समन्वय किया। (जैसे – बिहारी, भूषण, पद्माकर, घनानंद आदि)
- रीतिमुक्त कवि – जो रीति परंपरा से हटकर स्वतंत्र भाव से काव्य रचना करते रहे। (जैसे – कबीर, आलम, ठाकुर आदि)
प्रमुख रीतिबद्ध कवि और उनका परिचय
रीतिबद्ध कवि वे हैं, जिन्होंने अपने काव्य और लक्षण-ग्रंथों में प्रत्यक्ष रूप से रीति-परंपरा का पालन किया। इस श्रेणी में केशवदास, चिंतामणि, मतिराम, सेनापति और देव प्रमुख हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने विशेष रूप से केशवदास को “कठिन काव्य का प्रेत” कहा है।
आचार्य केशवदास
केशवदास का जन्म सन् 1555 ई. में ओरछा (वर्तमान मध्यप्रदेश) में हुआ। वे जिझौतिया ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता का नाम काशीनाथ था। ओरछा दरबार में उनके परिवार को विशेष मान-सम्मान प्राप्त था। केशवदास स्वयं महाराज रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि और गुरु रहे। उन्हें दरबार की ओर से 21 गाँव जागीर स्वरूप मिले थे। उनका जीवन वैभव और आत्मसम्मान से परिपूर्ण रहा।
चिंतामणि
चिंतामणि का जन्म विक्रम संवत् 1666 के आसपास माना जाता है। वे कान्यकुब्ज त्रिपाठी ब्राह्मण परिवार से थे और उनका निवास टिकमापुर (कुछ मतों के अनुसार त्रिविक्रमपुर, जिला कानपुर) में था। वे कवि भूषण, मतिराम और नीलकंठ (जटाशंकर) के ज्येष्ठ भ्राता थे।
इनकी प्रमुख कृतियों में काव्यविवेक, कविकुलकल्पतरु, काव्यप्रकाश, छंदविचारपिंगल, रामायण, रसविलास, श्रृंगारमंजरी और कृष्ण चरित सम्मिलित हैं। इनमें कविकुलकल्पतरु को सर्वाधिक महत्वपूर्ण और उनकी कीर्ति का आधार माना जाता है। ‘श्रृंगारमंजरी’ विशेष उल्लेखनीय है क्योंकि यह तेलुगु भाषा के एक संस्कृत गद्यग्रंथ का ब्रजभाषा में पद्यबद्ध रूपांतरण है।
मतिराम
रीतिकाल के प्रसिद्ध ब्रजभाषा कवि मतिराम का जन्म संवत् 1660 के आसपास माना जाता है। उनकी प्रथम कृति फूलमंजरी है, जिसे उन्होंने जहाँगीर के लिए संवत् 1678 में रचा। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना रसराज है, जो शृंगार रस और नायिका भेद पर आधारित है। यह ग्रंथ रीतिकाल में बिहारी सतसई जितना ही लोकप्रिय रहा। मतिराम ने अपने काव्य में सुकुमार भावों और नारी-चित्रण की अत्यंत ललित प्रस्तुति की है।
सेनापति
सेनापति रीतिकाल के आरंभिक और शक्तिशाली कवि माने जाते हैं। उनका मुख्य ग्रंथ कवित्त रत्नाकर है, जो संवत् 1706 में लिखा गया। यह कृति पाँच तरंगों में विभाजित है और इसमें कुल 405 छंद संकलित हैं। इसमें श्रृंगार, ऋतु-चित्रण और रामकथा के छंद विशेष रूप से सराहे जाते हैं। सेनापति के काव्य की विशेषता अलंकार, श्लेष और गहन विदग्धता है। उनके एक अन्य ग्रंथ काव्यकल्पद्रुम का उल्लेख मिलता है, किंतु वह उपलब्ध नहीं है।
देव
देवदत्त, जिन्हें संक्षेप में ‘देव’ कहा जाता है, रीतिकाल के सबसे प्रसिद्ध रीतिग्रंथकार कवि हैं। वे औरंगज़ेब के पुत्र आलमशाह के संपर्क में आए और अनेक आश्रयदाताओं के साथ जुड़े। किन्तु भोगीलाल नामक आश्रयदाता से उन्हें सर्वाधिक संतोष और सम्मान मिला। देव अनुप्रास और यमक अलंकार के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं।
इनकी रचनाओं की संख्या लगभग 52 से 72 मानी जाती है। इनमें रसविलास, भावविलास, भवानीविलास, कुशलविलास, अष्टयाम, सुमिल विनोद, सुजानविनोद, काव्यरसायन, प्रेमदीपिका और प्रेमचन्द्रिका विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। देव के कवित्त-सवैयों में प्रेम और सौंदर्य का अत्यंत प्रभावशाली चित्रण मिलता है।
प्रमुख रीतिबद्ध कवि – सारांश तालिका | Quick Revision Table
कवि का नाम | जीवन परिचय / समय | प्रमुख रचनाएँ | साहित्यिक विशेषताएँ / टिप्पणी |
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केशवदास | जन्म 1555 ई. में ओरछा में। जिझौतिया ब्राह्मण। पिता काशीनाथ। ओरछा नरेश के भाई इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि, मन्त्री और गुरु। | रसिकप्रिया, कविप्रिया, रामचंद्रिका, वीरसिंहदेव चरित आदि। | रीति परंपरा के प्रमुख निर्वाहक। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इन्हें ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा। |
चिंतामणि | जन्म संवत 1666 के आसपास। टिकमापुर/त्रिविक्रमपुर (कानपुर) के निवासी। काश्यप गोत्रीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण। भूषण, मतिराम व जटाशंकर के बड़े भाई। | काव्यविवेक, कविकुलकल्पतरु, काव्यप्रकाश, छंदविचारपिंगल, रामायण, रस विलास, श्रृंगार मंजरी, कृष्ण चरित। | इनकी अधिकांश रचनाएँ काव्यशास्त्र से संबंधित हैं। ‘कविकुलकल्पतरु’ सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। |
मतिराम | जन्म संवत 1660 के आसपास। चिंतामणि के अनुज। | फूलमंजरी, रसराज, ललित ललाम। कुल आठ ग्रंथ प्राप्त। | ‘रसराज’ इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार है। इसमें श्रृंगार रस और नायिका भेद का सुकुमार व ललित चित्रण है। |
सेनापति | रीतिकाल के प्रारंभिक काल के कवि। | कवित्त रत्नाकर (उपलब्ध), काव्यकल्पद्रुम (अप्राप्त)। | इनका काव्य ‘विदग्ध काव्य’ है। ‘कवित्त रत्नाकर’ 405 छंदों का प्रौढ़ ग्रंथ है, जो पाँच तरंगों में विभाजित है। |
देव (देवदत्त) | रीतिकालीन कवि। औरंगजेब के पुत्र आलमशाह व भोगीलाल जैसे आश्रयदाताओं से जुड़े। | रसविलास, भावविलास, भवानीविलास, काव्यरसायन, प्रेमचन्द्रिका आदि। 52 से 72 ग्रंथों तक का उल्लेख। | अनुप्रास और यमक के प्रति विशेष आकर्षण। श्रृंगार के उदात्त रूप का चित्रण। कवित्त-सवैयों में प्रेम और सौंदर्य के इंद्रधनुषी चित्र। |
रीतिसिद्ध कवि
रीतिसिद्ध कवि वे माने जाते हैं जिनकी रचनाओं में अप्रत्यक्ष रूप से रीति-परंपरा का प्रभाव दिखाई देता है। इन कवियों ने भले ही काव्यशास्त्र के नियमों का सीधा अनुसरण न किया हो, किंतु उनके साहित्य से यह स्पष्ट झलकता है कि वे काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों से भली-भाँति परिचित थे। इस श्रेणी के प्रमुख कवि बिहारी और रसनिधि हैं।
बिहारीलाल
बिहारीलाल का जन्म संवत् 1595 (1538 ईस्वी) में ग्वालियर में हुआ। वे माथुर चौबे (चतुर्वेदी) परिवार से थे। उनके पिता का नाम केशवराय था। बचपन का समय बुंदेलखंड में बीता और बाद का जीवन मुख्यतः मथुरा में रहा। उनके गुरु नरहरिदास थे।
बिहारी मूलतः श्रृंगार रस के कवि थे। उनकी प्रसिद्ध कृति बिहारी सतसई श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का अत्यंत सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत करती है।
- संयोग के प्रसंगों में हावभाव और नायिका-नायक के सूक्ष्म अनुभवों का बारीक चित्रण मिलता है।
- वियोग वर्णन में अतिशयोक्ति की प्रधानता है, जिससे नायिका की पीड़ा कभी-कभी अस्वाभाविक लगती है।
बिहारी की रचनाओं पर सूफ़ी कवियों की अहात्मक पद्धति का भी प्रभाव पड़ा। उनके दोहों में प्रेम और विरह की गहन अनुभूति झलकती है।
श्रृंगार के अतिरिक्त उन्होंने नीति, भक्ति और प्रकृति-चित्रण से जुड़े दोहे भी लिखे। उनकी राधा-कृष्ण भक्ति सतसई के मंगलाचरण में ही प्रकट होती है। नीति संबंधी दोहों में उन्होंने जीवन व्यवहार और धन-संग्रह की सूक्तियाँ दी हैं, जबकि प्रकृति वर्णन में छहों ऋतुओं का बड़ा ही सुंदर चित्रण मिलता है।
