JCPOA और ट्रंप नीति | ईरान परमाणु संकट का एक निर्णायक अध्याय

Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA), जिसे सामान्यतः ‘ईरान परमाणु समझौता’ कहा जाता है, 2015 में ईरान और वैश्विक शक्तियों के बीच हुआ एक ऐतिहासिक समझौता था। इस समझौते का उद्देश्य ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकना और बदले में उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाना था।

लेकिन 2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस समझौते से एकतरफा हटने और “अधिकतम दबाव नीति” (Maximum Pressure Policy) लागू करने के निर्णय ने पूरे पश्चिम एशिया में कूटनीतिक संतुलन को हिला कर रख दिया। यह लेख JCPOA के प्रमुख प्रावधानों, ट्रंप की वापसी के कारणों, इसके वैश्विक प्रभावों और आज तक की स्थिति का विश्लेषण करता है।

JCPOA: समझौते की उत्पत्ति और उद्देश्य

किन देशों ने किया समझौता?

JCPOA समझौता 14 जुलाई 2015 को ईरान और P5+1 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस + जर्मनी) के बीच वियना में हुआ था।

प्रमुख बिंदु:

  • ईरान अधिकतम 3.67% यूरेनियम संवर्धन ही कर सकता है (हथियारों के लिए आवश्यक स्तर 90%)।
  • नतांज़ और फोर्डो जैसे संवर्धन केंद्रों पर सीमित गतिविधियाँ।
  • IAEA को नियमित निरीक्षण की अनुमति।
  • अराक भारी जल रिएक्टर को पुनः डिज़ाइन किया जाएगा।
  • ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बदले उस पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाएगा।

समझौते के उद्देश्य:

  • परमाणु अप्रसार (Non-Proliferation) को बढ़ावा देना।
  • पश्चिम एशिया में स्थिरता लाना।
  • वैश्विक तेल बाजार को स्थायित्व देना।
JCPOA और ट्रंप नीति | ईरान परमाणु संकट का एक निर्णायक अध्याय

ट्रंप की वापसी: कारण और रणनीति

1. ट्रंप प्रशासन के आरोप:

  • JCPOA केवल अस्थायी रोक है, स्थायी समाधान नहीं।
  • ईरान ने मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय हस्तक्षेप (जैसे सीरिया, यमन, इराक, लेबनान) पर कोई रोक नहीं लगाई।
  • JCPOA में “Sunset Clauses” हैं जो कई प्रतिबंधों को समय सीमा के बाद समाप्त कर देते हैं।

2. इज़राइल और खाड़ी देशों का दबाव:

  • इज़राइल ने JCPOA को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताया।
  • सऊदी अरब, UAE जैसे सुन्नी बहुल देश भी ईरान के प्रभाव से चिंतित थे।

3. घरेलू राजनीति:

  • बराक ओबामा के समय की नीतियों को पलटने की ट्रंप की आदत।
  • ट्रंप के कड़े रुख ने उन्हें घरेलू रिपब्लिकन राजनीति में मजबूत समर्थन दिलाया।

अधिकतम दबाव नीति (Maximum Pressure Policy)

JCPOA से बाहर निकलने के बाद, अमेरिका ने ईरान पर फिर से कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए:

  • तेल निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध।
  • अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए SWIFT एक्सेस बंद।
  • विदेशी कंपनियों को ईरान से व्यापार न करने के लिए मजबूर करना।
  • ईरान के बैंकों और रिवोल्यूशनरी गार्ड (IRGC) को ब्लैकलिस्ट करना।

प्रभाव:

  • ईरानी मुद्रा रियाल का भारी अवमूल्यन हुआ।
  • महंगाई दर 50% से ऊपर पहुँची।
  • बेरोजगारी बढ़ी और जनआंदोलन हुए।
  • ईरान ने फिर से यूरेनियम संवर्धन 20% और बाद में 60% तक किया।

ईरान की प्रतिक्रिया

  1. रणनीतिक धैर्य की नीति: शुरू में ईरान ने JCPOA की शर्तों का पालन जारी रखा।
  2. चरणबद्ध उल्लंघन: 2019 से ईरान ने धीरे-धीरे JCPOA के नियमों का उल्लंघन शुरू किया।
    • यूरेनियम भंडारण सीमा पार करना।
    • संवर्धन स्तर बढ़ाना।
    • फोर्डो और अराक केंद्रों को फिर से सक्रिय करना।
  3. क्षेत्रीय आक्रामकता:
    • इराक में अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइल हमले।
    • स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ में तेल टैंकरों पर हमले।
    • अमेरिकी ड्रोन को गिराना।

वैश्विक प्रतिक्रिया

यूरोपीय देशों की भूमिका:

  • फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने JCPOA को बनाए रखने की कोशिश की।
  • INSTEX नामक एक विशेष भुगतान तंत्र स्थापित किया गया, लेकिन यह विफल रहा।

रूस और चीन:

  • JCPOA में ईरान के साथ रहे।
  • अमेरिका की नीति की आलोचना की।
  • ईरान से रक्षा और ऊर्जा सहयोग बढ़ाया।

संयुक्त राष्ट्र:

  • UNSC में अमेरिका द्वारा प्रतिबंध फिर से लगाने की कोशिश को बहुमत नहीं मिला।

बाइडन प्रशासन और पुनर्स्थापना की संभावनाएँ

जो बाइडन प्रशासन ने 2021 में JCPOA में पुनः प्रवेश की इच्छा जताई, लेकिन:

  • ईरान पहले प्रतिबंध हटाने की शर्त पर जोर देता रहा।
  • अमेरिका ईरान के मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय गतिविधियों को भी समझौते में शामिल करना चाहता है।
  • वियना में कई दौर की बातचीत के बावजूद समझौता बहाल नहीं हो सका।

रणनीतिक और भू-राजनीतिक प्रभाव

  1. परमाणु होड़ की आशंका: सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश अब अपने कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं।
  2. इज़राइल की आक्रामक नीति: संभावित सैन्य हस्तक्षेप की तैयारी।
  3. ईरान-चीन और ईरान-रूस की निकटता: अमेरिका के खिलाफ नया ध्रुवीकरण।

JCPOA एक ऐसा प्रयास था जिसने कुछ वर्षों तक ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नियंत्रण में रखा। लेकिन ट्रंप की वापसी और अधिकतम दबाव नीति ने न केवल ईरान को फिर से संवर्धन की राह पर ला दिया, बल्कि पश्चिम एशिया को एक बार फिर संकट में डाल दिया।

यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय JCPOA जैसे संतुलित और निगरानी-युक्त समझौते को पुनः स्थापित नहीं कर सका, तो एक नया परमाणु संकट और क्षेत्रीय युद्ध की संभावना नकारा नहीं जा सकता। इसलिए कूटनीतिक संतुलन और बहुपक्षीय वार्ता ही एकमात्र टिकाऊ समाधान है।

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