भारतेन्दु युग (1868–1900 ई.): हिंदी नवजागरण का स्वर्णिम प्रभात

भारतेन्दु युग (1868–1900 ई.) : हिंदी नवजागरण का स्वर्णिम प्रभात

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल अपने भीतर कई युगों को समाहित करता है, जिनमें “भारतेंदु युग” एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह युग हिंदी नवजागरण का प्रारंभिक चरण माना जाता है और इसका नामकरण इस युग के अग्रदूत, हिंदी के महान कवि, नाटककार, पत्रकार और समाजसेवी भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850–1885 ई.) के नाम पर किया गया … Read more

प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता: छायावादोत्तर युग के अंग या स्वतंत्र साहित्यिक प्रवृत्तियाँ?

प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता: छायावादोत्तर युग के अंग या स्वतंत्र साहित्यिक प्रवृत्तियाँ?

हिंदी साहित्य का इतिहास केवल घटनाओं या धाराओं की श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह समाज के भीतर चल रही वैचारिक उथल-पुथल, सांस्कृतिक जागरण और मनोवैज्ञानिक अंतर्द्वंद्व का लेखा-जोखा भी है। छायावाद यद्यपि हिंदी कविता का स्वर्णकाल रहा, परंतु उसकी भावुकता, रहस्यवाद और व्यक्तिगत संवेदनशीलता धीरे-धीरे बदलते यथार्थ से टकराने लगी। 1936 के बाद का युग, … Read more

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल और उसका ऐतिहासिक विकास | 1850 ई. से वर्तमान तक

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल

यह लेख आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे समृद्ध और बहुआयामी युग—आधुनिक काल (1850 ई. से वर्तमान तक)—का एक विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें आधुनिक युग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन, गद्य-पद्य का विकास, एवं साहित्यिक आंदोलनों की क्रमबद्ध चर्चा की गई है। भारत में अंग्रेज़ी शासन की स्थापना के बाद हिंदी गद्य को मिली … Read more

रीतिकाल (1650 – 1850 ई.): हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकालीन युग

रीतिकाल (1650 ई. – 1850 ई.): हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकालीन युग

हिंदी साहित्य का इतिहास अपने विविधता भरे काल-विभाजनों के लिए प्रसिद्ध है। आदिकाल, भक्तिकाल और आधुनिक काल के बीच का यह युग, जिसे हम रीतिकाल के नाम से जानते हैं, हिंदी काव्यधारा का एक विशेष और विशिष्ट अध्याय है। यह काल न केवल साहित्यिक शैलियों के विकास के लिए, बल्कि दरबारी संस्कृति और शृंगारिक प्रवृत्तियों … Read more

हिंदी साहित्य के आदिकाल के कवि और काव्य (रचनाएँ)

आदिकाल के कवि और काव्य

यह लेख हिंदी साहित्य के आदिकाल (650 ई. – 1350 ई.) की रचनाओं (काव्य) और रचनाकारों (कवि) का एक सुव्यवस्थित व विश्लेषणात्मक संकलन प्रस्तुत करता है, जिसे विशेष रूप से परीक्षाओं, शोध एवं साहित्यिक अध्ययन के लिए तैयार किया गया है। इसमें आदिकाल को तीन प्रमुख कालखंडों — प्रारंभिक, मध्य और उत्तर आदिकाल — में … Read more

चारणी साहित्य (रासो साहित्य): वीरगाथात्मक परंपरा का अद्भुत विरासत

चारणी साहित्य (रासो साहित्य): वीरगाथात्मक परंपरा का अद्भुत विरासत

हिंदी साहित्य के आदिकाल में विकसित हुआ चारणी या रासो साहित्य भारतीय समाज के सामंतवादी ढांचे, वीरता, राजभक्ति और मातृभूमि के प्रति समर्पण का कलात्मक दस्तावेज है। यह साहित्यिक परंपरा मूलतः वीरगाथात्मक है, जिसकी बुनियाद युद्ध, शौर्य, स्वामीभक्ति और अतिशयोक्ति में निहित है। रासो साहित्य के रचयिता चारण, भाट या दरबारी कवि हुआ करते थे, … Read more

प्रकीर्णक (लौकिक) साहित्य: श्रृंगारिकता और लोकसंवेदना का आदिकालीन स्वरूप

प्रकीर्णक (लौकिक) साहित्य: श्रृंगारिकता और लोकसंवेदना का आदिकालीन स्वरूप

हिंदी साहित्य के इतिहास को जब हम उसके आदिकालीन स्वरूप में देखते हैं, तो वहाँ वीर रसप्रधान रासो साहित्य और धर्माश्रित धार्मिक साहित्य के समानांतर एक तीसरी साहित्यिक धारा भी दृष्टिगत होती है – जिसे प्रकीर्णक साहित्य अथवा लौकिक साहित्य कहा जाता है। यह साहित्य न तो राजाश्रय का प्रतिफल था और न ही धर्म … Read more

जैन साहित्य: स्वरूप, विकास, प्रमुख कवि, कृतियाँ और साहित्यिक विशेषताएँ

जैन साहित्य: स्वरूप, विकास, प्रमुख कवि, कृतियाँ और साहित्यिक विशेषताएँ

भारतवर्ष की धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा में जैन धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जैन धर्म न केवल एक आध्यात्मिक मार्ग है, अपितु एक विशिष्ट साहित्यिक परंपरा का वाहक भी रहा है। जैन साहित्य, जो विविध भाषाओं और शैलियों में रचा गया, धर्म, दर्शन, नैतिकता और इतिहास की अनमोल धरोहर बन चुका है। इस … Read more

सिद्ध साहित्य: हिन्दी साहित्य का आदिरूप और सामाजिक चेतना का संवाहक

सिद्ध साहित्य: हिन्दी साहित्य का आदिरूप और सामाजिक चेतना का संवाहक

सिद्ध साहित्य हिन्दी साहित्य की आदिम कड़ी है, जो न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना की दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है। यह साहित्य भारत में बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से संबद्ध सिद्ध साधकों द्वारा रचित है, जो विशेषतः भारत के पूर्वी भाग—बिहार, बंगाल और असम—में सक्रिय … Read more

नाथ संप्रदाय (साहित्य): योग, तंत्र और साधना की भारतीय परंपरा का अनूठा अध्याय

नाथ संप्रदाय (साहित्य)

भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में योग, तंत्र और साधना के अनेक मार्ग विकसित हुए हैं। इन्हीं में एक प्रमुख पंथ है – नाथ संप्रदाय। नाथ संप्रदाय का उद्भव सिद्धों की भोगवादी प्रवृत्ति और उनके द्वारा प्रचारित महासुखवाद के विरोध स्वरूप हुआ। नाथ साहित्य न केवल आध्यात्मिक चेतना को उजागर करता है, बल्कि यह समाज … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.