भाषा के स्तर पर बिहारी ने ब्रजभाषा का परिष्कृत रूप प्रस्तुत किया। उनकी कविता में पूर्वी हिंदी, बुंदेली, उर्दू और फ़ारसी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं, परंतु वे सहज रूप से घुल-मिल जाते हैं। शब्दों का चयन अत्यंत सटीक और भावानुकूल है। मुहावरों और लोकप्रचलित बिंबों का भी उन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।
बिहारी की शैली विविध रूपों में विभक्त की जा सकती है –
- माधुर्यपूर्ण व्यंजना प्रधान शैली – वियोग-वर्णन में।
- सरल एवं प्रसादगुणयुक्त शैली – भक्ति और नीति संबंधी दोहों में।
- चमत्कारपूर्ण शैली – दर्शन, गणित और ज्योतिष से जुड़े विषयक दोहों में।
रसनिधि
रसनिधि का वास्तविक नाम पृथ्वीसिंह था, जो दतिया राज्य के बरौनी क्षेत्र के जमींदार थे। इनका रचनाकाल संवत् 1660 से 1717 तक माना जाता है। उनकी प्रमुख रचना रतनहजारा है, जिसे बिहारी सतसई के आदर्श पर लिखा गया समझा जाता है।
रचना शैली की दृष्टि से रसनिधि ने बिहारी की दोहापद्धति का अनुसरण किया। कई बार तो उन्होंने बिहारी के भावों को ज्यों का त्यों दोहराया। रतनहजारा के अतिरिक्त उनकी अन्य रचनाएँ हैं – विष्णुपद कीर्तन, बारहमासी, रसनिधिसागर, गीतिसंग्रह, अरिल्ल, माँझ और हिंडोला।
रसनिधि मूलतः रसिक और प्रेमपरक कवि थे। उन्होंने रीतिबद्ध ढंग से न लिखकर फारसी शायरी की पद्धति अपनाई और प्रेम की विभिन्न दशाओं तथा चेष्टाओं का चित्रण किया। उनके काव्य में प्रेम की सरस अभिव्यक्ति देखने को मिलती है, किंतु भाषा की शालीनता और शब्दों की संतुलित व्यवस्था के अभाव से उनकी कृतियों का सौंदर्य कुछ प्रभावित हुआ है। फिर भी जहाँ भाव स्वाभाविक रूप से प्रकट हुए हैं, वहाँ उनके दोहे अत्यंत आकर्षक बन पड़े हैं।
प्रमुख रीतिसिद्ध कवि – सारांश तालिका | Quick Revision Table
यहाँ रीतिसिद्ध कवियों और उनके बारे में दी गई जानकारी को सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है:
कवि का नाम | जीवन परिचय / समय | प्रमुख रचनाएँ | साहित्यिक विशेषताएँ / शैली |
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बिहारी | जन्म संवत् 1595 (1538 ई.) ग्वालियर में। माथुर चौबे जाति। पिता केशवराय। बचपन बुंदेलखंड में, युवावस्था मथुरा में। गुरु नरहरिदास। | बिहारी सतसई (मुख्य रचना) | रीतिसिद्ध कवि: काव्यशास्त्र का अप्रत्यक्ष प्रभाव। मुख्य विषय: श्रृंगार (संयोग एवं वियोग दोनों)। भाषा: साहित्यिक ब्रजभाषा, जिसमें पूर्वी हिंदी, बुंदेलखंडी, उर्दू-फारसी के शब्दों का सार्थक प्रयोग। शैली: 1. माधुर्य पूर्ण व्यंजना प्रधान (वियोग) 2. प्रसादगुण युक्त सरस शैली (भक्ति, नीति) 3. चमत्कार पूर्ण शैली (दर्शन, ज्योतिष) विशेष: सूफी प्रभाव, सूक्ष्म हाव-भाव चित्रण, प्रकृति चित्रण, मुहावरों का सुंदर प्रयोग। |
रसनिधि (पृथ्वीसिंह) | दतिया राज्य के बरौनी क्षेत्र के जमींदार। रचनाकाल संवत् 1660 से 1717 तक। | रतनहजारा (सर्वश्रेष्ठ), विष्णुपदकीर्तन, बारहमासी, रसनिधिसागर, गीतिसंग्रह, अरिल्ल और माँझ, हिंडोला। |
रीतिमुक्त कवि
रीति परंपरा से हटकर जिन कवियों ने स्वतंत्र दृष्टिकोण से काव्य-सृजन किया, वे रीतिमुक्त कवि कहलाए। इनके काव्य में रीति-युग की औपचारिकताओं की अपेक्षा आत्मानुभूति, सहज भावाभिव्यक्ति और स्वतंत्रता अधिक दिखाई देती है। इस श्रेणी में घनानंद, आलम, ठाकुर और बोधा प्रमुख कवि माने जाते हैं।
घनानंद
रीतिमुक्त कवियों में घनानंद का स्थान सबसे प्रमुख है। इनका जन्म संवत् 1730 के लगभग माना जाता है। अधिकांश विद्वान इनका जन्मस्थल दिल्ली अथवा उसके आसपास मानते हैं। ये कायस्थ जाति के थे और जीवन का उत्तरार्ध वृंदावन में व्यतीत किया। घनानंद का मूल नाम संभवतः “आनंदघन” रहा होगा, किंतु छंद और काव्य-लय के प्रभाव से ये घनानंद नाम से प्रसिद्ध हो गए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार नादिरशाह के आक्रमण के समय इनकी मृत्यु हुई।
इनकी रचनाओं की संख्या लगभग 41 बताई जाती है। इनमें सुजानहित, कृपाकंद निबंध, वियोगबेलि, इश्कलता, यमुनायश, प्रीति पावस, प्रेमपत्रिका, प्रेमसरोवर, रसवसंत, अनुभवचंद्रिका और दानघटा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। घनानंद ग्रंथावली में उनकी 16 प्रमुख कृतियाँ संकलित हैं और लगभग चार हजार कवित्त-सवैये इनके नाम पर उपलब्ध हैं।
इनकी सर्वाधिक चर्चित रचना सुजानहित है, जिसमें 500 से अधिक पद मिलते हैं और जिनमें नायक-नायिका के प्रेम, रूप, विरह तथा भावनात्मक अवस्थाओं का गहन चित्रण है। घनानंद की काव्यधारा में प्रेम की गहनता और आत्मीयता का विशेष प्रभाव दिखाई देता है।
आलम
रीतिमुक्त काव्यधारा में आलम का नाम भी विशेष महत्त्व रखता है। इनका वास्तविक नाम लालमणि त्रिपाठी था, किन्तु एक मुस्लिम महिला “शेख” से विवाह करने के बाद इन्होंने “आलम” नाम धारण किया। आचार्य शुक्ल के अनुसार इनका समय 1683 से 1703 ईस्वी के बीच रहा। आलम औरंगज़ेब के पुत्र मुअज्ज़म के आश्रित कवि थे।
इनकी प्रमुख रचनाओं में माधवानल कामकंदला (प्रेमाख्यानक), श्यामसनेही (रुक्मिणी विवाह प्रबंध), सुदामाचरित (कृष्णभक्ति प्रधान) और आलमकेलि (लौकिक प्रेम और भक्ति मिश्रित कृति) सम्मिलित हैं। आलम के काव्य में प्रेम की अनुभूतियाँ परंपरा से परे एक नवीनता लिए हुए मिलती हैं।
ठाकुर
रीतिमुक्त काव्यधारा में ठाकुरदास (संवत 1823-1880 के लगभग) भी महत्वपूर्ण कवि थे। ये श्रीवास्तव कायस्थ थे और बुंदेलखंड के जैतपुर निवासी थे। राजा केसरीसिंह के दरबारी कवि रहते हुए इन्होंने दरबारी परंपरा में भी स्थान बनाया। इनके पिता गुलाबराय ओरछा दरबार में और पितामह खंगराय लखनऊ दरबार में पदासीन रहे थे।
ठाकुर के आश्रयदाता अनेक राजा-महाराजा रहे, जिनमें बिजावर नरेश और बाँदा के हिम्मतबहादुर गोसाईं प्रमुख थे। समकालीन कवि पद्माकर के साथ इनकी अनेक बार काव्य-प्रतिस्पर्धा और वाद-विवाद भी प्रसिद्ध हैं। ठाकुर की कविताओं में गहन भावुकता, प्रेम और आत्मीयता की झलक दिखाई देती है।
बोधा
रीतिमुक्त कवियों में बोधा का नाम भी विशेष महत्त्व रखता है। ये पन्ना नरेश के दरबार से जुड़े रहे। दरबार की एक नर्तकी “सुबहान” से इनके गहन प्रेम के कारण इन्हें देशनिकाले की सजा भी मिली। इस वियोगावस्था में इन्होंने विरहवारीश नामक कृति की रचना की।
बोधा मूलतः श्रृंगारी कवि थे, किन्तु इनमें नीति का भी सुंदर समन्वय मिलता है। महाराज की मांग पर इन्होंने नीति संबंधी छंद भी कहे, जिनमें सहज जीवनदर्शन और मानव-व्यवहार की गहराई देखने को मिलती है।
इनकी प्रमुख कृतियाँ विरहवारीश (वियोग श्रृंगार प्रधान) और इश्कनामा (श्रृंगारपरक कविताएँ) हैं। बोधा का काव्य व्यक्तिगत भावनाओं और जीवनानुभवों से जुड़ा हुआ है, जिसके कारण उनकी रचनाएँ अत्यंत मार्मिक बन पड़ी हैं।
प्रमुख रीतिमुक्त कवि – सारांश तालिका | Quick Revision Table
कवि का नाम | जीवन परिचय / समय | प्रमुख रचनाएँ | साहित्यिक विशेषताएँ / प्रमुख घटनाएँ |
