हरियाणी (हरियाणवी) बोली : इतिहास, क्षेत्र, भाषिक विशेषताएँ, शब्दकोश, साहित्य और संस्कृति

हरियाणा की भूमि अपनी वीरता, लोकगीतों, बैरागी धुनों, कृषि–संस्कृति और स्पष्टवादिता के लिए जानी जाती है। इसी संस्कृति का सबसे प्रमुख भाषाई स्वरूप है—हरियाणी या हरियाणवी बोली। यह बोली न केवल हरियाणा राज्य में, बल्कि दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में भी व्यापक रूप से बोली जाती है। हरियाणवी अपने ठेठ, सरल, स्पष्ट और ग्रामीण जीवन से जुड़े भावों के कारण हिन्दी भाषाओं के समूह में एक विशिष्ट स्थान रखती है।

हरियाणवी बोली को कभी–कभी जाटू, बाँगरू, हरियाणवी हिन्दी या हरियाणा की खड़ी बोली भी कहा जाता है। जॉर्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक Linguistic Survey of India में इसे बाँगरू नाम से वर्णित किया है। हरियाणा में अहीर, जाट, गुर्जर, सैनी, रोर, यादव आदि समुदायों की प्रमुखता के कारण इस बोली में इन समाजों के शब्द, मुहावरे और कहावतें भी प्रचुरता से मिलती हैं।

नीचे हम हरियाणी बोली का विस्तृत अध्ययन इसके इतिहास, भाषाई लक्षण, ध्वन्यात्मक संरचना, क्षेत्रों, साहित्य, शब्द–भंडार, कहावतों और सांस्कृतिक स्वरूप के रूप में करते हैं।

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हरियाणी बोली का परिचय

हरियाणवी बोली, हिन्दी की पश्चिमी बोलियों में से एक है। इसका मूल क्षेत्र हरियाणा राज्य और उसके आसपास का भूभाग माना जाता है। यह बोली मुख्य रूप से निम्न जिलों व क्षेत्रों में बोली जाती है—

  • रोहतक
  • झज्जर
  • बहादुरगढ़
  • जींद
  • सोनीपत
  • हिसार
  • करनाल
  • पानीपत
  • सिरसा
  • महेन्द्रगढ़
  • रेवाड़ी
  • फतेहाबाद
  • दिल्ली के गाँव और बाहरी क्षेत्र
  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ गाँव
  • राजस्थान की सीमा से लगे हुए अलवर, भरतपुर, झुंझुनूं के गाँव

हरियाणवी बोली का स्वरूप मुस्कान, मज़ाक, चुटीलेपन, तड़क–भड़क और ग्रामीण यथार्थवाद से भरा हुआ है। संवाद शैली बहुत स्पष्ट, सीधी और सशक्त होती है। हरियाणा के लोग अभिव्यक्ति में सीधे और निश्छल होते हैं, और यह प्रवृत्ति उनकी बोली में स्पष्ट झलकती है।

हरियाणवी बोली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

हिन्दी की अधिकांश बोलियों की तरह हरियाणवी का भी विकास शौरसेनी अपभ्रंश से माना जाता है। दिल्ली–हरियाणा क्षेत्र चूँकि महाभारत, कुरुक्षेत्र, प्राचीन हस्तिनापुर आदि प्रदेशों के निकट रहा है, इसलिए यहाँ की भाषा पर प्राचीन भारोपीय भाषाओं और मध्यकालीन खड़ी बोली का प्रभाव बहुत गहरा है।

मुग़ल काल तथा दिल्ली सल्तनत के समय इस क्षेत्र में व्यापार, कृषि और सैन्य गतिविधियाँ फलती–फूलती रहीं। परिणामस्वरूप हरियाणवी में—

  • खड़ी बोली के शब्द,
  • राजस्थानी के पद,
  • पंजाबी के ध्वन्यात्मक प्रभाव,
  • और स्थानीय देसी शब्दों का मजबूत मिश्रण

मिलता है।

हरियाणवी के इतिहास में परिनिष्ठित लिखित साहित्य कम मिलता है, किन्तु लोक–परंपरा अत्यंत समृद्ध है।

