एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा पकिस्तान की सहायता और भारत की आपत्तियाँ

एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा हाल ही में पाकिस्तान को $800 मिलियन की नीति-आधारित सहायता मंज़ूर किए जाने के निर्णय ने क्षेत्रीय भू-राजनीति में नई बहस को जन्म दिया है। इस कदम का भारत ने कड़ा विरोध किया है और इस सहायता की पारदर्शिता, उपयोग और प्रभावशीलता को लेकर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज कराई हैं। भारत ने आशंका जताई है कि यह राशि पाकिस्तान द्वारा सैन्य उद्देश्यों अथवा आतंकवाद के समर्थन में दुरुपयोग की जा सकती है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा उत्पन्न हो सकता है।

इस लेख में हम इस समूचे प्रकरण का विश्लेषण करेंगे – ADB द्वारा प्रस्तावित सहायता की प्रकृति, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति, भारत की आपत्तियाँ, और ADB जैसी बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ।

एशियाई विकास बैंक (ADB): एक परिचय

स्थापना और उद्देश्य

एशियाई विकास बैंक की स्थापना 1966 में एक संयुक्त राष्ट्र–संयोजित एशियाई आर्थिक सहयोग सम्मेलन के पश्चात की गई थी। इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में स्थित है। ADB का मुख्य उद्देश्य एशिया और प्रशांत क्षेत्र में गरीबी उन्मूलन, समावेशी विकास, सतत पर्यावरणीय नीतियाँ और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना है।

प्रमुख कार्य और वित्तीय साधन

ADB सदस्य देशों को विभिन्न माध्यमों से सहायता प्रदान करता है:

  • ऋण (Hard और Soft Loans): आर्थिक सुधारों व अवसंरचना परियोजनाओं के लिए।
  • अनुदान (Grants) और तकनीकी सहायता: विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए।
  • सीधे वित्तपोषण: निजी क्षेत्र की सामाजिक रूप से लाभकारी परियोजनाओं के लिए।
  • नीतिगत संवाद, सलाह और सह-वित्तपोषण: विशेषज्ञता साझा करना और साझा परियोजनाओं में सहयोग।

ADB धन जुटाने के लिए वैश्विक पूंजी बाजारों में बॉन्ड जारी करता है, साथ ही उसे सदस्य देशों के योगदान, ऋणों की चुकौती, ब्याज और अर्जित लाभ से भी पूंजी प्राप्त होती है।

एशियाई विकास बैंक (ADB) की सदस्यता और शेयरधारिता

ADB के कुल 67 सदस्य देश हैं, जिनमें से 48 एशिया–प्रशांत क्षेत्र से हैं। प्रमुख शेयरधारकों में शामिल हैं:

  • जापान: 15.607%
  • अमेरिका: 15.607%
  • चीन: 6.444%
  • भारत: 6.331%
  • ऑस्ट्रेलिया: 5.786%

जलवायु प्रतिबद्धताएँ

ADB ने 2019 से 2030 के बीच $100 बिलियन की जलवायु वित्त सहायता जुटाने का लक्ष्य रखा है, जिससे वह अपने सदस्य देशों की जलवायु अनुकूल नीतियों को समर्थन दे सके।

पाकिस्तान को दी गई सहायता का स्वरूप

सहायता का विवरण

एशियाई विकास बैंक ने पाकिस्तान को $800 मिलियन (लगभग ₹6,650 करोड़) की नीति-आधारित सहायता मंज़ूर की है। इसका उद्देश्य पाकिस्तान की सरकार द्वारा किए जा रहे कथित आर्थिक सुधारों और सामाजिक विकास पहलों को समर्थन देना है।

पृष्ठभूमि और संदर्भ

इस सहायता की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब पाकिस्तान पहले ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से $1 बिलियन (₹8,500 करोड़) की सहायता प्राप्त कर चुका है। IMF सहायता के साथ सख्त शर्तें जुड़ी होती हैं, जिससे आर्थिक नीतियों में पारदर्शिता और अनुशासन की अपेक्षा रहती है, किंतु ADB के इस पैकेज पर भारत ने ऐसे ही कठोर नियंत्रण तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया है।

भारत की आपत्तियाँ: एक विस्तृत मूल्यांकन

1. फंड के दुरुपयोग की आशंका

भारत ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि पाकिस्तान को दी जा रही वित्तीय सहायता का दुरुपयोग सैन्य खर्चों अथवा आतंकवाद को परोक्ष समर्थन देने में किया जा सकता है। भारत का यह रुख केवल संदेह नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अनुभवों पर आधारित है – जहाँ वित्तीय सहायता का उपयोग सशस्त्र संगठनों या रक्षात्मक अधोसंरचना के निर्माण में हुआ है।

भारत ने ADB से आग्रह किया है कि किसी भी प्रकार की सहायता सख्त निगरानी तंत्र (Strict Oversight Mechanisms) के अधीन दी जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निधियों का वास्तविक विकासात्मक उपयोग ही हो।