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घनानंद (आनंदघन) | जन्म संवत् 1730 के आसपास। जाति के कायस्थ। जन्मस्थान अज्ञात (दिल्ली के आस-पास माना जाता है)। आरंभिक जीवन दिल्ली में, बाद का जीवन वृंदावन में। साहित्य व संगीत में निपुण। मान्यता है कि नादिरशाह के आक्रमण के समय मारे गए। | प्रमुख: सुजान हित, कृपाकंद निबन्ध, इश्कलता, प्रीती पावस, वियोगबेलि। अन्य: 41 ग्रंथों का उल्लेख, जैसे- व्रजविलास, रसवसंत, प्रेमपत्रिका, दानघटा, परमहंसवंशावली आदि। घनानंद के नाम से लगभग चार हजार कवित्त और सवैये मिलते हैं। | रीतिमुक्त काव्यधारा के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि। विशेषता: स्वच्छंद भावावेश, व्यक्तिगत अनुभूति की गहन अभिव्यक्ति, लयात्मकता। भाषा: ब्रजभाषा। विषय: प्रेम (सुजान के लिए), विरह, रसिकता। एक फारसी मसनवी का भी उल्लेख, पर अप्राप्य। |
आलम (लालमणि त्रिपाठी) | कविता काल 1683 से 1703 ई.। जन्म ब्राह्मण परिवार में। मूल नाम लालमणि त्रिपाठी। एक मुस्लिम महिला “शेख” से विवाह के बाद नाम आलम रखा। औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम के आश्रय में रहे। | प्रमुख: आलमकेलि (सबसे प्रसिद्ध), माधवानल कामकंदला (प्रेमाख्यानक काव्य), श्यामसनेही (प्रबंध काव्य), सुदामाचरित (कृष्ण भक्तिपरक)। | रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि। विषय: लौकिक प्रेम की भावनात्मक अभिव्यक्ति, श्रृंगार और भक्ति। विशेषता: परंपरामुक्त अभिव्यक्ति। जीवन में धर्मांतरण की घटना उल्लेखनीय। |
ठाकुर (ठाकुरदास) | जन्म संवत् 1823, ओरछा। देहावसान संवत् 1880 के आसपास। श्रीवास्तव कायस्थ। जैतपुर (बुंदेलखंड) के निवासी और राजा केसरीसिंह के दरबारी कवि। पद्माकर के समकालीन। | प्रमुख: ठाकुर ठसक, ठाकुर शतक। | रीतिमुक्त काव्यधारा के कवि। विशेषता: प्रेमी स्वभाव के रसिक कवि। बुंदेलखंड के अनेक राजदरबारों में सम्मानित। पद्माकर के साथ काव्य-स्पर्धा की जनश्रुतियाँ प्रसिद्ध हैं। |
बोधा | रीतिकालीन रसिक कवि। पन्ना के राजदरबार में आना-जाना। वहाँ की वेश्या सुबहान (सुभान) से प्रेम। इसी कारण महाराज द्वारा छह महीने का देशनिकाला। | प्रमुख: विरह बारिश (विरहवारीश), इश्कनामा। | रीतिमुक्त काव्यधारा के कवि। विशेषता: इनकी प्रेम कहानी प्रसिद्ध है। विरहवारीश की रचना प्रेमिका के वियोग में की। राजा को रचना सुनाने पर प्रसन्न होकर उन्होंने सुबहान को ही बोधा को उपहार में दे दिया। हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते हैं। |
रीतिकाल के अन्य कवि
भूषण
भूषण वीर रस के सुप्रसिद्ध कवि थे। इनका जन्म कानपुर ज़िले में यमुना तटवर्ती ‘तिकवांपुर’ गाँव में हुआ। भूषण के नाम पर छह ग्रंथ बताए जाते हैं जिनमें से शिवराज भूषण, शिवा बावनी और छत्रसाल दशक उपलब्ध हैं। अन्य तीन ग्रंथ (भूषणहज़ारा, भूषणउल्लास और दूषणउल्लास) अब तक अप्राप्त हैं।
सैय्यद मुबारक अली बिलग्रामी
इनका जन्म संवत् 1640 में हुआ और कविता-काल संवत् 1670 के आसपास माना जाता है। इनके सैकड़ों कवित्त और दोहे विभिन्न काव्यसंग्रहों में बिखरे हुए मिलते हैं। उपलब्ध कृतियों में अलकशतक और तिलशतक प्रमुख हैं। शिवसिंह सरोज में भी इनकी पाँच रचनाएँ संकलित हैं।
बेनी
बेनी ‘असनी’ के आश्रित कवि थे। इनकी कोई स्वतंत्र रचना ग्रंथ रूप में उपलब्ध नहीं है, लेकिन फुटकर कवित्त बहुत प्रचलित हैं। काव्य की सामग्री से प्रतीत होता है कि इन्होंने नखशिख और षट्ऋतु पर भी ग्रंथ लिखे होंगे।
मंडन
मंडन बुंदेलखंड के जेतपुर निवासी थे। इनके कवित्त और सवैये व्यापक रूप से सुने जाते थे। इनके पाँच ग्रंथों का उल्लेख मिलता है – रसरत्नावली, रसविलास, जनक पचीसी, जानकीजू को ब्याह और नैन पचासा।
कुलपति मिश्र
आगरा निवासी कुलपति मिश्र महाकवि बिहारी के भांजे थे। इनके प्रमुख ग्रंथ रस रहस्य और मम्मट हैं। इनके अतिरिक्त द्रोणपर्व (1737), युक्तितरंगिणी (1743), नखशिख, संग्रहसार तथा गुण रसरहस्य (1724) भी उल्लेखनीय हैं।
सुखदेव मिश्र
रायबरेली ज़िले के दौलतपुर निवासी सुखदेव मिश्र मुग़लकालीन कवि थे। इनके सात ग्रंथ प्रसिद्ध हैं – वृत्तविचार (1728), छंदविचार, फाजिलअलीप्रकाश, रसार्णव, श्रृंगारलता, अध्यात्मप्रकाश (1755) और दशरथ राय।
कालिदास त्रिवेदी
अंतर्वेद निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण कालिदास त्रिवेदी ने संवत् 1749 में वार वधू विनोद की रचना की। इनकी अन्य कृतियों में जंजीराबंद, राधा माधव बुधा मिलन विनोद तथा बड़ा संग्रह कालिदास हज़ारा उल्लेखनीय है।
राम
इनका जन्म संवत् 1703 में माना जाता है। राम का श्रृंगार सौरभ नायिका-भेद पर आधारित सुंदर ग्रंथ है। इसके अतिरिक्त एक हनुमान नाटक भी इनसे संबद्ध है।
नेवाज
अंतर्वेद के निवासी नेवाज ने संवत् 1737 में शकुंतला नाटक की रचना की। यह आख्यान दोहा, चौपाई और सवैये छंदों में लिखा गया है।
श्रीधर
प्रयाग निवासी श्रीधर (मुरलीधर) ने कई ग्रंथ रचे। इनमें नायिकाभेद, चित्रकाव्य और जंगनामा प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त बहुत-सी फुटकर कविताएँ भी मिलती हैं।
सूरति मिश्र
आगरा निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण सूरति मिश्र ने अलंकारमाला (1766) और अमरचंद्रिका (1794) लिखीं। इन्होंने बिहारी सतसई, कविप्रिया और रसिकप्रिया पर भी टीकाएँ कीं। इनके अन्य ग्रंथ हैं – रसरत्नमाला, रससरस, रसग्राहकचंद्रिका, नखशिख, काव्यसिद्धांत, रसरत्नाकर।
कवींद्र
1680 ई. में जन्मे उदयनाथ ‘कवींद्र’ नाम से प्रसिद्ध हुए। इनके तीन ग्रंथ – रसचन्द्रोदय, विनोदचन्द्रिका और जोगलीला उल्लेखनीय हैं।
श्रीपति
कालपी निवासी श्रीपति ने संवत् 1777 में काव्यसरोज नामक रीति-ग्रंथ लिखा। इनके अन्य ग्रंथ हैं – कविकल्पद्रुम, रससागर, अनुप्रासविनोद, विक्रमविलास, सरोज कलिका और अलंकारगंगा।
बीर
दिल्ली निवासी श्रीवास्तव कायस्थ बीर ने संवत् 1779 में कृष्णचंद्रिका नामक नायिका-भेद और रस संबंधी ग्रंथ की रचना की।
कृष्ण
माथुर चौबे कृष्ण महाकवि बिहारी के पुत्र थे। इनकी बिहारी सतसई पर लिखी टीका विशेष प्रसिद्ध है।
पराग
संवत् 1883 में काशी के महाराज उदित नारायण सिंह के आश्रित कवि पराग ने अमरकोश की हिंदी भाषा में रचना की।
गजराज उपाध्याय
संवत् 1874 में उल्लेखित गजराज उपाध्याय ने पिंगल भाषा में वृहत्तर रामायण ग्रंथ की रचना की।
रसिक सुमति
ईश्वरदास के पुत्र रसिक सुमति ने अलंकार चंद्रोदय ग्रंथ की रचना की। यह कृति कुवलयानंद पर आधारित है और दोहों में लिखी गई है।
गंजन
काशी निवासी गुजराती ब्राह्मण गंजन ने संवत् 1786 में कमरुद्दीन खाँ हुलास नामक श्रृंगारप्रधान ग्रंथ लिखा।
अली मुहीब ख़ाँ
आगरा निवासी अली मुहीब ख़ाँ का उपनाम ‘प्रीतम’ था। इन्होंने संवत् 1787 में हास्य रस से परिपूर्ण खटमल बाईसी नामक पुस्तक लिखी।
भिखारीदास
अवध के टयोंगा गाँव (ज़िला प्रतापगढ़) निवासी श्रीवास्तव कायस्थ भिखारीदास के अनेक ग्रंथ उपलब्ध हैं – रससारांश, छंदार्णव पिंगल, काव्यनिर्णय, श्रृंगार निर्णय, नामप्रकाश कोश, विष्णुपुराण भाषा, छंद प्रकाश, शतरंजशतिका और अमरप्रकाश।
भूपति