हरियाणवी बोली के भाषाई क्षेत्र (Dialect Zone)

कई विद्वानों ने हरियाणा की बोलियों को विभाजित किया है, जिनमें प्रमुख रूप से —

(1) बाँगरू या हरियाणवी मुख्य बोली

रोहतक, सोनीपत, झज्जर, बहादुरगढ़, हिसार, जींद, पानीपत आदि क्षेत्र।

(2) बागड़ी

राजस्थान–हरियाणा सीमा क्षेत्र—सिरसा, फतेहाबाद, हनुमानगढ़, भिवानी के आसपास।

(3) मेवाती

नूंह (मेवात), अलवर, भरतपुर आदि क्षेत्रों में।

(4) जाटू बोली (कुछ विद्वानों के अनुसार मुख्य हरियाणवी ही)

जाट बहुल क्षेत्रों में।

(5) देहाती दिल्ली की हरियाणवी

दिल्ली के गांवों में प्रचलित।

इन सभी रूपों की ध्वनि–शैली में समानता है, जिससे इनका समेकित रूप हरियाणवी कहा जाता है।

हरियाणवी भाषा की मुख्य विशेषताएँ

दिए गए अंशों को विस्तारपूर्वक व्यवस्थित करते हुए हरियाणवी बोली की प्रमुख विशेषताएँ नीचे दी जा रही हैं—

(1) खड़ी बोली से निकटता

हरियाणवी और खड़ी बोली हिन्दी में बहुत अधिक समानता है। उदाहरण—

  • खड़ी बोली: मैं जाता हूँ
  • हरियाणवी: मैं जाँ सै / मैं जाँ सूँ

कई व्याकरणिक और ध्वन्यात्मक संरचनाएँ दोनों में समान रूप से मिलती हैं।

(2) आकारान्त शब्दों का प्रचुर प्रयोग

हरियाणवी में बहुत से शब्द -ओं / -ऊँ / -आँ आदि आकारान्त शैली में मिलते हैं।

  • घर → घरौं
  • बाप → बापू
  • छोहरा → छोहराँ / छोहरियाँ

यह विशेषता राजस्थान और पंजाबी के प्रभाव का परिणाम भी है।

(3) द्वित्व व्यंजन का प्रयोग

द्वित्व व्यंजनों (double consonants) का प्रयोग हरियाणवी में भी मिलता है—

  • पक्का → पक्को
  • अच्छो → अच्छै

(4) परसर्गों का प्रयोग

हरियाणवी में कई विशेष परसर्ग उपयोग होते हैं—

  • मह / माँह (अधिकरण कारक)
    • वो घर मह सै।
  • ल्याँ / ते / तैँ (संप्रदान कारक)
    • भाई ल्याँ दे दिया।

(5) सहायक क्रियाओं का विशेष प्रयोग

हिन्दी की तरह है / हूँ / हैं का प्रयोग हरियाणवी में बहुत कम है। इनके स्थान पर—

  • सै (है)
  • से / सो (हैं)
  • सू / सूँ (हूँ)

उदाहरण—

  • तू के करै सै? (तू क्या कर रहा है?)
  • मैं ठीक सूँ।
  • वो घर पे से।

(6) कृदन्त रूप में ‘ता’ और ‘दा’ दोनों प्रयोग

यह हरियाणा–पंजाब क्षेत्र का साझा प्रभाव है।

  • करता (हिन्दी)
  • करदा (पंजाबी शैली का प्रभाव)

हरियाणवी में दोनों मिल जाते हैं।

(7) सर्वनामों के स्थानीय रूप

हरियाणवी में सर्वनामों के विशेष रूप उपयोग किए जाते हैं—

  • मैं → मैं / म
  • तुम → तू / तूं
  • वह → उ / वो
  • यह → य / यो

(8) स्वराघात और टोनलिटी

हरियाणवी में एक विशेष ‘स्वराघात’ या ‘तड़क–भड़क’ दिखाई देती है, जो इसे विशिष्ट बनाती है। बोलने का ढंग जोरदार, स्पष्ट और तेज़ होता है।

