भारत में चार बड़े साँप (Big Four Snakes in India) और जलवायु परिवर्तन का खतरा

भारत विविध जैव-विविधता वाला देश है, जहाँ सांपों की सैकड़ों प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन प्रजातियों में से अधिकांश हानिरहित होती हैं, लेकिन कुछ अत्यधिक विषैली साँप प्रजातियाँ मानव स्वास्थ्य और जीवन के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं। इन्हीं में से चार प्रजातियाँ—कॉमन क्रेट, स्पेक्टेकल्ड कोबरा, रसेल वाइपर और सॉ–स्केल्ड वाइपर—को भारत का ‘बिग फोर’ कहा जाता है। सांपदंश (Snakebite) की घटनाओं और उनसे होने वाली मौतों में इन चारों की भूमिका सबसे अधिक है।

हाल के वैज्ञानिक अध्ययनों से यह चिंताजनक तथ्य सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन इन साँपों के प्राकृतिक आवासों को बदल रहा है। तापमान, आर्द्रता और वर्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण ये जहरीले साँप अपने पारंपरिक क्षेत्रों से उत्तर और पूर्वोत्तर की ओर स्थानांतरित हो सकते हैं। इसका सीधा मतलब है कि वे क्षेत्र, जो अभी तक इन साँपों के लिए सुरक्षित या कम जोखिम वाले थे, भविष्य में साँपदंश के नए केंद्र बन सकते हैं। यह बदलाव स्वास्थ्य सेवाओं, दवाओं और जन-जागरूकता के मोर्चे पर नई चुनौतियाँ खड़ी करता है।

भारत में साँपों का सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व

साँप भारतीय संस्कृति, पौराणिक कथाओं और धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। नाग पंचमी जैसे त्योहार साँपों को पूजा जाने की परंपरा को दर्शाते हैं। ग्रामीण भारत में खेतों और गाँवों के आसपास साँपों की उपस्थिति आम है।

पारिस्थितिक दृष्टि से साँप खाद्य शृंखला में संतुलन बनाए रखने वाले शिकारी हैं। वे चूहों और अन्य कीट–नाशक जीवों को नियंत्रित करते हैं, जिससे फसलों और अनाज की रक्षा होती है। यदि ये शिकारी न हों तो चूहों की आबादी विस्फोटक रूप से बढ़ सकती है और कृषि उत्पादन को भारी नुकसान पहुँचा सकती है।

भारत में चार बड़े साँप (Big Four Snakes in India)

1. स्पेक्टेकल्ड कोबरा (Spectacled Cobra – Naja naja)

  • पहचान: इसके फन पर बने चश्मे जैसे निशान से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
  • वितरण: भारत के अधिकांश हिस्सों में पाया जाता है।
  • खतरा: इसका विष तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और श्वसन क्रिया को बाधित कर सकता है।

2. कॉमन क्रेट (Common Krait – Bungarus caeruleus)

  • पहचान: चमकदार काले शरीर पर पतली सफेद धारियाँ।
  • वितरण: खेतों, झाड़ियों और ग्रामीण इलाकों में अधिक।
  • खतरा: यह सबसे खतरनाक साँपों में से एक है क्योंकि इसका विष स्नायु–विष (Neurotoxin) होता है। रात में काटने की घटनाएँ अधिक होती हैं।

3. रसेल वाइपर (Russell’s Viper – Daboia russelii)

  • पहचान: शरीर पर भूरे–पीले रंग के घेरेदार पैटर्न।
  • वितरण: पूरे भारत में, विशेषकर खेती वाले क्षेत्रों में।
  • खतरा: इसका विष रक्त को जमने से रोकता है और आंतरिक रक्तस्राव का कारण बनता है।

4. सॉ–स्केल्ड वाइपर (Saw-scaled Viper – Echis carinatus)

  • पहचान: छोटा लेकिन अत्यधिक आक्रामक साँप, जो खतरा महसूस होने पर शरीर को रगड़कर ‘साँय–साँय’ जैसी आवाज करता है।
  • वितरण: शुष्क और अर्ध–शुष्क क्षेत्रों में, खासकर कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र।
  • खतरा: अत्यंत विषैला, ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मौतों के लिए जिम्मेदार।

चिकित्सा दृष्टि से महत्व

  • भारत में साँप काटना केवल प्राकृतिक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है।
  • अनुमान है कि दुनिया भर में होने वाली साँप काटने की मौतों का लगभग 50% भारत में होता है।
  • बिग फोर साँप (Big Four Snakes in India) अकेले भारत में होने वाली 90% से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2017 में साँपदंश को Neglected Tropical Disease (NTD) घोषित किया, जिसका मतलब है कि इसे वह ध्यान और संसाधन नहीं मिले जो इसकी गंभीरता के अनुरूप होने चाहिए थे।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी, एंटिवेनम (Antivenom) की सीमित उपलब्धता और समय पर इलाज न मिलना, मौतों की संख्या को और बढ़ा देता है।

जलवायु परिवर्तन और साँपों के आवास पर प्रभाव

दक्षिणी क्षेत्र (Southern Regions)

