सरिस्का टाइगर रिज़र्व | एक अद्भुत जैव विविधता का प्रतीक

भारत में जैव विविधता के संरक्षण और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को संरक्षित रखने के लिए कई राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व बनाए गए हैं। इनमें राजस्थान राज्य का सरिस्का टाइगर रिज़र्व (Sariska Tiger Reserve) अपनी अनूठी भौगोलिक विशेषताओं, ऐतिहासिक महत्व और जैव विविधता के कारण विशेष पहचान रखता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश और नीतिगत परिवर्तनों के कारण यह क्षेत्र एक बार फिर चर्चा में आया है, विशेष रूप से क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) की सीमाओं के पुनः निर्धारण की योजना को लेकर।

सरिस्का टाइगर रिज़र्व का इतिहास

सरिस्का का क्षेत्र प्राचीन काल से ही वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आश्रय रहा है। यह कभी अलवर रियासत के महाराजाओं का शिकार स्थल हुआ करता था। शाही शिकार की परंपरा के चलते यहां बाघों, तेंदुओं और अन्य वन्य जीवों की बड़ी संख्या पाई जाती थी। स्वतंत्रता के बाद वन्यजीवों के संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए, इस क्षेत्र को वर्ष 1955 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया। आगे चलकर इसकी जैव विविधता और बाघों की घटती संख्या को मद्देनज़र रखते हुए इसे 1979 में राष्ट्रीय उद्यान और फिर Project Tiger के तहत एक महत्वपूर्ण टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।

सरिस्का भारत का पहला ऐसा टाइगर रिज़र्व बना, जहाँ बाघों की पूरी तरह समाप्ति के बाद बाघ पुनः स्थापन (Tiger Reintroduction Program) का कार्य सफलतापूर्वक किया गया। आज यह बाघ संरक्षण की दिशा में भारत की उपलब्धियों का उदाहरण बन चुका है।

भौगोलिक स्थिति और विशेषताएं

सरिस्का टाइगर रिज़र्व राजस्थान राज्य के अलवर जिले में स्थित है। यह क्षेत्र अरावली पर्वत श्रृंखला में फैला हुआ है, जो विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में गिनी जाती है। अरावली की ऊँचाई, चट्टानी भू-आकृतियाँ और घाटियाँ इस रिज़र्व को अद्वितीय बनाती हैं।

यहां की भूमि मुख्यतः पथरीली, सूखी कांटेदार झाड़ियों से युक्त है। इसके अलावा यहां घास के मैदान, अर्ध-पर्णपाती वन, और ऊँची पहाड़ी चट्टानों की भरमार है। सरिस्का की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 300 मीटर से 722 मीटर तक है, जिससे यहाँ विविध प्रकार की पारिस्थितिकीय प्रणालियाँ विकसित हुई हैं।

वनस्पति और प्राकृतिक आवरण

सरिस्का टाइगर रिज़र्व की वनस्पति को मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन
  2. उत्तरी उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन

इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख वृक्ष ढोक (Anogeissus pendula) है, जो यहाँ के वन आवरण का लगभग 90% भाग घेरता है। इसके अतिरिक्त सालर, कदाया, बेर, पीपल, गुग्गल, कैर, अडुसा, बांस और अन्य कांटेदार झाड़ियों की भरमार है। यहां की वनस्पति सूखे और अर्ध-शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल विकसित हुई है।

वन्यजीव विविधता

सरिस्का टाइगर रिज़र्व की सबसे बड़ी पहचान इसका बाघ (Tiger) है। यह रिज़र्व Project Tiger के अंतर्गत आता है और बाघों के संरक्षण के लिए जाना जाता है।

यहां अन्य प्रमुख वन्यजीवों में शामिल हैं:

  • तेंदुआ (Leopard)
  • सांभर
  • चीतल (Spotted Deer)
  • नीलगाय (Blue Bull)
  • चौसिंगा (Four-horned Antelope)
  • जंगली सूअर (Wild Boar)
  • लंगूर और रीसस बंदर
  • सियार, लोमड़ी और हाइना

यहां कई प्रकार के पक्षी भी पाए जाते हैं, जिनमें भारतीय मोर, बाज, उल्लू, पेट्रिज, गिद्ध, और अनेक प्रवासी पक्षी शामिल हैं।

पर्यटन और ऐतिहासिक महत्व

सरिस्का न केवल अपने वन्यजीवों के लिए बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के कारण भी प्रसिद्ध है।

प्रमुख दर्शनीय स्थल:

  • पांडुपोल: कहा जाता है कि पांडवों के वनवास के समय भीम ने यहां एक विशाल राक्षस को परास्त किया था। यहां हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है।
  • भानगढ़ किला: यह किला अपने भूतिया किस्सों और खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है।
  • अजबगढ़ और प्रतापगढ़: प्राचीन दुर्ग और राजपूताना स्थापत्य कला के प्रतीक।
  • सिलीसेढ़ और जय समंद झील: जलाशय, जो न केवल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं बल्कि क्षेत्र की पारिस्थितिकी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

CTH सीमा पुनर्निर्धारण और खनन विवाद

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरिस्का टाइगर रिज़र्व की क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) की सीमाओं के पुनः निर्धारण (Rationalisation) की योजना पर चर्चा हो रही है। इस योजना के तहत उन क्षेत्रों को CTH से बाहर किया जा सकता है जहाँ बाघों की उपस्थिति नगण्य है या जहां मानव गतिविधियाँ पहले से जारी हैं।

यही वह बिंदु है जिसने 50 से अधिक मार्बल और डोलोमाइट खदानों के पुनः संचालन की संभावनाओं को जन्म दिया है। ये खदानें पूर्व में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पर्यावरणीय कारणों से बंद कर दी गई थीं।

हालांकि इस प्रस्ताव पर संरक्षणवादियों और पर्यावरणविदों द्वारा चिंता जताई जा रही है। उनका मानना है कि खनन गतिविधियाँ इस संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र और बाघों के आवास के लिए घातक हो सकती हैं। दूसरी ओर खनन उद्योग से जुड़े लोग इसे स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार के दृष्टिकोण से सकारात्मक मानते हैं।

संरक्षण की चुनौतियाँ

सरिस्का टाइगर रिज़र्व को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:

  • अवैध खनन: प्रतिबंधों के बावजूद अवैध खनन अब भी कई जगहों पर देखा जाता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: गांवों की निकटता के कारण बाघ और तेंदुओं का मवेशियों पर हमला और ग्रामीणों की ओर से प्रतिशोध की घटनाएँ आम हैं।
  • चराई और जंगल की आग: घरेलू पशुओं की अवैध चराई और गर्मियों में लगने वाली आग जैव विविधता के लिए खतरा बनी रहती है।
  • पर्यटन का दबाव: अनियंत्रित पर्यटन और उससे उत्पन्न प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या है।

सरिस्का में बाघ पुनर्स्थापन कार्यक्रम की सफलता

सरिस्का टाइगर रिज़र्व भारत का पहला ऐसा टाइगर रिज़र्व बना, जहाँ बाघों को दूसरे रिज़र्व (रणथंभौर) से लाकर बसाया गया। वर्ष 2004 में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि सरिस्का में बाघ पूरी तरह समाप्त हो गए हैं। इसके बाद सरकार ने टाइगर रीलोकेशन प्रोग्राम शुरू किया और 2008 में रणथंभौर से बाघ और बाघिनों को हेलीकॉप्टर द्वारा लाकर सरिस्का में छोड़ा गया।

आज सरिस्का में लगभग एक दर्जन बाघ और बाघिनें पाई जाती हैं, जो इस कार्यक्रम की सफलता का प्रमाण हैं।

भविष्य की राह और समाधान

सरिस्का टाइगर रिज़र्व के संरक्षण और प्रबंधन के लिए निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:

  • CTH सीमा निर्धारण वैज्ञानिक आधार पर किया जाए ताकि बाघों का सुरक्षित गलियारा बना रहे।
  • खनन गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण हो और वैकल्पिक रोजगार सृजन पर जोर दिया जाए।
  • पर्यावरणीय शिक्षा और स्थानीय समुदाय की भागीदारी बढ़ाई जाए ताकि संरक्षण कार्यों को स्थानीय समर्थन मिले।
  • अवैध शिकार और लकड़ी कटाई पर निगरानी बढ़ाई जाए।
  • पर्यटन को सतत और जिम्मेदार बनाया जाए।

सरिस्का टाइगर रिज़र्व केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय है। इसकी जैव विविधता, ऐतिहासिक विरासत और पारिस्थितिकीय महत्त्व इसे अद्वितीय बनाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप यहां की नीतियाँ बनाई जाएं तो यह क्षेत्र आने वाले समय में भी बाघों और अन्य वन्यजीवों का सुरक्षित घर बना रह सकता है।

संरक्षण की दिशा में सरकार, वन विभाग, पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा ताकि सरिस्का की विरासत को सुरक्षित रखा जा सके और आने वाली पीढ़ियाँ भी इस प्राकृतिक धरोहर की भव्यता का आनंद उठा सकें।

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