RELOS समझौता और भारत–रूस संबंध: उद्देश्य, महत्व और नवीनतम घटनाक्रम

वर्तमान वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध, अमेरिका–चीन प्रतिद्वंद्विता, पश्चिमी प्रतिबंध व्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक भू-राजनीति ने विश्व शक्ति संरचना को पुनर्परिभाषित किया है। ऐसे समय में भारत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) की नीति को आगे बढ़ा रहा है, जबकि रूस एशिया में अपने पारंपरिक और उभरते सहयोगियों के साथ नए सामरिक समीकरण स्थापित करने की दिशा में बढ़ रहा है।

इसी संदर्भ में रूस द्वारा भारत के साथ RELOS (Reciprocal Exchange of Logistics Support) समझौते को स्वीकृति प्रदान करना एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। यह समझौता न केवल सैन्य स्तर पर परस्पर सहयोग को सुदृढ़ करता है बल्कि भारत–रूस साझेदारी को नए भू-राजनीतिक संदर्भ में पुनर्स्थापित भी करता है।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी 2025 की भारत यात्रा से पहले इस समझौते की आधिकारिक मंजूरी संकेत देती है कि नई विश्व व्यवस्था में भारत और रूस की साझेदारी केवल रक्षा स्तर तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि बहु-आयामी रणनीतिक सहयोग में परिवर्तित होगी।

RELOS समझौता क्या है?

RELOS समझौता भारत और रूस के बीच एक द्विपक्षीय सैन्य लॉजिस्टिक सहयोग समझौता है। इसके तहत दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं को एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं—जैसे नौसैनिक अड्डे, वायुसेना स्टेशन, गोदाम और तकनीकी समर्थन केंद्र—का उपयोग करने की अनुमति होगी।

इस समझौते के अंतर्गत भारत और रूस को निम्न सुविधाएँ प्राप्त होंगी—

  • सैन्य ठिकानों तक पहुंच
  • ईंधन पुनःपूर्ति (Refueling)
  • जहाजों और विमानों की मरम्मत
  • स्पेयर पार्ट्स और तकनीकी सहायता
  • रसद (Logistics) में सहयोग
  • डॉकिंग और बर्थिंग सुविधाएँ
  • सैन्य अभियान संचालन और संयुक्त अभ्यासों में सहायता

अनुमान है कि RELOS के तहत भारत को रूस के 40 से अधिक सैन्य और नौसैनिक ठिकानों तक पहुंच मिलेगी, जिनमें आर्कटिक, प्रशांत और सुदूर पूर्व (Far East) क्षेत्र स्थित महत्वपूर्ण अड्डे भी शामिल हैं।

RELOS समझौते के उद्देश्य

RELOS समझौते के मूल उद्देश्य केवल लॉजिस्टिक सहयोग तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह व्यापक रणनीतिक लक्ष्यों के अनुरूप तैयार किया गया है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं—

1. सैन्य ठिकानों तक पारस्परिक पहुंच

भारत और रूस एक-दूसरे के पोर्ट, एयरफील्ड, डॉकयार्ड और लॉजिस्टिक केंद्रों का उपयोग कर सकेंगे। इससे:

  • ईंधन की उपलब्धता
  • मरम्मत और रखरखाव
  • आपूर्ति-वितरण
  • उपकरण पुनर्स्थापन

तेजी और दक्षता से संभव होंगे।

2. रक्षा सहयोग को मजबूत करना

दोनों देश पहले से ही रक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भागीदार हैं। RELOS के कारण:

  • संयुक्त सैन्य अभ्यास
  • नौसैनिक अभियान
  • रणनीतिक प्रशिक्षण
  • त्रि-सेवा समन्वय

अधिक व्यवस्थित और प्रभावी हो जाएंगे।

3. परिचालन क्षमता में सुधार

विशेष रूप से नौसेना के लिए लंबी दूरी की तैनाती महंगी और जटिल होती है। RELOS से:

  • समय की बचत
  • परिचालन क्षेत्र विस्तार
  • रणनीतिक पहुंच
  • लागत नियंत्रण

संभव होगा।

4. मानवीय और आपदा राहत (HADR) सहयोग

प्राकृतिक आपदाओं, समुद्री दुर्घटनाओं, और मानवीय संकट स्थितियों में दोनों देशों की सैन्य ताकत तेजी से प्रतिक्रिया दे सकेगी।

भारत–रूस संबंधों में RELOS का महत्व

भारत और रूस के संबंध ऐतिहासिक रूप से रक्षा सहयोग पर आधारित रहे हैं। शीत युद्ध के काल से लेकर आज तक रूस भारत का प्रमुख सैन्य उपकरण आपूर्तिकर्ता रहा है। ऐसे में RELOS समझौता इस संबंध में संस्थागत, तकनीकी और रणनीतिक गहराई जोड़ता है।