  • अध्ययनों से पता चला है कि कर्नाटक और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में अनुकूल आवास घट सकते हैं
  • खासकर सॉ–स्केल्ड वाइपर का पारंपरिक आवास सिकुड़ने की संभावना है।
  • इससे यह खतरा है कि इन इलाकों में सांपदंश की घटनाओं में कमी हो सकती है, लेकिन साथ ही यह भी चिंता है कि साँप नए क्षेत्रों की ओर पलायन करेंगे।

उत्तरी और पूर्वोत्तर क्षेत्र (Northern & Northeastern Regions)

  • हरियाणा, राजस्थान, असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में इन जहरीले साँपों का विस्तार होने की भविष्यवाणी है।
  • खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में आवासीय विस्तार की संभावना 100% से अधिक है।
  • इसका अर्थ यह है कि वे समुदाय, जो अब तक इन साँपों के संपर्क में कम आते थे, भविष्य में गंभीर जोखिम झेल सकते हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं और नीतिगत चुनौतियाँ

  1. एंटिवेनम की आपूर्ति
    • भारत में उपलब्ध एंटिवेनम मुख्यतः बिग फोर साँपों के विष पर आधारित है।
    • यदि साँप नए क्षेत्रों में पहुँचते हैं, तो स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को पर्याप्त मात्रा में एंटिवेनम उपलब्ध कराना जरूरी होगा।
  2. स्वास्थ्य सेवाओं की तैयारी
    • ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की क्षमता बढ़ाना आवश्यक है।
    • डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को सही उपचार प्रोटोकॉल पर प्रशिक्षित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
  3. जन-जागरूकता
    • गाँवों और नए प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को यह जानकारी देना कि साँप काटने की स्थिति में क्या करें और क्या न करें।
    • पारंपरिक झाड़–फूँक के बजाय आधुनिक चिकित्सा पद्धति अपनाने के लिए प्रेरित करना।
  4. नीतिगत हस्तक्षेप
    • राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर एक दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखकर भविष्य की स्वास्थ्य योजनाएँ तैयार करनी होंगी।

सामाजिक और आर्थिक असर

  • सांप काटने से मृत्यु केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं होती, बल्कि यह आर्थिक रूप से भी बड़ी समस्या है।
  • पीड़ित की कार्यक्षमता खत्म हो जाने से परिवार की आजीविका पर असर पड़ता है।
  • WHO के अनुसार, भारत में सांपदंश से होने वाले नुकसान की आर्थिक लागत अरबों रुपये में आँकी जा सकती है।

भारत के ‘बिग फोर’ जहरीले साँप और उनके प्रमुख प्रभाव

साँप का नामवैज्ञानिक नामपहचान की विशेषताविष का प्रकारप्रमुख चिकित्सीय प्रभाव
स्पेक्टेकल्ड कोबराNaja najaफन पर चश्मे जैसा निशानNeurotoxinश्वसन तंत्र पर असर, साँस लेने में रुकावट
कॉमन क्रेटBungarus caeruleusकाले शरीर पर पतली सफेद धारियाँNeurotoxinस्नायु तंत्र को प्रभावित करता है, पक्षाघात (Paralysis)
रसेल वाइपरDaboia russeliiशरीर पर घेरेदार पैटर्नHemotoxinरक्त का जमाव रुकना, आंतरिक रक्तस्राव
सॉ–स्केल्ड वाइपरEchis carinatusछोटा आकार, शरीर रगड़ने पर आवाजHemotoxinतीव्र दर्द, रक्तस्राव और किडनी फेलियर तक संभावना

भारत में साँपदंश से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ और WHO की घोषणाएँ

  • 1895 – भारत में पहली बार एंटिवेनम (Antivenom) का विकास हुआ।
  • 1941 – मद्रास (अब चेन्नई) में एंटिवेनम उत्पादन की शुरुआत।
  • 1954 – ‘बिग फोर’ जहरीले साँपों की पहचान और इनके विष पर आधारित एंटिवेनम उत्पादन।
  • 1985 – WHO ने साँपदंश को उभरती सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या माना।
  • 2009 – भारत में एक बड़े सर्वे में पता चला कि हर साल 45,000 से अधिक मौतें साँपदंश से होती हैं।
  • 2017 – WHO ने साँपदंश को Neglected Tropical Disease (NTD) घोषित किया।
  • 2020 – भारत सरकार और ICMR ने राष्ट्रीय स्तर पर ‘Snakebite Mitigation Project’ की शुरुआत की।
  • 2023 – WHO और भारत ने मिलकर ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम शुरू किया।
  • 2025 – नवीनतम अध्ययनों में पाया गया कि बिग फोर साँप जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर और पूर्वोत्तर भारत की ओर अपने आवास बढ़ा सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत के बिग फोर साँप केवल एक पर्यावरणीय या जीव–विज्ञान संबंधी विषय नहीं हैं, बल्कि वे सार्वजनिक स्वास्थ्य, ग्रामीण जीवन और सामाजिक–आर्थिक ताने–बाने से जुड़े हुए हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण इनके आवासीय पैटर्न में आ रहे बदलाव आने वाले दशकों में भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं।

इसलिए आवश्यक है कि—

  • स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया जाए,
  • एंटिवेनम की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए,
  • और ग्रामीण–शहरी क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।

यदि समय रहते समन्वित प्रयास किए जाएँ तो भारत इस संकट का सफलतापूर्वक सामना कर सकता है।


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