भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station – BAS)

भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बीते कुछ दशकों में जो उपलब्धियाँ हासिल की हैं, वे विश्व के लिए प्रेरणादायक हैं। मंगल की कक्षा में पहुँचने वाला पहला एशियाई देश बनने से लेकर चंद्रमा की सतह पर सफल मिशन तक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने बार-बार यह साबित किया है कि सीमित संसाधनों के बावजूद वैज्ञानिक दृष्टि, दूरदर्शी नेतृत्व और तकनीकी नवाचार से असंभव को संभव बनाया जा सकता है। इसी कड़ी में अब भारत ने एक और ऐतिहासिक घोषणा की है—भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station – BAS) की स्थापना।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस (National Space Day) के अवसर पर भारत मंडपम, नई दिल्ली में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के मॉडल का अनावरण किया गया। यह न केवल भारत की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं का प्रतीक है, बल्कि भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण, वैज्ञानिक अनुसंधान और वैश्विक सहयोग का आधार भी बनेगा।

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भारत का सपना : अंतरिक्ष स्टेशन

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की पहली इकाई वर्ष 2028 में लॉन्च करने का लक्ष्य रखा गया है। धीरे-धीरे इसमें पाँच मॉड्यूल जोड़े जाएंगे और 2035 तक इसका पूर्ण निर्माण पूरा होगा

भारत इस कदम के साथ उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा जो अपनी स्वदेशी ऑर्बिटल लैबोरेटरी (Orbital Laboratory) का संचालन करते हैं। वर्तमान में ऐसी सुविधा केवल दो देशों/गठबंधनों के पास है—

  1. अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) – जिसे अमेरिका, रूस, जापान, कनाडा और यूरोप मिलकर संचालित कर रहे हैं।
  2. चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन (Tiangong Space Station) – जिसे पूरी तरह चीन ने विकसित किया है।

इस तरह BAS भारत की आत्मनिर्भर अंतरिक्ष नीति और वैश्विक वैज्ञानिक नेतृत्व की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की विशेषताएँ

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) को आधुनिकतम प्रौद्योगिकी और स्वदेशी प्रणालियों से लैस किया जाएगा। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं—

  1. स्वदेशी पर्यावरण नियंत्रण एवं जीवन समर्थन प्रणाली (ECLSS)
    यह प्रणाली स्टेशन के भीतर ऑक्सीजन, तापमान, नमी और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बनाए रखेगी ताकि अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक सुरक्षित रूप से रह सकें।
  2. भारत डॉकिंग सिस्टम और भारत बर्थिंग मैकेनिज्म
    इससे विभिन्न मॉड्यूल आपस में जुड़ सकेंगे और भविष्य में अन्य देशों के यान भी इस स्टेशन से डॉक कर पाएंगे।
  3. स्वचालित हैच सिस्टम
    मॉड्यूल के बीच सुरक्षित और सरल आवागमन के लिए स्वचालित द्वार होंगे।
  4. सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण अनुसंधान
    अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी की स्थिति में कई तरह के वैज्ञानिक प्रयोग किए जाएंगे, जैसे—जैव-प्रौद्योगिकी, औषधि निर्माण, सामग्री विज्ञान और द्रव गतिकी।
  5. वैज्ञानिक इमेजिंग
    पृथ्वी अवलोकन और खगोलीय अध्ययन के लिए उच्च क्षमता वाले कैमरे और इमेजिंग उपकरण लगाए जाएंगे।
  6. क्रू मॉड्यूल और मनोरंजन सुविधाएँ
    लंबे समय तक रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विश्राम कक्ष, मनोरंजन प्रणाली और पृथ्वी को देखने के लिए व्यूपोर्ट (Viewport) उपलब्ध कराया जाएगा।

ये सभी विशेषताएँ भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को न केवल तकनीकी दृष्टि से सक्षम बनाएंगी, बल्कि इसे वैज्ञानिक प्रयोगशाला के रूप में भी अद्वितीय बनाएंगी।

विकास की समयरेखा (Timeline)