1. महासागरों से परे रणनीतिक पहुंच

भारत पहली बार रूस के निम्न महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों का उपयोग कर सकेगा—

  • व्लादिवोस्तोक (इंडो-पैसिफिक प्रवेश द्वार)
  • मुरमान्स्क (आर्कटिक सैन्य मुख्यालय)
  • पेट्रोपावलोव्स्क–कामचात्स्की (प्रशांत नेवी का कवच)

इन ठिकानों के माध्यम से:

  • आर्कटिक क्षेत्र में भारतीय नौसेना की पहुंच
  • प्रशांत महासागर में सैन्य उपस्थिति
  • समुद्री व्यापार मार्गों की निगरानी

ज्यादा प्रभावी तरीके से संभव होगी।

2. इंटरऑपेरिबिलिटी में वृद्धि

भारत–रूस संयुक्त सैन्य अभ्यास INDRA series और नौसैनिक प्लेटफॉर्म साझेदारी पहले से चल रही है। RELOS से:

  • जहाजों की संयुक्त तैनाती
  • वास्तविक समय में सैन्य संचार
  • जटिल मिशनों में सहयोग

और अधिक सुगम होगा।

3. रक्षा आपूर्ति श्रृंखला को मजबूती

भारत के कई प्रमुख सैन्य उपकरण रूसी मूल के हैं, जैसे—

  • Su-30MKI लड़ाकू विमान
  • T-90 और T-72 टैंक
  • S-400 वायु रक्षा प्रणाली
  • एयरक्राफ्ट कैरियर तकनीक
  • ब्रह्मोस मिसाइल

इन उपकरणों के लिए स्पेयर पार्ट्स और मरम्मत सेवाओं में RELOS महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

4. रणनीतिक विश्वास में वृद्धि

भारत–रूस रक्षा व्यापार 13 बिलियन डॉलर से अधिक का है। ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना, पनडुब्बी निर्माण, क्रायो-टेक्नोलॉजी सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़े समझौते इस विश्वास को और ठोस बनाते हैं।

भारत के अन्य लॉजिस्टिक्स समझौतों से तुलना

भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ कई रणनीतिक समझौते किए हैं, जैसे—

समझौताउद्देश्य
LEMOA (US–India)पारस्परिक सैन्य ठिकानों तक पहुँच
COMCASAएन्क्रिप्टेड सैन्य संचार
BECAभू-स्थानिक और उपग्रह डेटा सहयोग

RELOS कैसे अलग है?

  • यह अमेरिका-केंद्रित इंडो-पैसिफिक रणनीति जैसा नहीं है।
  • यह भारत को यूरेशिया, आर्कटिक और उत्तर प्रशांत में पहुंच प्रदान करता है।
  • यह 50+ वर्षों की रक्षा साझेदारी पर आधारित है।
  • यह रूसी सैन्य तकनीक और आपूर्ति श्रृंखला के साथ समन्वय मजबूत करता है।

यानी, यह समझौता भारत की विदेश नीति को बहु-ध्रुवीयता (Multipolarity) के ढाँचे में संतुलित बनाता है।

समकालीन भू-राजनीतिक संदर्भ

  • रूस पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है।
  • भारत वैश्विक मंच पर उभरती शक्ति है।
  • चीन की आक्रामक Indo-Pacific रणनीति चिंताजनक है।
  • BRICS+, SCO और EAEU जैसे मंचों में दोनों की भूमिका बढ़ रही है।

इन परिस्थितियों में RELOS समझौता भारत–रूस संबंधों को नया दिशा-निर्देश और सामरिक गहराई प्रदान करता है।

निष्कर्ष

RELOS समझौता केवल सैन्य लॉजिस्टिक समझौता नहीं बल्कि भारत–रूस संबंधों के बदलते चरित्र का प्रतीक है। यह समझौता भारत की नौसैनिक और रणनीतिक पहुंच को वैश्विक स्तर पर विस्तारित करता है, जबकि रूस के लिए यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भूमिका पुनः स्थापित करने का मार्ग है।

भारत की विदेश नीति के लिए यह समझौता न तो किसी एक धड़े का समर्थन है और न ही विरोध, बल्कि यह रणनीतिक बहुलता (Strategic Pluralism) और स्वायत्त सामरिक निर्णय क्षमता का उदाहरण है।

भविष्य में यह समझौता न केवल दोनों देशों की रक्षा साझेदारी को मजबूत करेगा बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी प्रभावित करेगा।


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