मानव जीवन अमूल्य है। किसी गंभीर रोग, दुर्घटना या अंग-विशेष की विफलता के कारण जब किसी मरीज का जीवन संकट में पड़ता है, तब अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplantation) ही उसे जीवनदान देने का अंतिम विकल्प बन जाता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की प्रगति ने यह संभव किया है कि एक व्यक्ति द्वारा दान किया गया अंग दूसरे व्यक्ति को जीवन का दूसरा अवसर प्रदान कर सकता है। परंतु इस जीवनदायिनी प्रक्रिया में भी सामाजिक संरचनाएँ, मान्यताएँ और लैंगिक असमानता (Gender Inequality) गहराई से दिखाई देती है।
भारत में राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) द्वारा हाल ही में जारी 10 सूत्रीय परामर्श ने इस असमानता पर प्रकाश डालते हुए महिला मरीजों और महिला परिजनों को लाभार्थी के रूप में प्राथमिकता देने की दिशा में पहल की है। यह कदम भारतीय समाज में लंबे समय से मौजूद उस विडंबना को उजागर करता है जिसमें महिलाएँ अधिकतर “दाता” (Donor) होती हैं, परंतु “ग्राही” (Recipient) बनने में पीछे रह जाती हैं।
अंगदान की परिभाषा और महत्व
अंग प्रत्यारोपण एक शल्य चिकित्सा प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति के शरीर से अंग, ऊतक या कोशिकाओं का समूह निकालकर दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसका उद्देश्य रोगग्रस्त या निष्क्रिय अंग को बदलकर मरीज के जीवन को बचाना या उसकी जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।
- जीवित दाता (Living Donor): वह व्यक्ति जो अपने शरीर से कोई अंग (जैसे – किडनी, लिवर का एक हिस्सा) जीवित रहते हुए दान करता है।
- मृत दाता (Deceased Donor): वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु हो चुकी है और उसके परिजन उसकी सहमति से अंग दान करते हैं।
अंगदान का महत्व इस तथ्य से समझा जा सकता है कि एक मृतक दाता कम-से-कम 8–9 लोगों को नया जीवन प्रदान कर सकता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
अंगदान और प्रत्यारोपण की स्थिति वैश्विक स्तर पर भी बेहद चिंताजनक है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर वर्ष लगभग 1,30,000 सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांट किए जाते हैं।
- यह संख्या विश्व स्तर पर वास्तविक आवश्यकता का केवल 10% ही है।
- विकसित देशों में अंगदान की संस्कृति अपेक्षाकृत बेहतर है, परंतु फिर भी वहाँ भी प्रतीक्षा सूची में शामिल हजारों मरीज समय पर अंग न मिलने से दम तोड़ देते हैं।
इस प्रकार, अंगदान की उपलब्धता और आवश्यकता के बीच गहरी खाई मौजूद है।
भारत में अंगदान की स्थिति
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में अंगदान की दर अत्यंत कम है। आँकड़ों के अनुसार:
- भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख से अधिक लोग अंगों के अभाव में मृत्यु को प्राप्त करते हैं।
- प्रति दस लाख जनसंख्या पर मात्र 0.65 मृत अंगदाता दर्ज किए जाते हैं, जबकि स्पेन जैसे देशों में यह संख्या 30 से अधिक है।
- NOTTO के अनुसार, 2019–2023 के बीच अंगदान में लैंगिक असमानता स्पष्ट रूप से सामने आई है।
लिंग आधारित असमानता के आंकड़े
- जीवित अंग दाताओं (Living Donors) में 63.8% महिलाएँ थीं।
- वहीं अंग प्राप्तकर्ताओं (Recipients) में 69.8% पुरुष रहे।
यह आंकड़े बताते हैं कि महिलाएँ अंगदान में आगे हैं लेकिन अंग पाने में पीछे छूट जाती हैं।
अंगदान में लैंगिक असमानता: कारण
1. पितृसत्तात्मक सामाजिक मान्यताएँ
भारतीय समाज पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक ढांचे में बंधा हुआ है।
- महिलाओं को प्रायः “त्याग और बलिदान” की प्रतीक माना जाता है।
- परिवार और समाज उनसे यह अपेक्षा करता है कि वे दूसरों के जीवन और भलाई के लिए खुद का बलिदान करें।
- यही मानसिकता उन्हें अंगदान के लिए प्रेरित करती है, भले ही उनके अपने स्वास्थ्य पर इसका गंभीर प्रभाव पड़े।
2. आर्थिक कारण
- परिवार में पुरुष को प्रायः मुख्य कमाऊ सदस्य (Breadwinner) माना जाता है।
- अंगदान के बाद कामकाज पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए परिवार पुरुषों को दान के लिए आगे बढ़ाने से हिचकिचाता है।
- इसके विपरीत, महिलाओं को कमाऊ सदस्य न मानने के कारण उनसे बलिदान की अपेक्षा की जाती है।