  1. पहला मॉड्यूल (2028)
    • नाम: BAS-01
    • वजन: लगभग 10 टन
    • प्रक्षेपण यान: LVM3 (Launch Vehicle Mark-3)
    • कक्षा: पृथ्वी से 450 किलोमीटर ऊँचाई पर लो अर्थ ऑर्बिट (LEO)।
    • उद्देश्य: जीवन समर्थन प्रणाली और क्रू क्वार्टर जैसी तकनीकों का परीक्षण।
  2. विस्तार और पूर्ण निर्माण (2035 तक)
    • कुल 5 मॉड्यूल प्रक्षेपित किए जाएंगे।
    • धीरे-धीरे इसकी प्रयोगशाला क्षमता, क्रू रहने की अवधि और वैज्ञानिक प्रयोगों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
  3. पूर्ववर्ती मिशन (Precursors)
    • मानवयुक्त मिशन भेजने से पहले कई प्रौद्योगिकी परीक्षण मिशन चलाए जाएंगे।
    • इनका उद्देश्य लंबी अवधि के अभियानों के लिए आवश्यक तकनीकों—जैसे विकिरण संरक्षण, ऊर्जा आपूर्ति, आपातकालीन प्रणाली आदि—का परीक्षण करना होगा।

अंतरराष्ट्रीय तुलना : ISS और Tiangong

(क) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS)

  • लॉन्च: 20 नवंबर 1998
  • सहयोगी देश: अमेरिका (NASA), रूस (Roscosmos), यूरोप (ESA), जापान (JAXA), कनाडा (CSA)।
  • ऊँचाई: लगभग 400 किलोमीटर
  • गति: 28,000 किमी/घंटा (हर 90 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा)।
  • उद्देश्य: वैज्ञानिक अनुसंधान, माइक्रोग्रैविटी प्रयोग, अंतरराष्ट्रीय सहयोग।

(ख) चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन

  • चीन ने अकेले विकसित किया।
  • 2021 से चरणबद्ध तरीके से मॉड्यूल लॉन्च किए गए।
  • लगभग 3 अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक रह सकते हैं।
  • चीन इसे एशिया का पहला स्वतंत्र स्टेशन मानता है।

(ग) भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS)

  • विशेषता: पूरी तरह स्वदेशी।
  • लक्ष्य: न केवल भारत की आत्मनिर्भरता बल्कि अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग का मंच बनना।
  • अवधि: 2028 से शुरू होकर 2035 तक पूर्ण निर्माण।

इस तुलना से स्पष्ट है कि BAS भारत को न केवल तकनीकी रूप से सशक्त बनाएगा, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष राजनीति में भी एक नई पहचान देगा।

वैज्ञानिक और तकनीकी महत्व

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण होगा—

  1. माइक्रोग्रैविटी में अनुसंधान
    पृथ्वी पर असंभव कई प्रयोग, जैसे नई दवाओं का विकास, प्रोटीन क्रिस्टलोग्राफी, हड्डियों और मांसपेशियों पर प्रभाव आदि, अंतरिक्ष में संभव होंगे।
  2. नए पदार्थों का अध्ययन
    धातु मिश्रधातु (Alloys), पॉलिमर और सेमीकंडक्टर का अध्ययन अंतरिक्ष में नई प्रौद्योगिकियों को जन्म देगा।
  3. जलवायु और पृथ्वी अध्ययन
    उन्नत इमेजिंग से जलवायु परिवर्तन, चक्रवात, हिमनदों और कृषि पैटर्न पर डेटा एकत्र होगा।
  4. भविष्य के चंद्र और मंगल अभियानों की तैयारी
    लंबी अवधि के मिशन और जीवन समर्थन प्रणाली का परीक्षण भविष्य में भारत की चंद्रमा या मंगल कॉलोनी की नींव बनेगा।

भारत की अंतरिक्ष नीति और BAS

भारत की अंतरिक्ष नीति का उद्देश्य केवल वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हासिल करना नहीं है, बल्कि—