हरियाणवी बोली और खड़ी बोली में अंतर

हालाँकि दोनों में समानता भी बहुत है, लेकिन कुछ प्रमुख अंतर स्पष्ट हैं—

(1) उच्चारण

  • खड़ी बोली में स्पष्ट और कोमल उच्चारण,
  • हरियाणवी में कठोर, तेज़ और टुकड़े–दार उच्चारण।

(2) शब्दावली

हरियाणवी में देसी, पंजाबी, राजस्थानी, और ग्रामीण जीवन से जुड़े शब्द बहुत मिलते हैं—

  • खड़ी बोली: अभी
  • हरियाणवी: अब्बै / इब्ब
  • खड़ी बोली: फिर
  • हरियाणवी: फेर

(3) क्रिया-रूप

  • खड़ी बोली: मैं जा रहा हूँ
  • हरियाणवी: मैं जाँ सूँ

(4) परसर्ग

  • खड़ी बोली: में
  • हरियाणवी: मह / माँह

(5) वाक्य क्रम

हरियाणवी में ज़ोर देने वाली शैली मिलती है—

  • खड़ी बोली: वह आएगा
  • हरियाणवी: वो तो आवैगा ही

हरियाणवी बोली के प्रमुख शब्द (Haryanvi Words)

दिए गए शब्दों और वाक्यों को उचित रूप से प्रस्तुत करते हुए—

  • भाई बाहर रही होगी।
  • बालक पण तें इब्ब सीख लेगी—कोए बात ना।
  • कम तें कम न्यू ते कहवे सै कि आपणी बोली सै।
  • सीख ले प्रीति—सुथरी ढाल सै।
  • फेर विपिन भाई ने कती देसी चमोले सुनाए।

हरियाणवी शब्दों का छोटा शब्दकोश—

हरियाणवीहिन्दी अर्थ
इब्बअब
केक्या
कतीबिल्कुल
फेरफिर
छोरालड़का
छोरीलड़की
तन्नैतुम्हें
म्हारेहमारे
घनाबहुत
बेरापता
जा सैजा रहा है
बाताँबातें
खसमपति

हरियाणवी की कहावतें

दिए गए कहावतों को व्यवस्थित रूप में—

(1) “भैस तालाब में और लड़की मॉल में जाने के बाद बड़ी मुश्किल से बाहर निकलती है।”

→ संदर्भ: दोनों को मनाने या वापस बुलाने में कठिनाई।

(2) “शेर दिखने पर कुत्ता और डर लगने पर लड़की आँख बंद करके चिल्लाती है।”

→ अतिशयोक्ति के माध्यम से डर की स्थिति का वर्णन।

(3) “भूख लगने पर बकरी और काल करने पर लड़की बहुत ज्यादा बोलती है।”

→ व्यवहारगत हास्य–चुटकुला–आधारित कहावत।

(4) “गेहूँ के खेत में गाय और चाट की दुकान में लड़की बार–बार जाती है।”

→ प्रिय चीजों की ओर बार–बार आकर्षण।

(5) “जाट का गुस्सा और सांड की दौड़ — जब तक थकें ना, रुकते ना।”

→ अत्यधिक जोश और उग्रता वाले व्यवहार का वर्णन।

(6) “लड़की के हाथ में मोबाइल और छोरे के हाथ में मोटरसाइकिल — दोनों उड़ान भूल जाते हैं।”

→ युवाओं की लापरवाही व उत्साह पर व्यंग्य।

(7) “बैल खेत में और बुजुर्ग चौपाल में—दोनों को वहीं चैन पड़ता है।”

→ अपने–अपने पसंदीदा स्थानों का वर्णन।

(8) “रूठी हुई बहू और सूखी हुई जमीन—दोनों को मनाने में टाइम लागै सै।”

→ समस्याओं को सुलझाने की कठिनाई।

(9) “ज्यादा मीठ बोलै तो समझ ले अंदर कुछ खोट सै।”