अमेठी नरेश राजा गुरुदत्त सिंह के पुत्र भूपति संवत् 1791 के आसपास सक्रिय रहे। इन्होंने श्रृंगार विषयक एक सतसई तथा कंठाभरण, सुरसरत्नाकर, रसदीप और रसरत्नावली जैसे ग्रंथों की रचना की।
तोषणिधि
रीति काल के ख्यात कवि तोषणिधि का संबंध इलाहाबाद जनपद के शृंगवेरपुर (सिंगरौर) से था। इनकी प्रमुख रचनाओं में ‘सुधानिधि’ (संवत 1791), ‘विनयशतक’ और ‘नखशिख’ सम्मिलित हैं।
बंसीधर और दलपति राय
गुजरात, अहमदाबाद निवासी ब्राह्मण कवि बंसीधर और महाजन कवि दलपति राय ने मिलकर संवत 1792 में उदयपुर नरेश महाराणा जगतसिंह के आश्रय में ‘अलंकार रत्नाकर’ ग्रंथ का निर्माण किया। यह कृति अलंकार शास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
सोमनाथ माथुर
भरतपुर नरेश बदनसिंह के पुत्र प्रतापसिंह के दरबार से जुड़े कवि सोमनाथ माथुर ने संवत 1794 में ‘रसपीयूषनिधि’ ग्रंथ रचा। इनके अन्य ग्रंथ हैं – कृष्ण लीलावती पंचाध्यायी, सुजानविलास और माधव विनोद नाटक।
रसलीन
मूल नाम सैयद ग़ुलाम नबी, उपनाम रसलीन, हरदोई ज़िले के बिलग्राम के निवासी थे। यहाँ के विद्वान ‘बिलग्रामी’ उपनाम से विख्यात थे। रसलीन भी इन्हीं परंपरा से जुड़े हुए कवि थे और रीति काल में अपनी काव्यकृति के लिए प्रसिद्ध रहे।
रघुनाथ
काशी नरेश बरिबंडसिंह के दरबार में प्रतिष्ठित कवि रघुनाथ ने अनेक उल्लेखनीय ग्रंथों की रचना की, जिनमें काव्य कलाधार (1802), रसिक मोहन (1796), जगत मोहन (1807) और इश्क महोत्सव प्रमुख हैं।
दूलह
रीति काल के कवि दूलह की पहचान मुख्यतः उनके एकमात्र उपलब्ध ग्रंथ ‘कविकुल कंठाभरण’ से होती है।
कुमार मणिभट्ट
संवत 1803 के लगभग कवि कुमार मणिभट्ट ने ‘रसिकरसाल’ नामक एक उल्लेखनीय रीतिग्रंथ की रचना की।
शंभुनाथ मिश्र
फतेहपुर ज़िले के असोथर क्षेत्र से संबंधित कवि शंभुनाथ मिश्र, राजा भगवंतराय खीची के आश्रित थे। उनकी कृतियों में रसकल्लोल, रसतरंगिणी और अलंकारदीप का विशेष स्थान है।
उजियारे कवि
मथुरा जनपद के वृन्दावन निवासी उजियारे कवि ने जुगल-रस-प्रकाश और रसचंद्रिका जैसे ग्रंथों की रचना कर रीति काव्य परंपरा में अपना योगदान दिया।
शिवसहाय दास
जयपुर के कवि शिवसहाय दास ने संवत 1809 में शिव चौपाई और लोकोक्ति रस कौमुदी की रचना की।
गोपालचन्द्र गिरिधरदास
हिन्दी नाटक परंपरा में विशिष्ट स्थान रखने वाले गोपालचन्द्र गिरिधरदास भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पिता थे। हिन्दी साहित्य का प्रथम नाटक ‘नहुष’ इन्हीं की देन माना जाता है।
संत कवि चरनदास
रीति काल के एक अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व संत चरनदास थे, जिन्होंने ‘चरनदासी सम्प्रदाय’ की स्थापना की। उनकी रचनाओं में ब्रज चरित, अमरलोक अखण्ड धाम वर्णन, अष्टांग योग वर्णन, भक्ति पदार्थ वर्णन और ब्रह्मज्ञान सागर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त ‘लीला’ प्रधान अनेक कृतियाँ भी इनसे संबद्ध मानी जाती हैं।
रूपसाहि
पन्ना निवासी कायस्थ कवि रूपसाहि ने संवत 1813 में रूपविलास ग्रंथ की रचना की, जिसमें दोहा छंद के माध्यम से पिंगल, अलंकार और नायिका भेद का विवेचन किया गया है।
बैरीसाल
फतेहपुर जनपद के असनी ग्राम के ब्राह्मण कवि बैरीसाल ने भाषा भरण नामक ग्रंथ लिखा।
ऋषिनाथ
कवि ऋषिनाथ ने 483 छंदों में अलंकार शास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ग्रंथ ‘अलंकार मणि मंजरी’ की रचना की।
रतन
कवि रतन का जीवनवृत्त उपलब्ध नहीं है, किंतु उनकी रचना फतेह भूषण अलंकार शास्त्र की उल्लेखनीय कृति मानी जाती है।
दत्त
रीति काल में अनेक कवि ‘दत्त’ नाम से विख्यात हुए, किंतु इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हैं लालित्य लता के रचयिता। उनकी कुल पाँच रचनाएँ बताई जाती हैं – लालित्य लता, सज्जन विलास, वीर विलास, ब्रजराज पंचाशिका और स्वरोदय।
नाथ
काशी निवासी गुजराती ब्राह्मण कवि हरिनाथ ने अलंकार दर्पण नामक एक संक्षिप्त ग्रंथ लिखा।
चंदन
शाहजहाँपुर ज़िले के पुवायाँ निवासी कवि चंदन ने श्रृंगार सागर, काव्याभरण और कल्लोल तरंगिणी जैसे ग्रंथ लिखे। इनके अतिरिक्त चंदन सतसई, नखशिख, नाममाला (कोश), सीतबसंत और कृष्ण काव्य भी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।
देवकीनन्दन
रीति काल के विख्यात कवि देवकीनन्दन की पाँच प्रमुख कृतियाँ मानी जाती हैं – श्रृंगार चरित्र, सरफराज चंद्रिका, अवधूत भूषण, ससुरारि पचीसी और नखशिख।
महाराज रामसिंह
जयपुर के शासक परिवार से संबंधित महाराज रामसिंह ने रस और अलंकार विषयक तीन ग्रंथ रचे – अलंकार दर्पण, रस निवास और रस विनोद।
भान
रीति काल के कवि भान का प्रमुख ग्रंथ नरेंद्र भूषण अलंकार पर आधारित है।
ठाकुर बद्रीजन
कवि ठाकुर बद्रीजन, ऋषिनाथ के पुत्र और कवि देवकीनन्दन के आश्रित थे। इन्होंने सतसई वर्णनार्थ देवकीनन्दन टीका की रचना की।
घनश्याम शुक्ल
असनी (उत्तर प्रदेश) के निवासी घनश्याम शुक्ल ने कवत्त-हजारा नामक काव्य ग्रंथ की रचना की।
थानराय (थान)
थानराय, जिन्हें सामान्यतः थान कहा जाता है, कवि चंदन बंदीजन के भांजे थे और डौंड़ियाखेरे (जिला रायबरेली) में रहते थे। इनका प्रमुख ग्रंथ दलेल प्रकाश है।
कृपानिवास
रसिक रामोपासना परंपरा के प्रमुख आचार्यों में कृपानिवास का नाम लिया जाता है। युगलप्रिया में उल्लेख है कि इन्होंने लगभग एक लाख छंदों की रचना की थी।
बेनी बंदीजन
रायबरेली जिले के बैंती ग्राम निवासी बेनी बंदीजन, अवध के प्रसिद्ध वज़ीर महाराज टिकैतराय के आश्रित थे। इन्होंने टिकैतराय प्रकाश (संवत् 1849) नामक अलंकार ग्रंथ तथा रसविलास नामक रचना की, जिसमें रसों का निरूपण मिलता है।
बेनी प्रवीन
लखनऊ के वाजपेयी परिवार से संबंध रखने वाले बेनी प्रवीन ने श्रृंगार भूषण और नवरसतरंग जैसे ग्रंथों की रचना की। वे कुछ समय तक बिठूर के महाराज नानाराव के दरबार में भी रहे और उनके नाम पर नानारावप्रकाश नामक अलंकार ग्रंथ लिखा।
जसवंत सिंह
कन्नौज के समीप तेरवाँ के शासक और विद्यानुरागी जसवंत सिंह द्वितीय ने शालिहोत्रा और श्रृंगारशिरोमणि नामक ग्रंथों की रचना की।
यशोदानंदन
इनका जीवनवृत्त विशेष रूप से उपलब्ध नहीं है। मात्र बरवै नायिका भेद नामक एक संक्षिप्त ग्रंथ ही इनके लेखन से ज्ञात होता है।
करन कवि
षट्कुल कान्यकुब्ज पांडे परिवार में जन्मे करन कवि ने साहित्यरस और रसकल्लोल नामक दो रीति ग्रंथों का सृजन किया।
गुरदीन पांडे
संवत् 1860 में गुरदीन पांडे ने बागमनोहर नामक एक विशाल ग्रंथ की रचना की, जो कविप्रिया की शैली में लिखा गया है।
ब्रह्मदत्त
ब्रह्मदत्त काशी के ब्राह्मण कवि थे और काशी नरेश उदितनारायण सिंह के भाई बाबू दीपनारायण सिंह के आश्रित थे। इनकी प्रमुख कृति दीपप्रकाश है, जो अलंकार शास्त्र पर आधारित है।
धनीराम
काशी के प्रख्यात कवियों में धनीराम का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने मुक्ति रामायण की टीका लिखी।
पद्माकर
रीति काल के श्रेष्ठ कवियों में पद्माकर भट्ट का स्थान प्रमुख है। वे तैलंग ब्राह्मण थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में हिम्मतबहादुर विरुदावली (वीर रस प्रधान) और जगद्विनोद शामिल हैं।
ग्वाल