  • आर्थिक लाभ (स्पेस-टेक्नोलॉजी आधारित उद्योग),
  • भू-राजनीतिक प्रभाव (अंतरराष्ट्रीय सहयोग में नेतृत्व),
  • और राष्ट्र की सुरक्षा (स्पेस डिफेंस क्षमताएँ) भी है।

BAS इस नीति का प्रत्यक्ष उदाहरण है। यह न केवल भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान देगा, बल्कि भविष्य में अंतरिक्ष पर्यटन, स्पेस मैन्युफैक्चरिंग, और डीप स्पेस एक्सप्लोरेशन का भी आधार बनेगा।

चुनौतियाँ

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की राह आसान नहीं है। कुछ प्रमुख चुनौतियाँ—

  1. वित्तीय निवेश
    अंतरिक्ष स्टेशन पर अरबों डॉलर खर्च होंगे। भारत को इसके लिए दीर्घकालिक वित्तीय योजना बनानी होगी।
  2. मानव संसाधन और प्रशिक्षण
    अंतरिक्ष यात्रियों को लंबे समय तक अंतरिक्ष में सुरक्षित रखने के लिए उन्नत प्रशिक्षण और चिकित्सा प्रणाली आवश्यक होगी।
  3. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और प्रतिस्पर्धा
    चीन और अमेरिका जैसे देशों के बीच बढ़ती स्पेस रेस में भारत को अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखते हुए सहयोग का संतुलन रखना होगा।
  4. प्रौद्योगिकीय जटिलताएँ
    डॉकिंग सिस्टम, विकिरण से सुरक्षा, ऊर्जा आपूर्ति और पुनःप्रवेश जैसी तकनीकों का विकास बड़ी चुनौती होगी।

दुनिया के सभी स्पेस स्टेशन : शुरू से वर्तमान तक

1. सल्युत कार्यक्रम (Salyut Programme) – सोवियत संघ (USSR)

  • समय: 1971 – 1986
  • स्टेशन: सल्युत-1 (1971) से लेकर सल्युत-7 (1982) तक कुल 7 स्पेस स्टेशन।
  • विशेषता:
    • सल्युत-1 मानव इतिहास का पहला स्पेस स्टेशन था (लॉन्च: 19 अप्रैल 1971)।
    • इसमें क्रू वैज्ञानिक प्रयोग और दीर्घकालिक मानव उपस्थिति का परीक्षण करते थे।
    • सोवियत संघ ने इसे मुख्य रूप से अपने अंतरिक्ष प्रभुत्व को दर्शाने के लिए विकसित किया।

2. स्काईलैब (Skylab) – अमेरिका (NASA)

  • समय: 1973 – 1979
  • विशेषता:
    • अमेरिका का पहला और अब तक का एकमात्र स्वतंत्र स्पेस स्टेशन।
    • तीन मानव मिशन (Skylab 2, 3, 4) भेजे गए।
    • सूर्य, पृथ्वी अवलोकन और माइक्रोग्रैविटी प्रयोग किए गए।
    • 1979 में यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करके जल गया और इसके कुछ हिस्से ऑस्ट्रेलिया में गिरे।

3. मीर स्पेस स्टेशन (Mir) – सोवियत संघ/रूस

  • समय: 1986 – 2001
  • विशेषता:
    • पहला मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन, जिसमें समय के साथ नए मॉड्यूल जोड़े गए।
    • कुल 28 देशों के 100 से अधिक अंतरिक्ष यात्री यहाँ गए।
    • अमेरिका और रूस के बीच 1990 के दशक में सहयोग का प्रतीक।
    • 2001 में नियंत्रित तरीके से प्रशांत महासागर में गिराया गया।

4. अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station – ISS)

  • समय: 1998 – वर्तमान
  • सहयोगी देश: अमेरिका (NASA), रूस (Roscosmos), यूरोप (ESA), जापान (JAXA), कनाडा (CSA)।
  • विशेषता:
    • मानव इतिहास की सबसे बड़ी कृत्रिम संरचना।
    • 20 नवंबर 1998 को पहला मॉड्यूल लॉन्च हुआ।
    • नवंबर 2000 से लगातार आबाद (Permanent Human Presence)।
    • पृथ्वी से लगभग 400 किमी ऊँचाई पर परिक्रमा करता है।
    • वैज्ञानिक अनुसंधान, माइक्रोग्रैविटी प्रयोग और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक।