→ अत्यधिक मीठी बात के पीछे छिपे इरादों पर संदेह।

(10) “थाली में घी और हाथ में लाठी—जाट के बस की दो चीज़ हैं।”

→ मज़ाकिया ढंग से शक्ति और स्वाद का महत्व दर्शाना।

(11) “जिसके पास दिमाग ना, उसके पास बहाने घणा।”

→ कम बुद्धिमान व्यक्ति का बहानों पर निर्भर होना।

(12) “घोड़ी चरे जंगल में और बहू चढ़े मेकअप में—दोनों को रोकना मुश्किल।”

→ अतिशयोक्ति के माध्यम से नियंत्रण कठिनता का वर्णन।

हरियाणवी कहावतें हास्य, व्यंग्य और जीवन–अनुभवों से भरी होती हैं। ये लोकजीवन की सच्चाइयों को अनोखे अंदाज़ में प्रस्तुत करती हैं।

हरियाणवी बोली की साहित्यिक स्थिति

हरियाणवी में परिनिष्ठित (standardized) साहित्य अपेक्षाकृत कम पाया जाता है। इसका मुख्य कारण—

  • हरियाणा में लोक एवं मौखिक परंपरा की मजबूत स्थिति
  • लिखित साहित्य से अधिक गायन, रागनी, लोकगीतों की लोकप्रियता
  • संस्कृत, राजस्थानी और खड़ी बोली के साहित्य का प्रभाव

फिर भी हरियाणवी में—

  • लोकगीत
  • रागनियाँ
  • चौपाल गीत
  • वीर–रस आधारित गीत
  • हास्य–कविताएँ
  • नाटक (जागर, सांग)

का एक विशाल और समृद्ध भंडार है।

हरियाणवी संस्कृति और भाषा

हरियाणा की संस्कृति कृषि–प्रधान, परिश्रमशील, वीर और स्वाभिमानी मानी जाती है। भाषा में इसका स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई देता है—

(1) स्पष्टवादिता

हरियाणवी लोग सीधे और स्पष्ट बोलने के लिए प्रसिद्ध हैं।

(2) हास्य–व्यंग्य

हरियाणवी चुटकुले, तुकबंदियाँ और व्यंग्य रचनाएँ पूरे भारत में लोकप्रिय हैं।

(3) लोकगीत और रागनियाँ

  • “छोटी छोटी गैलां”
  • “छोटे–छोटे घूंघट”
  • “घोघा जाल्या”
  • “काले–काले बाल”

रागनियाँ—

  • बीर–रस की रागनियाँ
  • लोक–रागनियाँ
  • प्रेमगीत

हरियाणवी बोली की आधुनिक महत्ता

आज हरियाणवी केवल गाँवों की भाषा न होकर—

  • खेल जगत
  • मीडिया
  • सिनेमा
  • हास्य–कला
  • सोशल मीडिया reels
  • लोक–संगीत

के माध्यम से पूरे भारत में लोकप्रिय हो गई है। देसी हरियाणवी, रागनी, हरियाणवी डांस और लोक–गीत युवाओं में उत्साह से सुने जाते हैं।

निष्कर्ष

हरियाणवी बोली भारतीय भाषाओं के समूह में एक जीवंत, हास्य–प्रधान, तड़क–भड़क वाली और बेहद सहज बोली है। यह खड़ी बोली हिन्दी से अत्यंत निकट होने के बावजूद अपनी अनूठी शैली, व्याकरण, ध्वनि–प्रणाली और संस्कृति के कारण स्वतंत्र पहचान रखती है। हरियाणवी में आज भी लोक–परंपराएँ सुरक्षित हैं और यही इसे भाषाई–सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती हैं।

हरियाणवी न केवल हरियाणा की भाषा है, बल्कि यह वहाँ के समाज, संस्कृति, गांव, खेत–खलिहान और लोगों की पूरी जीवन–शैली को अपने भीतर समेटे हुए है। इसकी ताजगी, स्पष्टवादिता और ‘देसीपन’ इसे हिन्दी बोलियों में विशेष स्थान देती है।


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