मथुरा निवासी ग्वाल कवि, बंदीजन सेवाराम के पुत्र थे। इन्होंने यमुना लहरी (संवत् 1879) से लेकर भक्तभावना (संवत् 1919) तक अनेक कृतियाँ लिखीं। इनके चार रीति ग्रंथ— रसिकानंद, रसरंग, कृष्णजू को नखशिख, दूषणदर्पण विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। साथ ही हम्मीर हठ और गोपीपच्चीसी इनके अन्य ग्रंथ हैं।
प्रतापसाहि
प्रतापसाहि, रतनसेन बंदीजन के पुत्र थे और चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज विक्रमसाहि के दरबार में रहते थे। उनकी रचनाओं में व्यंग्यार्थ कौमुदी (संवत् 1882), काव्य विलास (संवत् 1886), जयसिंह प्रकाश, श्रृंगारमंजरी, अलंकार चिंतामणि तथा काव्य विनोद प्रमुख हैं।
चंद्रशेखर वाजपेयी
19वीं शताब्दी के कवि चंद्रशेखर वाजपेयी, कवि मनीराम वाजपेयी के पुत्र थे। इनके गुरु असनी के करनेश महापात्र थे। इन्होंने हम्मीरहठ, नखशिख, रसिकविनोद, वृंदावन शतक, गुरुपंचाशिंका, माधुरीवसंत सहित अनेक ग्रंथों की रचना की।
केशवदास
रीति काल की कवि-त्रयी में से एक प्रमुख स्तंभ केशवदास हैं। उनके प्रामाणिक नौ ग्रंथ हैं— रसिकप्रिया, कविप्रिया, नखशिख, छंदमाला, रामचंद्रिका, वीरसिंहदेव चरित, रतनबावनी, विज्ञानगीता और जहांगीर जसचंद्रिका।
दूलनदास
रीति कालीन कवि एवं सतनामी संप्रदाय के संत दूलनदास ने साखी और पदों की रचना की।
संत भीषनजी
लखनऊ के समीप काकोरी ग्राम के निवासी संत भीषनजी के दो पद गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहीत हैं।
रसिक गोविंद
वृंदावन निवासी रसिक गोविंद निंबार्क संप्रदाय के आचार्य हरिव्यास के शिष्य थे। उनके नौ ग्रंथ मिलते हैं, जिनमें रामायण सूचनिका, रसिक गोविंदानंद घन, लछिमन चंद्रिका, पिंगल, समयप्रबंध, कलियुगरासो तथा युगलरस माधुरी विशेष उल्लेखनीय हैं।
सूर्यमल्ल मिश्रण
राजस्थान के बूँदी में 1815 ई. में जन्मे और 1863 ई. में निधन हुए सूर्यमल्ल मिश्रण महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे। उनकी प्रमुख कृति वंश भास्कर है। इसके अतिरिक्त वीरसतसई भी उल्लेखनीय है।
कुवरि
कुवरि, राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द की परंपरा से जुड़े कवि थे। इनकी रचना प्रेमरत्न है।
अखा भगत
गुजराती भाषा के महत्त्वपूर्ण कवि अखा भगत ने पंचीकरण, गुरु-शिष्य संवाद, अनुभव बिंदु तथा चित्त विचार संवाद जैसे ग्रंथ लिखे।
कवीन्द्राचार्य सरस्वती
रीति काल में काशी के स्वतंत्र रचनाकार कवीन्द्राचार्य सरस्वती ने कवीन्द्र कल्पद्रुम, पद चंद्रिका, दशकुमार टीका, योगभाष्कर योग और शतपथ ब्राह्मण भाष्य जैसे ग्रंथों की रचना की।
मनीराम मिश्र
कन्नौज निवासी मनीराम मिश्र, इच्छाराम मिश्र के पुत्र थे। उनकी दो रचनाएँ— छंद छप्पनी और आनंद मंगल उपलब्ध हैं।
उजियारे लाल
उजियारे लाल ने गंगालहरी नामक काव्यग्रंथ की रचना की।
बनवारी
संवत् 1690–1700 के बीच सक्रिय बनवारी, शाहजहाँ के दरबारी कवि थे। इनके वीर रसप्रधान पद उपलब्ध हैं।
तुलसी साहिब
साहिब पंथ के प्रवर्तक तुलसी साहिब ने घटरामायण, शब्दावली, रत्नासागर और पद्यसागर (अपूर्ण) जैसी कृतियों का प्रणयन किया।
सबलसिंह चौहान
सबलसिंह चौहान इटावा जनपद के किसी गाँव के ज़मींदार माने जाते हैं। इनके निवास स्थान का सटीक निर्धारण नहीं हो पाया है। इन्होंने संपूर्ण महाभारत की कथा को दोहों और चौपाइयों में अत्यंत सरस रूप में प्रस्तुत किया।
वृंद
वृंद मूल रूप से मेड़ता (जोधपुर) क्षेत्र के निवासी थे। वे कृष्णगढ़ नरेश महाराज राजसिंह के गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनकी रचना वृंदसतसई नीति संबंधी सात सौ दोहों का संग्रह है, जो अत्यधिक लोकप्रिय है। इनके अन्य ग्रंथों में श्रृंगारशिक्षा तथा भावपंचाशिका उल्लेखनीय हैं।
छत्रसिंह
छत्रसिंह श्रीवास्तव कायस्थ परिवार से थे और बटेश्वर क्षेत्र के अटेर गाँव में रहते थे। इन्होंने संवत् 1757 में विजयमुक्तावली नामक कृति की रचना की।
बैताल
बैताल जाति से संबंधित कवि थे और राजा विक्रमसाहि की सभा में स्थान पाते थे। इन्होंने विक्रम सतसई सहित कई ग्रंथों की रचना की।
आलम
आलम मूलतः ब्राह्मण जाति के थे, किंतु शेख नामक रंगरेजिन के प्रेम में पड़कर इस्लाम धर्म अपना लिया और उससे विवाह कर लिया। उनकी कविताओं का एक प्रसिद्ध संकलन आलमकेलि शीर्षक से उपलब्ध है।
गुरु गोविंदसिंह
गुरु गोविंदसिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 ई. को पटना (बिहार) में हुआ और 7 अक्तूबर 1708 ई. को नांदेड़ (महाराष्ट्र) में उनका निधन हुआ। वे सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु थे तथा 11 नवंबर 1675 को गुरु पद पर प्रतिष्ठित हुए। उनकी प्रमुख रचनाओं में चण्डी चरित्र, दशमग्रन्थ, कृष्णावतार, गोबिन्द गीत, प्रेम प्रबोध, जाप साहब, अकाल उस्तुति, चौबीस अवतार और नाममाला विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
लाल कवि
लाल कवि का वास्तविक नाम गोरे लाल पुरोहित था। वे बुंदेलखंड के मऊ क्षेत्र के निवासी थे। महाराज छत्रसाल के आदेश पर इन्होंने उनका जीवनचरित छत्रप्रकाश रचा, जिसमें दोहों और चौपाइयों के माध्यम से विस्तृत वर्णन मिलता है। इनके अन्य ग्रंथों में विष्णुविलास प्रसिद्ध है, जिसमें नायिकाभेद का सुंदर विवेचन है।
महाराज विश्वनाथ सिंह
रीवाँ नरेश महाराज विश्वनाथ सिंह विद्या, भक्ति और काव्य के संरक्षक माने जाते थे। वे महाराज रघुराजसिंह के पिता थे। उनकी रचनाएँ अत्यंत व्यापक हैं, जिनमें अष्टयाम आह्निक, आनंदरघुनंदन नाटक, उत्तमकाव्यप्रकाश, गीतारघुनंदन शतिका, रामायण, विनयपत्रिका की टीका, कबीर बीजक की टीका, आनंद रामायण, शांतिशतक, परधर्म निर्णय, अबोधनीति, विश्वनाथ प्रकाश, संगीत रघुनंदन इत्यादि प्रमुख हैं।
नागरीदास
नागरीदास नाम से ब्रज क्षेत्र में कई कवि हुए, किंतु सबसे प्रसिद्ध कृष्णगढ़ नरेश महाराज सावंतसिंह हैं। इनका जन्म संवत् 1756 के पौष कृष्ण द्वादशी को हुआ था। कृष्णगढ़ में इनकी लगभग 73 रचनाएँ संग्रहित हैं।
जोधाराज
जोधाराज, गौड़ ब्राह्मण बालकृष्ण के पुत्र थे। इन्होंने संवत् 1875 में हम्मीर रासो नामक प्रबंध काव्य की रचना की।
बख्शी हंसराज
बख्शी हंसराज श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में संवत् 1799 में पन्ना में जन्मे। ये ‘सखी भाव’ के उपासक थे, जिस कारण इनका सांप्रदायिक नाम ‘प्रेमसखी’ पड़ा। इनके प्रमुख ग्रंथ हैं – सनेहसागर, विरहविलास, रामचंद्रिका और बारहमासा।
जनकराज किशोरीशरण
जनकराज किशोरीशरण अयोध्या के निवासी वैरागी कवि थे। वे संवत् 1797 में सक्रिय थे। उनकी उल्लेखनीय रचनाओं में आंदोलनरहस्य दीपिका, तुलसीदासचरित्र, विवेकसार चंद्रिका, सिद्धांत चौंतीसी, ललित श्रृंगार दीपक, रामरसतरंगिणी, जानकीशरणाभरण, सीताराम सिद्धांतमुक्तावली, आनन्यतरंगिणी, आत्मसंबंधदर्पण, वेदांतसार, श्रुतिदीपिका, रसदीपिका, दोहावली और रघुवर करुणाभरण सम्मिलित हैं।
अलबेली अलि
रीतिकाल के कवि अलबेली अलि ने ब्रजभाषा में काव्य रचनाएँ कीं। उनकी प्रमुख रचनाओं में श्रीस्त्रोत तथा समय प्रबन्ध पदावली उल्लेखनीय हैं।
भीखा साहब
भीखा साहब (भीखानन्द चौबे) बावरी पंथ की गाजीपुर शाखा के संत गुलाम साहब के शिष्य थे। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं – राम कुण्डलिया, राम सहस्रनाम, रामसबद, रामराग, राम कवित्त और भगतवच्छावली।