5. तियांगोंग कार्यक्रम (Tiangong Programme) – चीन

(क) तियांगोंग-1

  • समय: 2011 – 2018
  • विशेषता:
    • चीन का पहला स्पेस स्टेशन/मॉड्यूल।
    • इसमें दो मानव मिशन (Shenzhou-9 और Shenzhou-10) भेजे गए।
    • 2018 में अनियंत्रित रूप से पृथ्वी पर गिरा।

(ख) तियांगोंग-2

  • समय: 2016 – 2019
  • विशेषता:
    • माइक्रोग्रैविटी प्रयोगशाला।
    • इसमें Shenzhou-11 मिशन ने 30 दिन बिताए।
    • 2019 में नियंत्रित तरीके से प्रशांत महासागर में गिराया गया।

(ग) तियांगोंग स्पेस स्टेशन (Chinese Space Station – CSS)

  • समय: 2021 – वर्तमान
  • विशेषता:
    • मॉड्यूलर संरचना, तीन मॉड्यूल (Tianhe, Wentian, Mengtian)।
    • लगभग 3 अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक रह सकते हैं।
    • यह एशिया का पहला स्थायी स्पेस स्टेशन है।

6. भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS – Bharatiya Antariksh Station)

  • समय (योजना): 2028 – 2035 (निर्माणाधीन/योजनाबद्ध)
  • विशेषता:
    • पूरी तरह स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन।
    • पहला मॉड्यूल (BAS-01) वर्ष 2028 में लॉन्च होगा।
    • 2035 तक कुल 5 मॉड्यूल।
    • माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान, वैज्ञानिक प्रयोग और भविष्य के चंद्र/मंगल मिशनों की तैयारी।

स्पेस स्टेशन की सारांश तालिका (Summary Table)

स्पेस स्टेशनदेश/संगठनसंचालन कालविशेषता
सल्युत (Salyut)सोवियत संघ1971–1986पहला स्पेस स्टेशन, 7 स्टेशन
स्काईलैब (Skylab)अमेरिका1973–1979अमेरिका का पहला और एकमात्र स्टेशन
मीर (Mir)USSR/रूस1986–2001पहला मॉड्यूलर स्टेशन
ISSअंतरराष्ट्रीय (NASA, Roscosmos, ESA, JAXA, CSA)1998–वर्तमानसबसे बड़ा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक
तियांगोंग-1चीन2011–2018चीन का पहला प्रयोगात्मक स्टेशन
तियांगोंग-2चीन2016–2019माइक्रोग्रैविटी प्रयोगशाला
तियांगोंग (CSS)चीन2021–वर्तमानएशिया का पहला स्थायी स्टेशन
BASभारत2028–2035 (योजना)भारत का पहला स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन

👉 इस तरह देखा जाए तो अब तक तीन देशों/गठबंधनों (सोवियत संघ/रूस, अमेरिका, चीन) ने सक्रिय रूप से स्पेस स्टेशन का संचालन किया है। भारत चौथा देश होगा जो 2028 से अपनी स्वदेशी ऑर्बिटल लैब स्थापित करेगा।

निष्कर्ष

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) भारत की आत्मनिर्भर अंतरिक्ष यात्रा का प्रतीक है। यह न केवल भारत को वैज्ञानिक दृष्टि से नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

आज जब दुनिया अंतरिक्ष में अगली बड़ी छलांग—चंद्रमा और मंगल पर मानव बसावट—की ओर बढ़ रही है, उस समय भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होना न केवल गर्व की बात है, बल्कि यह सुनिश्चित करेगा कि भारत इस वैश्विक यात्रा में पीछे न रहे।

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की कहानी अभी जारी है—चंद्रयान से लेकर गगनयान और अब BAS तक। यह कहना गलत न होगा कि आने वाले दशकों में जब अंतरिक्ष मानव सभ्यता का नया घर बनेगा, तब उसमें भारत की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होगी जितनी पृथ्वी पर है।


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