मानव सभ्यता के लिए सूर्य हमेशा से ऊर्जा, जीवन और प्रेरणा का स्रोत रहा है। परंतु इसके भीतर छिपे रहस्यों और इसके विकिरण, चुंबकीय तूफानों तथा सौर पवन जैसी जटिल गतिविधियों को समझना विज्ञान के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। इन्हीं रहस्यों को उजागर करने के लिए नासा (NASA) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने मिलकर एक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन सौर ऑर्बिटर मिशन (Solar Orbiter Mission) की शुरुआत की। हाल ही में इस मिशन ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जब इसने पहली बार सौर एनर्जेटिक इलेक्ट्रॉन्स (Solar Energetic Electrons – SEEs) की उत्पत्ति का सफलतापूर्वक पता लगाया। यह खोज सौर भौतिकी और अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) की समझ में एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है।
मिशन की पृष्ठभूमि
सौर ऑर्बिटर मिशन का विचार दशकों पहले वैज्ञानिकों के मन में आया था। अंतरिक्ष वैज्ञानिक लंबे समय से यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि सूर्य की सतह पर होने वाली गतिविधियाँ – जैसे सौर ज्वालाएँ (Solar Flares), कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs) और सौर पवन (Solar Wind) – पृथ्वी और हमारे सौरमंडल को किस प्रकार प्रभावित करती हैं। इन घटनाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव उपग्रह संचार, नेविगेशन सिस्टम, विद्युत ग्रिड और यहां तक कि अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा पर पड़ सकता है।
यही कारण है कि नासा और ईएसए ने मिलकर एक ऐसा मिशन विकसित किया जो सूर्य के निकट जाकर उसकी गतिविधियों को उच्च-रिज़ॉल्यूशन में समझ सके। फरवरी 2020 में यह सपना साकार हुआ जब सौर ऑर्बिटर को अमेरिका के केप कैनावेरल से लॉन्च किया गया।
लागत और सहयोग
सौर ऑर्बिटर मिशन नासा और ईएसए के संयुक्त सहयोग का परिणाम है। इस पर लगभग 5 बिलियन डॉलर की लागत आई है। इसमें दोनों एजेंसियों ने अपने-अपने वैज्ञानिक उपकरण और तकनीकी विशेषज्ञता का योगदान दिया है। इस तरह यह मिशन न केवल वैज्ञानिक सहयोग का उदाहरण है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की शक्ति को भी दर्शाता है।
मिशन की अवधि
सौर ऑर्बिटर का प्राथमिक मिशन 2026 तक निर्धारित है। हालांकि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगर इसके उपकरण और प्रणालियाँ बेहतर स्थिति में रहती हैं तो इसका विस्तार 2030 तक किया जा सकता है। इस अतिरिक्त समय में सूर्य के ध्रुवों, चुंबकीय क्षेत्र और सौर गतिविधियों की और गहन समझ हासिल करने की कोशिश की जाएगी।
कक्षा (Orbit) की विशेषता
सौर ऑर्बिटर को एक अत्यधिक दीर्घवृत्ताकार कक्षा (Highly Eccentric Orbit) में स्थापित किया गया है। यह सूर्य से न्यूनतम 0.28 AU (Astronomical Unit) की दूरी तक पहुँच सकता है। ध्यान देने योग्य है कि 1 AU पृथ्वी और सूर्य के बीच की औसत दूरी होती है। यानी यह मिशन सूर्य के बहुत करीब जाकर अवलोकन करता है।
इस कक्षा की एक और विशेषता है कि धीरे-धीरे इसके झुकाव (Tilt) को बढ़ाया जाता है ताकि यह सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्रों की भी इमेजिंग कर सके। इससे हमें सूर्य के ध्रुवों की ऐसी तस्वीरें और आंकड़े प्राप्त होंगे जो पहले कभी नहीं देखे गए।
पेलोड और उपकरण
सौर ऑर्बिटर पर कुल 10 उन्नत वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं। ये दो प्रकार से कार्य करते हैं:
- इन-सीटू (In-situ) उपकरण – ये सौर पवन, चुंबकीय क्षेत्र और आवेशित कणों को सीधे मापते हैं।
- रिमोट सेंसिंग उपकरण – ये सूर्य की सतह, कोरोना और ध्रुवों की इमेजिंग तथा स्पेक्ट्रोस्कोपी करते हैं।
इन उपकरणों की मदद से वैज्ञानिक सूर्य की सूक्ष्मतम गतिविधियों का विश्लेषण कर पा रहे हैं।
हाल की प्रमुख उपलब्धि: सौर एनर्जेटिक इलेक्ट्रॉन्स (SEEs) की खोज
2025 में सौर ऑर्बिटर मिशन ने पहली बार यह साबित किया कि सौर एनर्जेटिक इलेक्ट्रॉन्स (SEEs) कैसे और कहाँ उत्पन्न होते हैं। यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि SEEs अंतरिक्ष मौसम में बड़ी भूमिका निभाते हैं। जब सूर्य पर फ्लेयर्स या CMEs होते हैं, तो ये उच्च-ऊर्जा इलेक्ट्रॉन्स अंतरिक्ष में फैल जाते हैं और पृथ्वी तक पहुँच सकते हैं। इनका प्रभाव:
- उपग्रहों के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में गड़बड़ी पैदा करना,
- जीपीएस और रेडियो सिग्नल को बाधित करना,
- अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विकिरण का खतरा बढ़ाना।
इस खोज के बाद अब वैज्ञानिक इन इलेक्ट्रॉनों की गति और वितरण को अधिक सटीकता से समझ पाएंगे। यह अंतरिक्ष मौसम के पूर्वानुमान (Forecasting) के लिए बेहद उपयोगी होगा।
मिशन के मुख्य उद्देश्य
सौर ऑर्बिटर मिशन के कई उद्देश्य हैं:
- सूर्य के ध्रुवों की पहली बार इमेजिंग करना – अब तक कोई भी मिशन सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्रों की विस्तृत तस्वीरें नहीं ले पाया था।
- सौर पवन (Solar Wind) की उत्पत्ति और संरचना को समझना – यह जानना कि यह कहाँ से आती है और किस प्रकार पृथ्वी तक पहुँचती है।
- सौर ज्वालाओं और CMEs का अध्ययन करना – इन घटनाओं के कारण और उनके अंतरिक्ष मौसम पर प्रभाव को समझना।
- सौर चक्र (Solar Cycle) को समझना – सूर्य का 11 वर्षीय चक्र होता है जिसमें उसकी गतिविधियाँ न्यूनतम से अधिकतम तक पहुँचती हैं। यह मिशन इन परिवर्तनों का गहन अध्ययन करेगा।
- अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) का पूर्वानुमान बेहतर बनाना – ताकि पृथ्वी पर तकनीकी प्रणालियों और मानव जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।
सूर्य के ध्रुवों का रहस्य
सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्र अब तक वैज्ञानिकों के लिए सबसे रहस्यमय रहे हैं। पृथ्वी से और अधिकांश अंतरिक्ष यान से सूर्य को भूमध्यरेखीय क्षेत्र से देखा जाता रहा है। लेकिन ध्रुवीय क्षेत्र – जहाँ सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न और परिवर्तित होता है – सीधी दृष्टि से दूर रहे हैं। सौर ऑर्बिटर पहली बार इन ध्रुवीय क्षेत्रों की विस्तृत इमेजिंग करेगा, जिससे हमें सूर्य के चुंबकीय चक्र और सौर गतिविधियों की गहराई से समझ मिलेगी।
अंतरिक्ष मौसम और मानव सभ्यता पर प्रभाव
सौर ऑर्बिटर की खोजें केवल खगोलशास्त्र तक सीमित नहीं हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव हमारी आधुनिक जीवनशैली पर पड़ता है। उदाहरण के लिए:
- उपग्रह संचार – मोबाइल फोन, इंटरनेट, टीवी प्रसारण उपग्रहों पर आधारित हैं, जिन्हें सौर तूफान बाधित कर सकते हैं।
- जीपीएस नेविगेशन – हवाई जहाज, जहाजरानी और सैन्य अभियानों में जीपीएस अहम भूमिका निभाता है।
- विद्युत ग्रिड – शक्तिशाली सौर तूफानों से बिजली ग्रिड असफल हो सकते हैं।
- अंतरिक्ष यात्रा – भविष्य में जब मानव चंद्रमा और मंगल पर जाएगा, तब अंतरिक्ष मौसम की सटीक जानकारी जीवन रक्षा के लिए अनिवार्य होगी।
वैज्ञानिक महत्त्व
सौर ऑर्बिटर मिशन केवल तकनीकी उपलब्धि ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अनमोल है। इससे प्राप्त आंकड़े हमें यह समझने में मदद करेंगे कि:
- सूर्य की सतह और कोरोना के बीच ऊर्जा का आदान-प्रदान कैसे होता है।
- सौर चक्र के दौरान चुंबकीय क्षेत्र में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं।
- पृथ्वी और अन्य ग्रहों पर इन गतिविधियों का क्या असर पड़ता है।
भविष्य की संभावनाएँ
सौर ऑर्बिटर मिशन भविष्य में कई और रहस्य उजागर कर सकता है। आने वाले वर्षों में जब सूर्य अपने अधिकतम सक्रिय चरण (Solar Maximum) की ओर बढ़ेगा, तब यह मिशन और भी महत्वपूर्ण डेटा इकट्ठा करेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे हमें न केवल अंतरिक्ष मौसम की बेहतर समझ मिलेगी बल्कि पृथ्वी पर जीवन की सुरक्षा के लिए भी ठोस रणनीतियाँ बनाई जा सकेंगी।
निष्कर्ष
नासा–ईएसए सौर ऑर्बिटर मिशन मानवता की उस जिज्ञासा का प्रतीक है, जिसने हमें ब्रह्मांड के गहराई तक झाँकने के लिए प्रेरित किया है। सूर्य केवल हमारे लिए ऊर्जा का स्रोत ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर जीवन का आधार है। उसकी गतिविधियों को समझना हमारी तकनीकी और वैज्ञानिक उन्नति के लिए उतना ही आवश्यक है जितना हमारी सुरक्षा के लिए।
सौर ऑर्बिटर की हालिया उपलब्धि – सौर एनर्जेटिक इलेक्ट्रॉन्स की उत्पत्ति का पता लगाना – एक नई वैज्ञानिक क्रांति की शुरुआत है। यह मिशन आने वाले वर्षों में सूर्य के बारे में हमारी समझ को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा और यह साबित करेगा कि जब मानवता मिलकर काम करती है तो कोई भी रहस्य अज्ञेय नहीं रह सकता।
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