हितवृंदावन दास
हितवृंदावन दास पुष्कर क्षेत्र के गौड़ ब्राह्मण थे। इनका जन्म संवत् 1765 में हुआ था। जनश्रुति है कि इन्होंने लगभग एक लाख पद और छंदों की रचना की, ठीक वैसे ही जैसे सूरदास के सवा लाख पद प्रसिद्ध हैं।
गिरधर कविराय
गिरधर कविराय की नीति संबंधी कुंडलियाँ अत्यधिक लोकप्रिय हुईं। ये मूलतः पद्य रचयिता थे और इन्हें सूक्तिकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
भगवत रसिक
‘टट्टी संप्रदाय’ के महात्मा स्वामी ललित मोहनी दास के शिष्य भगवत रसिक प्रेम रस से ओतप्रोत कवि थे। उन्होंने पद, कवित्त, कुंडलियाँ और छप्पय जैसी विधाओं में अनेक रचनाएँ कीं।
श्री हठी
श्री हठी, श्री हितहरिवंश जी की शिष्य परंपरा से जुड़े कवि थे। वे साहित्य और कला के गहरे ज्ञाता थे। उनकी प्रमुख रचना राधासुधाशतक है, जिसमें 11 दोहे और 103 कवित्त-सवैये सम्मिलित हैं।
गुमान मिश्र
गुमान मिश्र महोबा निवासी और गोपालमणि के पुत्र थे। इन्होंने संवत् 1800 में श्रीहर्ष कृत नैषधकाव्य का पद्यानुवाद अनेक छंदों में किया। उनके अन्य ग्रंथ हैं – कृष्णचंद्रिका और छंदाटवी (पिंगलशास्त्र)।
सरजूराम पंडित
सरजूराम पंडित ने संवत् 1805 में जैमिनीपुराण भाषा की रचना की। इसमें युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ, रामायण का संक्षिप्त रूप, सीतात्याग, लवकुश युद्ध, मयूरध्वज और चंद्रहास जैसे कथानक सम्मिलित हैं।
सूदन
सूदन मथुरा निवासी माथुर चौबे थे। उन्होंने सुजानचरित नामक प्रबंध काव्य रचा, जिसमें अध्यायों को “जंग” कहा गया। यह ग्रंथ सात जंगों में पूर्ण हुआ है।
हरनारायण
हरनारायण की रचनाओं में माधवानल कामकंदला और बैताल पचीसी दो कथात्मक काव्य विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
ब्रजवासी दास
ब्रजवासी दास वृंदावन निवासी और बल्लभ संप्रदाय के अनुयायी थे। उन्होंने ब्रजविलास नामक प्रबंध काव्य की रचना की, जो दोहों और चौपाइयों में निबद्ध है।
घासीराम
घासीराम कृष्णभक्ति काव्यधारा के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के संबंध में कई भावपूर्ण पदों की रचना की।
गोकुलनाथ
काशी के दरबारी कवि गोकुलनाथ ने चेतसिंह चन्द्रिका, राधाकृष्ण विलास, राधा नखशिख और महाभारत दर्पण जैसी रचनाएँ कीं।
गोपीनाथ
गोकुलनाथ के पुत्र और रघुनाथ बंदीजन के पौत्र गोपीनाथ भी काशी दरबार के कवि थे। उन्होंने महाभारत दर्पण के कई पर्वों (भीष्मपर्व, द्रोणपर्व, शांतिपर्व, स्वर्गारोहणपर्व) और हरिवंशपुराण का अनुवाद किया।
मणिदेव
मणिदेव, बंदीजन परिवार से थे और भरतपुर राज्य के जहानपुर गाँव में रहते थे। उन्होंने संपूर्ण महाभारत और हरिवंश का अनुवाद विविध छंदों और कवित्त शैली में किया।
रामचंद्र
रामचंद्र नामक कवि की एकमात्र उपलब्ध कृति चरणचंद्रिका है।
मंचित
मंचित बुंदेलखंड के मऊ गाँव के निवासी ब्राह्मण थे। उन्होंने कृष्णचरित से संबंधित दो रचनाएँ कीं – सुरभी दानलीला और कृष्णायन।
मधुसूदन दास
मथुरा निवासी माथुर चौबे मधुसूदन दास ने संवत् 1839 में रामाश्वमेधा नामक प्रबंध काव्य रचा।
मनियार सिंह
काशी निवासी क्षत्रिय कवि मनियार सिंह ने पुष्पदत्त के शिव महिमा स्तोत्र का अनुवाद 35 कवित्तों में किया। साथ ही उन्होंने हनुमान छब्बीसी, सुन्दरकाण्ड (63 छंद), हनुमान विजय और सौन्दर्य लहरी (103 कवित्त) की भी रचना की।
कृष्णदास
मिर्ज़ापुर निवासी कृष्णदास रीतिकालीन कृष्णभक्त कवि थे। उनकी माधुर्य लहरी नामक पुस्तक में कृष्णचरित का विविध छंदों में सुंदर निरूपण है।
भरमी
भरमी की कविताएँ कालिदास हजारा संकलन में उपलब्ध हैं। वे रीतिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं।
गणेश बंदीजन
गणेश बंदीजन, लाल कवि के पौत्र गुलाब कवि के पुत्र थे। उनकी रचनाओं में वाल्मीकि रामायण श्लोकार्थ प्रकाश, प्रद्युम्न विजय नाटक, हनुमत पच्चीसी और साहित्य सागर (साहित्यशास्त्रीय ग्रंथ) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
सम्मन
हरदोई ज़िले के मल्लावाँ निवासी सम्मन कवि ने संवत् 1834 में पिंगल काव्यभूषण नामक रीतिग्रंथ की रचना की।
ठाकुर असनी (प्रथम)
ठाकुर असनी संवत् 1700 में हुए। इनके जीवनवृत्त की जानकारी उपलब्ध नहीं है, केवल कुछ फुटकल कविताएँ ही मिलती हैं।
ठाकुर असनी (द्वितीय)
ये ऋषिनाथ कवि के पुत्र और सेवक कवि के पितामह थे। इन्होंने बिहारी सतसई की टीका सतसई बरनार्थ अथवा देवकीनंदन टीका नाम से लिखी।
ठाकुर बुंदेलखंडी
ठाकुर बुंदेलखंडी का वास्तविक नाम लाला ठाकुरदास था।
ललकदास
लखनऊ निवासी महंत ललकदास, बेनी कवि के भंडौवा से संबंध रखते थे। उन्होंने सत्योपाख्यान नामक एक विस्तृत वर्णनात्मक ग्रंथ की रचना की।
खुमान
खुमान बंदीजन थे और चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज विक्रमसाहि की सभा में रहते थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – अमरप्रकाश (संवत् 1836), अष्टयाम (संवत् 1852), लक्ष्मणशतक (1855), हनुमान नखशिख, हनुमान पंचक, हनुमान पचीसी, नीतिविधान, समरसार, नृसिंह चरित्र (1879) और नृसिंह पचीसी।
नवलसिंह
नवलसिंह कायस्थ जाति से थे और झाँसी निवासी थे। ये समथर नरेश राजा हिंदूपति की सेवा में रहे। इन्होंने बड़ी संख्या में काव्य ग्रंथों की रचना की जिनमें रासपंचाध्यायी, रामचंद्रविलास, शंकामोचन (1873), जौहरिनतरंग (1875), रसिकरंजनी (1877), विज्ञान भास्कर (1878), ब्रजदीपिका (1883), शुकरंभासंवाद (1888), नामचिंतामणि (1903), मूलभारत (1911), भारतसावित्री (1912), भारत कवितावली (1913), भाषा सप्तशती (1917), कवि जीवन (1918), आल्हा रामायण (1922), रुक्मिणीमंगल (1925), मूल ढोला (1925), रहस लावनी (1926) आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।
रामसहाय दास
चौबेपुर ज़िला (वाराणसी) के निवासी रामसहाय दास लाला भवानीदास कायस्थ के पुत्र थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – राम सतसई, श्रृंगार सतसई, ककहरा रामसहाय दास, बानी भूषण, राम सप्त शतिका।
चंद्रशेखर कवि
चंद्रशेखर वाजपेयी का जन्म संवत् 1855 में मुअज्जमाबाद (ज़िला फतेहपुर) में हुआ। इनकी प्रसिद्ध वीरकाव्य रचना हम्मीरहठ है। अन्य रचनाओं में विवेकविलास, रसिकविनोद, हरिभक्तिविलास, नखशिख, वृंदावनशतक, गृहपंचाशिका, ताजक ज्योतिष, माधवी वसंत सम्मिलित हैं।
दीनदयाल गिरि
बाबा दीनदयाल गिरि गोसाईं का जन्म संवत् 1859 में काशी (गायघाट) में हुआ। इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – अन्योक्ति कल्पद्रुम (1912), अनुराग बाग (1888), वैराग्य दिनेश (1906), विश्वनाथ नवरत्न, दृष्टांत तरंगिणी (1879)।
पजनेस
पजनेस पन्ना के निवासी कवि थे। इनकी कविताएँ फुटकल रूप में प्रचलित हैं। मधुरप्रिया और नखशिख नामक ग्रंथों का उल्लेख ठाकुर शिवसिंहजी ने किया है।
गिरिधरदास
ये भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता थे और ब्रजभाषा के अत्यंत परिपक्व कवि माने जाते हैं। भारतेंदु जी ने इनके लगभग 40 ग्रंथों का उल्लेख किया है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं – जरासंधवध महाकाव्य, भारती भूषण, भाषा व्याकरण, रसरत्नाकर, ग्रीष्मवर्णन, मत्स्यकथामृत, वराहकथामृत, नृसिंहकथामृत, वामनकथामृत, परशुरामकथामृत, रामकथामृत, बलरामकथामृत, कृष्णचरित, बुद्धकथामृत, कल्कि कथामृत, नहुष नाटक, गर्गसंहिता, एकादशी माहात्म्य।
