विश्व राजनीति के नए संकट के रूप में ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों को झकझोर कर रख दिया है। इस क्षेत्रीय संघर्ष का सीधा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ा है, जिससे पूरी दुनिया में महंगाई की लहर और आर्थिक अनिश्चितता फैल रही है। विशेष रूप से होरमुज़ जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) को लेकर उत्पन्न खतरा दुनिया के तेल व्यापार को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। यह लेख इस संकट की पृष्ठभूमि, संभावित प्रभाव, और भारत जैसे आयात-निर्भर देशों के दृष्टिकोण से इसके परिणामों का विश्लेषण करता है।
होरमुज़ जलडमरूमध्य: वैश्विक ऊर्जा का नाजुक मार्ग
1. एक संकीर्ण लेकिन रणनीतिक chokepoint
होरमुज़ जलडमरूमध्य पश्चिम एशिया में फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है। यह मात्र 33 किमी चौड़ा यह समुद्री मार्ग वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। इसे दुनिया का सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण तेल परिवहन मार्ग भी कहा जाता है।
- वर्ष 2024 में इस मार्ग से प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ बैरल (20 million barrels per day) कच्चा तेल गुजरा।
- यह संख्या विश्व की कुल तेल खपत का लगभग 20% है।
- International Energy Agency (IEA) के अनुसार, दुनिया की कुल आपूर्ति का 25% से अधिक खाड़ी क्षेत्र से आता है, जो इसी मार्ग से होकर गुजरता है।
2. किन देशों के लिए है यह मार्ग अहम?
होरमुज़ जलडमरूमध्य मुख्य रूप से निम्नलिखित तेल उत्पादक देशों के लिए निर्यात का एकमात्र सुरक्षित रास्ता है:
- सऊदी अरब – दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक
- ईरान – तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार और प्राकृतिक गैस में दूसरा सबसे बड़ा देश
- यूएई, कुवैत, इराक और कतर – ये सभी देश अपने तेल निर्यात का अधिकांश हिस्सा इसी मार्ग से भेजते हैं
यदि यह मार्ग अवरुद्ध होता है, तो इन सभी देशों की ऊर्जा आपूर्ति पर गहरा असर पड़ेगा, जिसका वैश्विक बाजारों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
ईरान की ऊर्जा क्षमता और रणनीतिक स्थिति
1. तेल और गैस का महाशक्ति
US Energy Information Administration (EIA) के अनुसार:
- वर्ष 2023 तक ईरान के पास दुनिया का 12% तेल भंडार था – जो इसे वेनेजुएला और सऊदी अरब के बाद तीसरे स्थान पर रखता है।
- प्राकृतिक गैस के मामले में, ईरान रूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा भंडार रखता है।
2. ईरान की सामरिक धमकी
ईरान ने समय-समय पर संकेत दिए हैं कि यदि उसे उकसाया गया तो वह होरमुज़ जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। यह न केवल सैन्य रूप से संभव है, बल्कि यह वैश्विक बाजारों में भय और अनिश्चितता फैलाने के लिए एक राजनीतिक उपकरण भी बन गया है।
- 2025 में युद्ध की आशंका बढ़ने के साथ ही ईरान ने होरमुज़ को “राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय” घोषित किया।
- किसी भी तरह का सैन्य तनाव या हमला इस मार्ग की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
वैश्विक तेल बाज़ारों में उथल-पुथल
1. कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि
ईरान-इज़राइल टकराव की खबरों के बाद:
- ब्रेंट क्रूड की कीमतें कुछ ही दिनों में $75 से बढ़कर $95 प्रति बैरल तक पहुँच गईं।
- वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) भी तेज़ी से ऊपर गया।
इसका असर दुनिया भर में महसूस किया गया — पेट्रोल, डीजल, एयरलाइंस ईंधन, और खाद्य आपूर्ति की कीमतें बढ़ने लगीं।
2. स्टॉक मार्केट और निवेशक प्रतिक्रिया
- ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के शेयरों में तेजी आई।
- लेकिन लंबी अवधि की अनिश्चितता ने निवेशकों को सुरक्षित परिसंपत्तियों (जैसे सोना) की ओर मोड़ दिया।
भारत की स्थिति: एक बड़ी चिंता
1. आयात पर भारी निर्भरता
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। लेकिन घरेलू उत्पादन की कमी के कारण भारत अपनी आवश्यकता का लगभग 85% कच्चा तेल आयात करता है।
- खाड़ी क्षेत्र से भारत का तेल आयात 60% से अधिक है।
- यदि वहां आपूर्ति बाधित होती है, तो भारत को वैकल्पिक, महंगे स्रोतों से तेल खरीदना पड़ता है।
2. डॉलर की मांग में वृद्धि
कच्चा तेल आमतौर पर डॉलर में खरीदा जाता है। जब कीमतें बढ़ती हैं:
- भारत को अधिक डॉलर खर्च करने पड़ते हैं।
- इससे रुपया कमजोर होता है, जिससे आयात महंगा और मुद्रास्फीति तेज हो जाती है।
3. सरकार की रणनीति
- भारत ने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserve) का निर्माण किया है, लेकिन यह सिर्फ 9-10 दिन की आवश्यकता भर पूरा कर सकता है।
- दीर्घकालिक समाधान के तौर पर भारत रूस, अमेरिका, ब्राजील और अफ्रीका जैसे वैकल्पिक स्रोतों से आपूर्ति बढ़ा रहा है।
ऊर्जा भू-राजनीति: अमेरिका, चीन और रूस की भूमिका
1. अमेरिका की स्थिति
- अमेरिका अब ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर हो चुका है और दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है।
- लेकिन उसकी नौसेना होरमुज़ जलडमरूमध्य की सुरक्षा में गहराई से जुड़ी है।
- अमेरिका को चिंता है कि ईरान इस मार्ग का “राजनीतिक हथियार” न बना दे।
2. चीन की चिंता
- चीन भी भारत की तरह कच्चे तेल का बड़ा आयातक है।
- होरमुज़ से चीन को प्रतिदिन 50 लाख बैरल से अधिक तेल मिलता है।
- चीन ने इस खतरे से निपटने के लिए स्ट्रैटेजिक रिज़र्व, सौदी-ईरान संबंधों में मध्यस्थता, और Belt and Road Initiative (BRI) का उपयोग किया है।
3. रूस की चाल
- रूस वर्तमान में पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते अपने तेल को एशिया को बेच रहा है।
- यदि पश्चिम एशिया में तनाव बना रहता है, तो रूस के लिए एक मौका होगा कि वह भारत और चीन को अधिक कीमत पर तेल बेचे।
संभावित परिणाम और विश्व अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
1. मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी
तेल महंगा होने से:
- परिवहन, खाद्य और औद्योगिक उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी।
- विकासशील देशों में मुद्रास्फीति के लक्ष्य गड़बड़ा सकते हैं।
2. वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा
अगर तनाव लंबा चला और तेल $100 प्रति बैरल से ऊपर रहा:
- यूरोप, भारत और चीन की आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है।
- अमेरिका में ब्याज दरें कम करने के प्रयास बाधित हो सकते हैं।
3. वैकल्पिक ऊर्जा की ओर झुकाव
इस संकट से सबक लेते हुए:
- कई देश नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ सकते हैं।
- इलेक्ट्रिक वाहन, ग्रीन हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा।
ईरान-इज़राइल टकराव केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरी वैश्विक व्यवस्था पर पड़ सकता है। होरमुज़ जलडमरूमध्य पर संभावित खतरा कच्चे तेल की कीमतों को अस्थिर बना रहा है, जिससे भारत जैसे देशों की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ रहा है। इस समय सभी देशों को दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा रणनीतियों पर विचार करने की आवश्यकता है। साथ ही, भू-राजनीतिक संकटों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का प्रयास भी उतना ही आवश्यक है।
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