3. महिलाओं के स्वास्थ्य की उपेक्षा
- भारतीय समाज में महिलाओं के स्वास्थ्य को पुरुषों जितनी प्राथमिकता नहीं दी जाती।
- परिवार और समाज पुरुष मरीजों को अंग दिलाने में अधिक तत्पर रहते हैं।
- परिणामस्वरूप, महिला मरीज प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा सूची में उपेक्षित रह जाती हैं।
4. चिकित्सीय और संस्थागत कारण
- कई बार चिकित्सा संस्थानों और अंग प्रत्यारोपण समितियों में भी अनजाने पूर्वाग्रह (Unconscious Bias) देखने को मिलता है।
- महिला मरीजों के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने की प्राथमिकता कम रखी जाती है।
- स्वास्थ्य बीमा और सरकारी सहायता योजनाओं में भी महिलाओं की पहुँच सीमित रहती है।
लैंगिक असमानता के परिणाम
अंगदान और प्रत्यारोपण में मौजूद यह असमानता कई स्तरों पर महिलाओं को नुकसान पहुँचाती है:
- स्वास्थ्य जोखिम: बार-बार अंगदान के कारण महिलाएँ दीर्घकालिक स्वास्थ्य जटिलताओं का शिकार हो सकती हैं।
- सामाजिक असमानता: त्याग और बलिदान की भूमिका महिलाओं को हाशिए पर धकेलती है।
- न्याय का अभाव: महिला मरीजों को समय पर अंग न मिलने से वे जीवनरक्षा से वंचित रह जाती हैं।
- नीतिगत असंतुलन: यदि इस असमानता को दूर करने के लिए कदम न उठाए जाएँ तो यह स्वास्थ्य सेवाओं की समानता (Equity) की अवधारणा को कमजोर कर देता है।
NOTTO की पहल: 10 सूत्रीय परामर्श
राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) ने हाल ही में 10 सूत्रीय परामर्श (10-Point Advisory) जारी किया है। इसका उद्देश्य अंगदान में मौजूद लैंगिक असमानता को कम करना और महिला मरीजों को समान अवसर देना है।
प्रमुख बिंदु:
- अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा सूची में महिला मरीजों को प्राथमिकता।
- दिवंगत दाता की महिला परिजनों को अंग प्राप्तकर्ताओं की सूची में लाभ देना।
- चिकित्सा संस्थानों में महिला मरीजों के लिए पारदर्शी और न्यायसंगत प्रक्रिया।
- परिवारों को जागरूक करना कि महिलाएँ केवल दानकर्ता ही नहीं, बल्कि लाभार्थी भी हो सकती हैं।
- अंग प्रत्यारोपण की नीतियों में लैंगिक समानता को शामिल करना।
समाधान और आगे की राह
1. जागरूकता और सामाजिक बदलाव
- अंगदान को केवल त्याग का प्रतीक मानने की बजाय इसे मानव अधिकार और स्वास्थ्य समानता के दृष्टिकोण से देखना होगा।
- समाज में महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों को प्राथमिकता देनी होगी।
2. नीतिगत हस्तक्षेप
- सरकार और संस्थानों को अंगदान व प्रत्यारोपण की नीतियों में लैंगिक न्याय (Gender Justice) सुनिश्चित करना होगा।
- महिला मरीजों के लिए विशेष प्रोत्साहन और सहायता योजनाएँ शुरू की जानी चाहिए।
3. आर्थिक सुरक्षा
- परिवारों को यह भरोसा दिलाना आवश्यक है कि अंगदान करने से उनका आर्थिक भविष्य प्रभावित नहीं होगा।
- दान करने वाली महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा और पुनर्वास योजनाएँ जरूरी हैं।
4. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
- अस्पतालों और ट्रांसप्लांट केंद्रों को लैंगिक संवेदनशील बनाना होगा।
- चिकित्सकों को महिलाओं की आवश्यकताओं और अधिकारों के प्रति प्रशिक्षित करना आवश्यक है।
5. शिक्षा और मीडिया की भूमिका
- शिक्षा और मीडिया के माध्यम से यह संदेश देना कि महिलाएँ केवल दानकर्ता नहीं, बल्कि बराबर की ग्राही भी हैं।
- प्रेरणादायक उदाहरणों को सामने लाना, ताकि परिवारों की सोच बदले।
निष्कर्ष
अंगदान जीवन बचाने वाला महान कार्य है, परंतु इसमें मौजूद लैंगिक असमानता समाज की गहरी जड़ें उजागर करती है। महिलाएँ, जो परिवार और समाज की रीढ़ हैं, उन्हें केवल “दाता” के रूप में देखना उनके प्रति अन्याय है। अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया तभी सार्थक होगी जब पुरुष और महिला – दोनों को समान अवसर मिले।
NOTTO की हालिया पहल इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि इसे सही रूप में लागू किया जाए तो न केवल महिलाएँ लाभान्वित होंगी, बल्कि भारतीय समाज लैंगिक समानता की ओर एक बड़ा कदम बढ़ाएगा। अंगदान की प्रक्रिया तब ही न्यायपूर्ण और मानवोचित कहलाएगी जब हर व्यक्ति, चाहे वह महिला हो या पुरुष, समान रूप से दान और ग्रहण दोनों का अधिकार रखेगा।
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