द्विजदेव
अयोध्या के महाराज द्विजदेव (महाराज मानसिंह) बड़े सरस कवि थे। उनकी दो प्रसिद्ध रचनाएँ हैं – श्रृंगार बत्तीसी और श्रृंगार लतिका।
अहमद
आगरा निवासी ताहिर अहमद जहाँगीर के समकालीन कवि थे। इनकी प्रमुख कृति कोकसार है। अन्य रचनाएँ हैं – अहमद बारामासी, रतिविनोद, रसविनोद, सामुद्रिक।
चंडीदास
चंडीदास मध्यकालीन कवि थे जिनके रामी धोबिन को संबोधित प्रेमगीत अत्यंत लोकप्रिय हुए।
पृथ्वीराज
वीररस के श्रेष्ठ कवि पृथ्वीराज अकबर के दरबार में रहते थे और महाराणा प्रताप के समर्थक तथा प्रशंसक थे।
बुल्ले शाह
बाबा बुल्ले शाह का जन्म 1680 ई. में हुआ और 1758 ई. में निधन हुआ। ये पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के सूफी कवि थे। इनकी कविताओं में काफ़ियां, दोहड़े, बारांमाह, अठवारा, गंढां और सीहरफ़ियां विशेष प्रसिद्ध हैं।
श्रीनाथ
तेलुगु भाषा के विख्यात कवि श्रीनाथ (1380–1460) ने कई महत्वपूर्ण काव्य लिखे जिनमें नैषध काव्य रूपांतर, शालिवाहन, सप्तशती, भीमखंड, काशीखंड, हरविलास, वीचिनाटक, शिवरात्रि महात्म्य सम्मिलित हैं।
गंगाधर मेहरे
उड़िया भाषा के प्रसिद्ध कवि गंगाधर मेहरे ने अनेक काव्य लिखे। प्रणय वल्लरी और तपस्विनी विशेष प्रसिद्ध हैं।
कविराज श्यामलदास
मेवाड़ के इतिहासकार एवं कवि कविराज श्यामलदास (1836–1893) को “महामहोपाध्याय” और केसर-ए-हिंद की उपाधि मिली। इन्होंने दीपंग कुल प्रकाश नामक कविता और वीर विनोद नामक ग्रंथ की रचना की। इनके अन्य ग्रंथ हैं – पृथ्वीराज रासो की नवीनता और अकबर के जन्मदिन में सन्देह।
रीतिकाल के अन्य कवि – सारांश तालिका | Quick Revision Table
कवि का नाम | मुख्य विशेषताएँ / रचनाएँ |
---|---|
भूषण | वीर रस के कवि। प्रमुख रचनाएँ: ‘शिवराज भूषण’, ‘शिवा बावनी’, ‘छत्रसाल दशक’। |
सैय्यद मुबारक़ अली बिलग्रामी | प्रमुख रचनाएँ: ‘अलकशतक’, ‘तिलशतक’। |
बेनी | इनकी कोई पुस्तक नहीं मिलती, परन्तु फुटकर कवित्त प्रसिद्ध हैं। |
मंडन | प्रमुख रचनाएँ: “रसरत्नावली”, “रसविलास”, “जनक पचीसी”, “जानकी जू को ब्याह”, “नैन पचासा”। |
कुलपति मिश्र | बिहारी के भान्जे। प्रमुख रचनाएँ: ‘रस रहस्य’, ‘मम्मट’, ‘द्रोणपर्व’, ‘नखशिख’। |
सुखदेव मिश्र | प्रमुख रचनाएँ: ‘वृत्तविचार’, ‘छंदविचार’, ‘रसार्णव’, ‘अध्यात्मप्रकाश’। |
कालिदास त्रिवेदी | प्रमुख रचनाएँ: ‘वार वधू विनोद’, ‘जँजीराबंद’, ‘कालिदास हज़ारा’। |
राम | प्रमुख रचनाएँ: ‘श्रृंगार सौरभ’ (नायिका भेद), ‘हनुमान नाटक’। |
नेवाज | प्रमुख रचना: ‘शकुंतला नाटक’। |
श्रीधर (मुरलीधर) | प्रमुख रचनाएँ: नायिकाभेद, चित्रकाव्य, जंगनामा। |
सूरति मिश्र | प्रमुख रचनाएँ: ‘अलंकारमाला’, ‘रसरत्नमाला’, ‘बिहारी सतसई’ पर टीका। |
कवींद्र (उदयनाथ) | प्रमुख रचनाएँ: ‘रस-चन्द्रोदय’, ‘विनोद चन्द्रिका’, ‘जोगलीला’। |
श्रीपति | प्रमुख रचनाएँ: ‘काव्यसरोज’, ‘कविकल्पद्रुम’, ‘रससागर’। |
बीर | प्रमुख रचना: ‘कृष्णचंद्रिका’ (रस और नायिका भेद)। |
कृष्ण | बिहारी के पुत्र। ‘बिहारी सतसई’ पर टीका प्रसिद्ध। |
पराग | प्रमुख रचना: ‘अमरकोश’ की भाषा सृजित की। |
गजराज उपाध्याय | प्रमुख रचना: पिंगल भाषा का ग्रंथ ‘वृहत्तर तथा रामायण’। |
रसिक सुमति | प्रमुख रचना: ‘अलंकार चंद्रोदय’। |
गंजन | प्रमुख रचना: ‘कमरुद्दीन खाँ हुलास’ (श्रृंगार रस)। |
अली मुहीब ख़ाँ (प्रीतम) | प्रमुख रचना: ‘खटमल बाईसी’ (हास्य रस)। |
भिखारी दास | प्रमुख रचनाएँ: ‘रससारांश’, ‘छंदार्णव पिंगल’, ‘काव्यनिर्णय’, ‘नामप्रकाश कोश’। |
भूपति | प्रमुख रचनाएँ: श्रृंगार की ‘सतसई’, ‘कंठाभरण’, ‘रसदीप’। |
तोषनिधि | प्रमुख रचनाएँ: ‘सुधानिधि’, ‘विनयशतक’, ‘नखशिख’। |
बंसीधर | प्रमुख रचना: दलपति राय के साथ ‘अलंकार रत्नाकर’। |
दलपति राय | प्रमुख रचना: बंसीधर के साथ ‘अलंकार रत्नाकर’। |
सोमनाथ माथुर | प्रमुख रचनाएँ: ‘रसपीयूषनिधि’, ‘कृष्ण लीलावती’, ‘माधवविनोद नाटक’। |
रसलीन (सैयद ग़ुलाम नबी) | प्रसिद्ध कवि। |
रघुनाथ | प्रमुख रचनाएँ: “काव्य कलाधार”, “रसिक मोहन”, “इश्कमहोत्सव”। |
दूलह | प्रमुख रचना: ‘कविकुल कंठाभरण’। |
कुमार मणिभट्ट | प्रमुख रचना: ‘रसिकरसाल’ (रीतिग्रंथ)। |
शंभुनाथ मिश्र | प्रमुख रचनाएँ: ‘रसकल्लोल’, ‘रसतरंगिणी’, ‘अलंकारदीप’। |
उजियारे कवि | प्रमुख रचनाएँ: ‘जुगल-रस-प्रकाश’, ‘रसचंद्रिका’। |
शिवसहाय दास | प्रमुख रचनाएँ: ‘शिव चौपाई’, ‘लोकोक्ति रस कौमुदी’। |
गोपालचन्द्र ‘गिरिधरदास’ | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पिता। प्रथम हिन्दी नाटक ‘नहुष’ के रचयिता। |
चरनदास | संत कवि, चरनदासी सम्प्रदाय के संस्थापक। 21 रचनाएँ जैसे ‘ब्रज चरित’, ‘योग संदेह सागर’। |
रूपसाहि | प्रमुख रचना: ‘रूपविलास’। |
बैरीसाल | प्रमुख रचना: ‘भाषा भरण’। |
ऋषिनाथ | प्रमुख रचना: ‘अलंकार मणि मंजरी’। |
रतन | प्रमुख रचना: ‘फतेह भूषण’ (अलंकार ग्रंथ)। |
दत्त | प्रमुख रचनाएँ: ‘लालित्य लता’, ‘सज्जन विलास’, ‘वीर विलास’। |
नाथ (हरिनाथ) | प्रमुख रचना: ‘अलंकार दर्पण’। |
चंदन | प्रमुख रचनाएँ: ‘श्रृंगार सागर’, ‘काव्याभरण’, ‘चंदन सतसई’। |
देवकीनन्दन | प्रमुख रचनाएँ: ‘श्रृंगार चरित्र’, ‘सरफराज चंद्रिका’, ‘नखशिख’। |
महाराज रामसिंह | प्रमुख रचनाएँ: ‘अलंकार दर्पण’, ‘रसनिवास’, ‘रसविनोद’। |
भान | प्रमुख रचना: ‘नरेंद्र भूषण’ (अलंकार ग्रंथ)। |
ठाकुर बद्रीजन | प्रमुख रचना: ‘सतसई वर्णनार्थ देवकीनन्दन टीका’। |
घनश्याम शुक्ल | प्रमुख रचना: ‘कवत्त-हजारा’। |
थान (थानराय) | प्रमुख रचना: ‘दलेल प्रकाश’ (रीति ग्रंथ)। |
कृपानिवास | रसिक रामोपासना के आचार्य। लगभग एक लाख छंदों की रचना। |
बेनी बंदीजन | प्रमुख रचनाएँ: ‘टिकैतराय प्रकाश’, ‘रसविलास’। |
बेनी प्रवीन | प्रमुख रचनाएँ: ‘नवरसतरंग’, ‘श्रृंगार भूषण’, ‘नानारावप्रकाश’। |
जसवंत सिंह | प्रमुख रचनाएँ: ‘शालिहोत्रा’, ‘श्रृंगारशिरोमणि’। |
यशोदानंदन | प्रमुख रचना: ‘बरवै नायिका भेद’। |
करन | प्रमुख रचनाएँ: ‘साहित्यरस’, ‘रसकल्लोल’। |
गुरदीन पांडे | प्रमुख रचना: ‘बागमनोहर’ (रीति ग्रंथ)। |
ब्रह्मदत्त | प्रमुख रचना: ‘दीपप्रकाश’ (अलंकार ग्रंथ)। |
धनीराम | प्रमुख रचना: ‘मुक्ति रामायण’ की टीका। |
पद्माकर (पद्माकर भट्ट) | प्रमुख रचनाएँ: ‘हिम्मतबहादुर विरुदावली’, ‘जगद्विनोद’। |
ग्वाल | प्रमुख रचनाएँ: ‘यमुना लहरी’, ‘रसिकानंद’, ‘राधामाधव मिलन’। |
प्रतापसाहि | प्रमुख रचनाएँ: ‘व्यंग्यार्थ कौमुदी’, ‘काव्य विलास’, ‘श्रृंगारमंजरी’। |
चंद्रशेखर वाजपेयी | प्रमुख रचनाएँ: ‘हम्मीरहठ’, ‘नखशिख’, ‘रसिकविनोद’, ‘विवेकविलास’। |
केशवदास | रीति काल की कवि-त्रयी के एक स्तंभ। प्रमुख रचनाएँ: ‘रसिकप्रिया’, ‘कविप्रिया’, ‘रामचंद्रिका’। |
दूलनदास | सतनामी सम्प्रदाय के संत। साखी और पद रचना। |
भीषनजी | संत कवि। इनके दो पद ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संग्रहीत। |
रसिक गोविंद | प्रमुख रचनाएँ: ‘रामायण सूचनिका’, ‘रसिक गोविंदानंद घन’, ‘युगलरस माधुरी’। |