2. पाकिस्तान की कर-संग्रह अक्षमता

भारत ने पाकिस्तान के गिरते Tax-to-GDP अनुपात की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है, जो 2017-18 में 13% था, किंतु 2022-23 में घटकर मात्र 2% रह गया। यह आंकड़ा न केवल पाकिस्तान की कर-संग्रह क्षमताओं की विफलता को दर्शाता है, बल्कि यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र के औसत 19% से भी बहुत नीचे है।

इससे यह संकेत मिलता है कि पाकिस्तान की आंतरिक वित्तीय संरचना न केवल कमजोर है, बल्कि उसमें सुधार की वास्तविक राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी अभाव है।

3. बढ़ते सैन्य खर्च

भारत का तर्क है कि जब पाकिस्तान के कर-संग्रह घट रहे हैं, तब उसके रक्षा खर्च में बढ़ोतरी एक विरोधाभासी और चिंताजनक प्रवृत्ति है। भारत का यह भी मानना है कि इस परिस्थिति में बिना शर्त सहायता न केवल वित्तीय रूप से अनुचित है, बल्कि सुरक्षा दृष्टिकोण से भी जोखिमपूर्ण हो सकती है।

4. FATF और भारत का प्रयास

भारत पहले भी IMF जैसी संस्थाओं में पाकिस्तान को दी जा रही सहायता पर आपत्ति जता चुका है। वर्तमान में भारत FATF (Financial Action Task Force) में पाकिस्तान को पुनः ग्रे लिस्ट में शामिल करने के लिए एक विस्तृत डोज़ियर तैयार कर रहा है। FATF की ग्रे लिस्ट में रहना यह दर्शाता है कि देश आतंकी वित्तपोषण या मनी लॉन्डरिंग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं कर पा रहा।

यदि पाकिस्तान FATF की निगरानी में रहता है, तो ADB जैसी संस्थाओं से वित्तीय सहायता प्राप्त करने पर भी प्रश्नचिह्न लगते हैं।

राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण

भारत का यह विरोध केवल आर्थिक आधार पर नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक और कूटनीतिक रणनीति का भी हिस्सा है। भारत का मानना है कि जब तक पाकिस्तान अपने आर्थिक और आंतरिक सुरक्षा ढांचे में वास्तविक और स्थायी सुधार नहीं करता, तब तक उसे बिना शर्त बाह्य वित्तीय सहायता देना अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अनुशासन और क्षेत्रीय स्थिरता – दोनों के लिए ख़तरनाक हो सकता है।

भारत के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ आतंकी नेटवर्कों को अप्रत्यक्ष रूप से संसाधन न दें, भले ही वह “विकास सहायता” के नाम पर हो।

ADB की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ

बहुपक्षीय संस्थाओं, विशेष रूप से ADB जैसी संस्थाओं की यह नैतिक और प्रशासनिक ज़िम्मेदारी है कि वे अपने सदस्य देशों द्वारा दिए गए संसाधनों का विवेकपूर्ण और उद्देश्यपरक उपयोग सुनिश्चित करें।

यदि सहायता प्राप्त करने वाला देश:

  • आतंकवाद से संबंध रखने का संदेहास्पद इतिहास रखता हो
  • आंतरिक पारदर्शिता की कमी हो
  • कर-संग्रह और व्यय प्रबंधन में असमर्थ हो
  • और यदि वह सैन्य प्राथमिकताओं को सामाजिक विकास पर तरजीह देता हो

तो ऐसी परिस्थिति में बिना निगरानी वाली सहायता अंतरराष्ट्रीय नीति की विफलता मानी जा सकती है।

भारत द्वारा उठाई गई आपत्तियाँ केवल एक देश की असहमति नहीं हैं, बल्कि वे एक गंभीर चेतावनी हैं कि अंतरराष्ट्रीय विकास सहायता को राजनीतिक और सुरक्षा परिप्रेक्ष्य से भी देखा जाना चाहिए।

ADB जैसी संस्थाओं के लिए यह आवश्यक है कि वे सहायता प्रदान करने से पहले:

  • पारदर्शिता के मानकों का गहन विश्लेषण करें
  • निगरानी तंत्रों को अनिवार्य बनाएँ
  • और सदस्य देशों की आपत्तियों को गंभीरता से लें

जब तक पाकिस्तान अपने आर्थिक और आतंरिक ढाँचे में गंभीर और स्थायी सुधार नहीं करता, तब तक उसे दी जाने वाली हर सहायता को संदेह की कसौटी पर कसा जाना चाहिए।

इस संदर्भ में भारत की आपत्तियाँ केवल एक देश की चिंता नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा से जुड़ी हैं, जिसे वैश्विक मंच पर गंभीरता से समझने और सम्मान देने की आवश्यकता है।

Polity – KnowledgeSthali


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