सूर्यमल्ल मिश्रण | प्रमुख रचनाएँ: ‘वंश भास्कर’, ‘वीरसतसई’। |
कुवरि | प्रमुख रचना: ‘प्रेमरत्न’। |
अखा भगत | गुजराती भाषा के प्राचीन कवि। रचनाएँ: ‘पंचीकरण’, ‘अनुभव बिंदु’। |
कवीन्द्राचार्य सरस्वती | प्रमुख रचनाएँ: ‘कवीन्द्र कल्पद्रुम’, ‘पद चन्द्रिका’, ‘दशकुमार टीका’। |
मनीराम मिश्र | प्रमुख रचनाएँ: ‘छंद छप्पनी’, ‘आनंद मंगल’। |
उजियारे लाल | प्रमुख रचना: ‘गंगालहरी’। |
बनवारी | शाहजहाँ के दरबारी कवि। वीर रस की फुटकल रचनाएँ। |
तुलसी साहिब | साहिब पंथ के प्रवर्तक। रचनाएँ: ‘घटरामायन’, ‘शब्दावली’। |
सबलसिंह चौहान | प्रमुख रचना: दोहों-चौपाइयों में सम्पूर्ण “महाभारत” की कथा। |
वृंद | प्रमुख रचनाएँ: ‘वृंदसतसई’ (नीति), ‘श्रृंगारशिक्षा’, ‘भावपंचाशिका’। |
छत्रसिंह | प्रमुख रचना: ‘विजयमुक्तावली’। |
बैताल | प्रमुख रचना: ‘विक्रम सतसई’। |
आलम | इनकी कविताओं का संग्रह ‘आलमकेलि’। |
गुरु गोविंदसिंह | सिक्खों के दसवें गुरु। प्रमुख रचनाएँ: “चण्डी चरित्र”, “दशमग्रन्थ”, “जाप साहब”। |
लाल कवि (गोरे लाल पुरोहित) | प्रमुख रचनाएँ: ‘छत्रप्रकाश’, ‘विष्णुविलास’। |
महाराज विश्वनाथ सिंह | प्रमुख रचनाएँ: ‘आनंदरघुनंदन नाटक’, ‘रामायण’, ‘गीता रघुनंदन’। |
नागरीदास (महाराज सावंतसिंह) | 73 पुस्तकें। |
जोधाराज | प्रमुख रचना: ‘हम्मीर रासो’ (प्रबंध काव्य)। |
बख्शी हंसराज (प्रेमसखी) | प्रमुख रचनाएँ: ‘सनेहसागर’, ‘विरहविलास’, ‘रामचंद्रिका’। |
जनकराज किशोरीशरण | प्रमुख रचनाएँ: ‘तुलसीदासचरित्र’, ‘विवेकसार चंद्रिका’, ‘रामरसतरंगिणी’। |
अलबेली अलि | प्रमुख रचनाएँ: ‘श्रीस्त्रोत’, ‘समय प्रबन्ध पदावली’। |
भीखा साहब (भीखानन्द चौबे) | प्रमुख रचनाएँ: ‘राम कुण्डलिया’, ‘राम सहस्रनाम’, ‘रामसबद’। |
हितवृंदावन दास | एक लाख पद और छंद बनाने की बात प्रसिद्ध। |
गिरधर कविराय | नीति की कुंडलियाँ प्रसिद्ध। |
भगवत रसिक | प्रेमरसपूर्ण पद, कवित्त, कुंडलियाँ आदि। |
श्री हठी | प्रमुख रचना: ‘राधासुधाशतक’। |
गुमान मिश्र | प्रमुख रचनाएँ: ‘नैषधकाव्य’ का पद्यानुवाद, ‘कृष्णचंद्रिका’, ‘छंदाटवी’। |
सरजूराम पंडित | प्रमुख रचना: ‘जैमिनीपुराण भाषा’ (कथात्मक ग्रंथ)। |
सूदन | प्रमुख रचना: ‘सुजानचरित’ (प्रबंध काव्य)। |
हरनारायण | प्रमुख रचनाएँ: ‘माधवानल कामकंदला’, ‘बैताल पचीसी’। |
ब्रजवासी दास | प्रमुख रचना: ‘ब्रजविलास’ (प्रबंध काव्य)। |
घासीराम | कृष्ण भक्त कवि। भक्ति पदों की रचना। |
गोकुलनाथ | प्रमुख रचनाएँ: ‘चेतसिंह चन्द्रिका’, ‘राधाकृष्ण विलास’, ‘महाभारत दर्पण’। |
गोपीनाथ | गोकुलनाथ के पुत्र। महाभारत के कुछ पर्वों का अनुवाद। |
मणिदेव | समग्र महाभारत और हरिवंश का अनुवाद। |
रामचंद्र | प्रमुख रचना: ‘चरणचंद्रिका’। |
मंचित | प्रमुख रचनाएँ: ‘सुरभी दानलीला’, ‘कृष्णायन’। |
मधुसूदन दास | प्रमुख रचना: ‘रामाश्वमेधा’ (प्रबंध काव्य)। |
मनियार सिंह | प्रमुख रचनाएँ: ‘शिव महिमा स्तोत्र’ का अनुवाद, ‘हनुमान छब्बीसी’। |
कृष्णदास | प्रमुख रचना: ‘माधुर्य लहरी’ (कृष्णचरित)। |
भरमी | इनके छन्द ‘कालिदास हजारा’ में संकलित। |
गणेश बन्दीजन | प्रमुख रचनाएँ: ‘वाल्मीकि रामायण श्लोकार्थ प्रकाश’, ‘साहित्य सागर’। |
सम्मन | प्रमुख रचना: ‘पिंगल काव्यभूषण’ (रीतिग्रंथ)। |
ठाकुर असनी | फुटकल कविताएँ प्रसिद्ध। |
ठाकुर असनी दूसरे | प्रमुख रचना: ‘सतसई बरनार्थ’ (बिहारी सतसई की टीका)। |
ठाकुर बुंदेलखंडी (लाला ठाकुरदास) | जानकारी अपर्याप्त। |
ललकदास | प्रमुख रचना: ‘सत्योपाख्यान’ (वर्णनात्मक ग्रंथ)। |
खुमान | प्रमुख रचनाएँ: ‘अमरप्रकाश’, ‘अष्टयाम’, ‘हनुमान नखशिख’। |
नवलसिंह | प्रमुख रचनाएँ: ‘रासपंचाध्यायी’, ‘रामचंद्रविलास’, ‘आल्हा रामायण’। |
रामसहाय दास | प्रमुख रचनाएँ: ‘रामसतसई’, ‘श्रृंगार सतसई’, ‘राम सप्त शतिका’। |
चंद्रशेखर कवि | प्रमुख रचनाएँ: ‘हम्मीरहठ’, ‘विवेकविलास’, ‘रसिकविनोद’। |
दीनदयाल गिरि | प्रमुख रचनाएँ: ‘अन्योक्तिकल्पद्रुम’, ‘अनुरागबाग़’, ‘वैराग्य दिनेश’। |
पजनेस | प्रमुख रचनाएँ: ‘मधुरप्रिया’, ‘नखशिख’। |
गिरिधरदास | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पिता। 40 ग्रंथों का उल्लेख। जैसे ‘जरासंधवध’, ‘नहुष नाटक’। |
द्विजदेव (महाराज मानसिंह) | प्रमुख रचनाएँ: ‘श्रृंगारबत्तीसी’, ‘श्रृंगारलतिका’। |
चंद्रशेखर (वाजपेयी) | प्रमुख रचनाएँ: ‘हम्मीरहठ’, ‘नखशिख’, ‘विवेकविलास’। |
अहमद (ताहिर अहमद) | प्रमुख रचनाएँ: ‘कोकसार’, ‘अहमद बारामासी’, ‘रसविनोद’। |
चंडीदास | रामी धोबिन को सम्बोधित प्रेमगीत प्रसिद्ध। |
पृथ्वीराज | वीर रस के कवि, अकबर के दरबारी, महाराणा प्रताप के समर्थक। |
बुल्ले शाह | सूफी कवि। काफ़ियां, दोहड़े, बारांमाह आदि रचे। |
श्रीनाथ | तेलुगु भाषा के प्रसिद्ध कवि। ‘नैषध’ काव्य का रूपांतर। |
गंगाधर मेहरे | उड़िया भाषा के कवि। रचनाएँ: ‘प्रणय वल्लरी’, ‘तपस्विनी’। |
कविराज श्यामलदास | इतिहासकार एवं कवि। प्रमुख रचना: ‘वीर विनोद’ (मेवाड़ का इतिहास)। |
निष्कर्ष
रीतिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्णिम अध्याय है, जहाँ कविता ने श्रृंगार, वीरता और काव्यशास्त्र के रूप में अपनी चरम अभिव्यक्ति पाई। इस काल में बिहारी के संक्षिप्त और मारक दोहे से लेकर घनानंद की विरह-वेदना, भूषण की वीर रस की गर्जना और देव की अलंकारिक शैली तक विविध रंग देखने को मिलते हैं।
रीतिकाल का साहित्य केवल भाव और श्रृंगार का संसार नहीं है, बल्कि यह हिंदी काव्य परंपरा को व्यवस्थित और समृद्ध करने वाला काल भी है। इसीलिए इसे हिंदी साहित्य का आलंकारिक युग भी कहा जाता है।
रीतिकाल हिंदी साहित्य का वह स्वर्णिम युग है जिसमें अलंकार, श्रृंगार और काव्यशास्त्र की परंपरा ने अपना उत्कर्ष पाया। यह काल केवल प्रेम और सौंदर्य का गायक ही नहीं, बल्कि काव्यशास्त्र का मार्गदर्शक भी है। चिंतामणि, मतिराम, देव, बिहारी, घनानन्द और भूषण जैसे कवियों ने इसे अमर बना दिया।
रीतिकाल का साहित्य आज भी काव्यरस, भाषा-सौंदर्य और भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से अनुपम है। यह हिंदी साहित्य की धरोहर है, जो काव्य-प्रेमियों को सदा प्रेरित करती रहेगी।
इन्हें भी देखें –
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष: शताब्दी उत्सव, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी
- दशहरा 2025: राम, रावण और बुराई पर अच्छाई की जीत की कहानी
- नासा-इसरो निसार उपग्रह की पहली तस्वीरें: विज्ञान और मानवता के लिए नई आशा
- गिद्ध संरक्षण परियोजना: भारत का पहला गिद्ध संरक्षण पोर्टल और संकटग्रस्त गिद्धों का भविष्य
- सर्वोच्च न्यायालय में महिला न्यायाधीश: समावेशिता और लैंगिक समानता की चुनौती
- अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2025: तिथि, विषय और वैश्विक महत्व
- अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस 2025: विषय, इतिहास, महत्व और समकालीन प्रासंगिकता
- विश्व ओज़ोन दिवस 2025: विज्ञान से वैश्विक कार्रवाई तक
- भारत में मध्यकालीन साहित्य: फ़ारसी, उर्दू और क्षेत्रीय भाषाओं में शैलियों का विकास
- हिंदी भाषा का अतीत और वर्तमान